tag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post970415202408457313..comments2023-08-12T04:56:54.940-07:00Comments on कोलाहल से दूर: रूपान्तरण [कविता]- अशोक कुमार शुक्ला |साहित्य शिल्पी: Sahitya Shilpi; Hindi Sahitya ki Dainik patrikaडॉ0 अशोक कुमार शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/14296351917633881911noreply@blogger.comBlogger75125tag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-37873862957009074252021-12-13T18:45:31.934-08:002021-12-13T18:45:31.934-08:00"स्वर्वेद मंदिर"
आध्यात्मिक राजधानी वारा..."स्वर्वेद मंदिर"<br />आध्यात्मिक राजधानी वाराणसी में तैयार हो रहा,<br />साधना केंद्र स्वर्वेद मंदिर ढांचा निर्माण हो रहा।<br />आधुनिक तकनीक लैस इसको बनाया जा रहा,<br />काशी के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व बढ़ाएगा।<br />नशा मुक्ति के लिए विहंगम योग यह सिखाएगा,<br />14 दिसंबर को वार्षिकोत्सव मंदिर में मनाएगा।<br />100 फीट ऊंची यह सद्गुरु की प्रतिमा लगवाऐगा,<br />प्राचीन स्थापत्य कला के समन्वय से बनाया गया। <br />14 दिसंबर को यहां राज्यपाल मुख्यमंत्री आएंगे,<br />संतो को संबोधित करने प्रधानमंत्री जी भी आएंगे।<br />स्वर्वेद मंदिर आने का आमंत्रण पीएम को दिया,<br />सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव दिल्ली में मोदी से मिले।<br />14 दिसंबर को भक्त आसन प्राणायाम लगाएंगे,<br />अगले दिन विश्व शांति के लिए महायज्ञ कराएंगे।<br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-85854892453925322332021-12-13T18:22:57.968-08:002021-12-13T18:22:57.968-08:00"बाबा विश्वनाथ धाम के प्रथम चरण का लोकार्पण&q... "बाबा विश्वनाथ धाम के प्रथम चरण का लोकार्पण"<br />भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया कमाल,<br />दम दम दम दम डमरू से दुनिया वाले निहाल।<br />शिव आज्ञा का पालन करने संत ऋषि आए,<br />बाबा धाम की लोकार्पण में एक हाजिरी लगाई।<br />उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा,<br />महात्मा गांधी का स्वप्न मोदी जी ने पूरा किया।<br />गांधीने काशी की गंदी गलियां देख पीड़ा जताई,<br />राष्ट्र कल्यानार्थ मोदी जी ने गंगा में डुबकी लगाई।कड़ाके ठंड में गंगा का जल शिव को चढ़ाया।<br />उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने अलख जगाया,<br />कठिन परिस्थिति में भारत की ताकत दिखाया।<br />प्रमुख नदियों के जल से पुराघिपती अभिषेक की,<br />संतों की मौजूदगी में धाम भक्तों को समर्पित की।<br />भाषण में प्रधानमंत्री जी ने तीन संकल्प दिलाया, <br />स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर प्रयास सुनाया।<br />देश! सभी लोग जब अलग-अलग प्रयास करेंगे,<br />उनकी आत्म निर्भर कोशिश देश आगे बढ़ाएगा। भारत गुलामी की हीन भावना से बाहर निकल रहा,<br />देश आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का बीज बो रहा।<br />सभी को साथ लेकर चलने का आह्वान संकल्प ले रहा,<br />काशी का पुराना गौरव लौटाने का पूरा प्रयास कर रहा।<br />प्रधानमंत्री मोदी धाम निर्माण करता श्रमिकों साथ वक्त दिया,<br />श्रमिकों के सम्मान में मोदी ने श्रमिकों के ऊपर पुष्प वर्षाया।<br />शिव भक्तों के लिए गंगद्वार से गंगाधर तक मार्ग खुलवाया,<br />इस प्रकार प्रथम भक्त बन कर विश्वनाथ पर गंगाजल चढ़ाया।<br />रेवती नक्षत्र में 13 दिसंबर २०२१ को धाम का लोकार्पण किया,<br />डोर टू डोर सर्वे २४१ वर्षों का इंतजार अभिषेक परंपरा खिलाया।<br />काशी विश्वनाथ का लोकार्पण कर दुनिया को संदेश दिया,<br />विश्वनाथ जी सबके रक्षक अविस्मरणीय उन्होंने उद्घोष किया।<br />जितनी खुशी हिंदू भाइयों को है कारी डोर बनने से काशी में,<br />मुसलमानों को भी उतनी ही खुशी हो रही है यासीन ने बताया।<br />सैयद एम यासीन संयुक्त सचिव अंजुमन इंतजा मियां की,<br />योगी आदित्यनाथ जी ने इसे श्री राम मंदिर निर्माण की कड़ी बताया।<br />हजारों वर्षों से विपरीत परिस्थितियों काशी ने झेला है,<br />सन 1977 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने पुनर्निर्माण किया।<br />ग्वालियर नरेश रणजीत सिंह और महारानी ने योगदान किया,<br />आज बाबा की भव्य दरबार का स्वरूप संत समाज ने आंखों देखा।<br />14 दिसंबर को प्रधानमंत्री सर्वेद मंदिर में संतो को संबोधित करेंगे,<br />मार्कंडेय महादेव मंदिर से पहले उमराह में स्वर्वेद मंदिर में भाषण देंगे।<br />काशी में प्रधानमंत्री का एक 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अगवानी की,<br />प्रधानमंत्री का क्रूज संत रविदास घाट से दशा सुमेध घाट पहुंचा।<br />काल भैरव में जाकर पीएम ने अपनी काशी सांसद की हाजिरी दी,<br />मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ जी ने पीएम के साथ रहे।<br />प्रधानमंत्री के स्वागत में हर हर महादेव का जयघोष हुआ,<br />सायंकाल की गंगा आरती का उनको सौभाग्य मिला।<br />नियमित रूप से गंगा आरती में सात अर्चक भाग लिया करते हैं,<br />रिद्धि सिद्धि के लिए ९ अर्चक २१ देव कन्याओं ने गंगा आरती की।<br />प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी गुरुजी से गंगा आरती में भाग लिया,<br />लोकार्पण के दिन शिव दीपोत्सव पूरी का काशी के किया।।<br /> -sukhmangal singh<br /><br /><br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-90224900209426217042020-06-13T05:31:51.301-07:002020-06-13T05:31:51.301-07:00"चीन अमेरिका"
विफल प्रयास चाहे जितना चीन..."चीन अमेरिका"<br />विफल प्रयास चाहे जितना चीन करें,<br />सकता नहीं बच कदापि छिपकर संहार से।<br />भीतरी भाव भयभीत छुकता नहीं छुपाए,<br />ऊपर से दिखावा निष्ठुर स्वभाव से।<br />तनातनी भाव रुकती नहीं रोकने से,<br />पिटेगा अंत में अपने ही स्वभाव से।<br />अमेरिका का साथ में देने की धमकी चीन की,<br />मिलेगा भारत से करारा जवाब चीन को।<br />भारत और अमेरिका को चीन दे रहा ताव रे,<br />भ्रम भस्म करेगा हिंद का जवाब री।<br />ड्रैगन को अमेरिका साउथ चाइना से,<br />रोना वायरस का ले रहा जवाब रे।<br />कोरोनावायरस दुनिया का भारी हानि,<br />दावा देना पड़ेगा चीन को इतना लो मान।<br />फिलीपीन में चीन चल दिया जला दिया चाल,<br />ब्रह्मोस पहुंचेगा फिलीपींस इसे लो मान।<br />ब्रह्मोस की ताकत से करेगा कदम ताल,<br />फिलीपींस भी तोड़ेगा चीन का मायाजाल।<br />- सुखमंगल सिंह, अवध निवासीsukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-85980571953468766542019-11-04T17:28:37.208-08:002019-11-04T17:28:37.208-08:00"सरयू -संस्कृति संवारती "
भोरवैं से मइ..."सरयू -संस्कृति संवारती "<br /><br />भोरवैं से मइया तिखारत बानी <br />तकती अँखियन से, मइया निहारत बानी <br />कतकी नहान आइल बा,दुलारत बानी <br />सरयू मइया तोहरा के पुकारत बानी |<br /><br />कंजड़ मानसिकता पर विचारात बानी <br />शासन की सिथिलता पे धिक्कारत बानी <br />उठ भोरावैं मइया तिखारत बानी <br />घृणा और भय का पात्र पखारत बानी | <br /><br />लोक संस्कृति- लोकभाषा में पुकारत बानी <br />आंचलिक ग्राम साहित्य सवांरत बानी <br />लोकरंग - लोक गंध ले पुकारत बानी <br />यथार्थ सृजन के लिये ललकारत बानी | <br /><br />भूमण्डलीयकरण में माई निहारत बानी <br />हराम जीवन का गौरव निखारत बानी <br />अँधेरे में माई निरंतर -निसारत बानी <br />धरा पे धार से मइया धिक्कारत बानी | <br /><br />गावों भी को उपेक्षा से माई उबारत बानी <br />धर्म पालन में लरिकन के निकारत बानी<br />माई रात - दिन लहरन से सँवारत बानी <br />वेद - शास्त्र पढ़े - बदे ललकारत बानी| <br />-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-31679744365787809572019-10-11T17:08:55.445-07:002019-10-11T17:08:55.445-07:00सरयू रामप्रिया कहलातीं
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पाप नाशि...सरयू रामप्रिया कहलातीं<br />------------------<br />पाप नाशिनी हैं माँ सरयू<br />असंख्य कल्पनाये सजाये लहराती<br />मैदान में करनाली बन सरयू<br />सुन्दर -सरयू - सुगम -कहती<br />हिमालय से निकली गंगा संग सरयू<br />माँ शारदा भी है नाम<br />उत्तराखण्ड नेपाल -सीमा में<br />माँ काली नदी है नाम<br />जान्हवी, राप्ती ,आमी का नीर<br />घाघरा ,गोंगरा नाम बताये<br />उनके सभी पाप धूल जायेँ<br />डुबकी सरयू में जो लगाये<br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का / सुखमंगल सिंह (31)<br />--------------------------------<br />सरयू रास्ते संग संग श्रीराम<br />ऋषि विश्वामित्र चले हैं<br />वाल्मीकी – वालकाण्ड बताये<br />शिक्षा देने को निकले हैं<br />ऋग्वेद ने भी किया गुणगान<br />माँ सरयू वाकई महान<br />परंपरा में देविका कहाती<br />और रामप्रिया भी नाम<br />आओ ! आज माँ सरयू का<br />सब मिलकर गुणगान करें<br />श्री हनुमत से आज्ञा ले’सुखमंगल ‘<br />शारदा -सरयू में स्नान करें<br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का / सुखमंगल सिंह (32)<br />----------------------------------<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />प्रिय अयोध्या श्रीराम का धाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />श्री हनुमत रक्षा करें सदा<br />करें वास श्री भगत -हिरदय में<br />श्री रघुनाथ - कृपा ऐसी कि<br />प्रतिपल रहूँ राम के लय में<br />राममय रहूँ मैं सुबहो -शाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />पुष्प संग पवन ,पवन संग चिड़िया<br />चह - चह - चह - चह -करें सदा<br />काम - क्रोध - लोभ से मुक्त हो<br />रिद्धि- सिद्धि घर में भरे सदा<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३३ ) <br />-------------------------------------<br /> चाहे छाँह रहे या घाम<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />भोले बाबा अवघड़ दानी<br />सृष्टि में कोई नहीं है शानी<br />शिव -भक्तों से जो भी उलझे<br />हो जाती उसकी ख़तम कहानी<br />शिव - भक्ति मिले,विन मोल औ दाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />शिव संग शक्ति, शक्ति से किरपा<br />प्रतिपल हो , सुलभ आशीष<br />सभी का शुभ चाहता चले जो<br />रण में होता वही है बीस<br /> कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३4 ) <br />-----------------------------------<br /><br />नाम न होवे कभी अनाम<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />धर्म -कर्म -सद्भाव है जहां<br />शम्भु औ रघुवर कहें रहते वहां<br />कपट -दम्भ सब दूर है जिसके<br />उसके घर में कमी कहाँ<br /> चाहे दक्षिण हो या बाम<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />मां सरयू तात बहुत महान<br /> यहां घूमते थके न राम<br />जिह्वा पर बस एक ही नाम<br />राम,राम,बस राम ही राम<br /> कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(35 )<br /><br />--------------------------------- <br /><br /> सीताराम ,सीताराम<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />राम कथा सरयू के तीर<br />कहता -सुनाता होता वीर<br />सुखमय उसका जीवन होता<br />वह होता धीर - गंभीर<br />पी लेता वह राममय जाम<br />हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />मां गंगा -सरयू और सरस्वती<br />कल-कल करती बहती रहती<br />पापी हो या हो पुण्यात्मा<br />दुःख - पाप सब हरती रहती<br /> दुःख पाप हरना ही है दाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br /> कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३6 ) <br /><br />----------------------------<br />देवलोक जैसा मनमोहक<br />सरयू तीरे धरा है न्यारी<br />महिमा गान से किरपा पाकर<br />जान-जान हो जाय सुखारी<br />परिक्रमा लगे कि चारो धाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />सगुण प्रभु -लीला जो जान गाये<br />देह -गेह सब स्वच्छ हो जाये<br />सारे भरम ,मिट जाये पल में<br />सभी पाप -संताप मिटाये<br />राम- भक्ति है ललित ललाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br /> कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(37 )<br /><br />-----------------------------------<br /><br /> <br /><br />जो रघुवर -प्रेम -भक्ति में लीन<br />नहीं रह जाता वह दीन<br />उसकी पूजी बढ़ती जाती<br />कोई नहीं पाता है छीन<br />सब कुछ मिल जाता विन दाम<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br />कल -कल- कल -कल ध्वनि से<br />हरि हर का करती गुणगान<br />बहती जाती और बताती<br />भूत - भविष्य और वर्तमान<br />पाया तुम्हीं से मानव ज्ञान और विज्ञान<br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br /><br /> कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३8) <br /><br />------------------------------<br /><br /> <br /><br /> <br /><br />वाल्मीक ने बालकाण्ड में<br />खूब किया है तेरा बखान<br /><br />कालिदास ने रघुवंशम में<br />तुलसी -मांस में गुणगान<br />तेरी महिमा है गुणों की खान<br /><br /> हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम<br /><br /> -सुखमंगल सिंहsukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-39599354636848956582019-09-28T18:32:27.978-07:002019-09-28T18:32:27.978-07:00कवि हूँ मैं सरयू तट का-2
कवि हूँ मैं सरयू तट का
सम...कवि हूँ मैं सरयू तट का-2<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />समय चक्र के उलट पलट का<br />युगों - युगों से मेरी अयोध्या<br />जाने हाल हर घट - पनघट का<br /> हुआ प्रादुर्भाव श्री विष्णु का<br /> पृथु – समक्ष रखा प्रस्ताव<br /> निन्यानबे यज्ञों के विध्वंस कर्ता<br /> इन्द्र को क्षमा दो रख समभाव<br />चाहें क्षमा अब देवराज<br />अपराध क्षमा हो उस नटखट का<br />समय - चक्र के उलट- पलट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(23) <br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />निरखे नयन हुये रसाल<br />दिव्य आनंद सोहत भाल<br />नारद ऋषि का करतल ताल<br />दमकी छवि माथे विशाल<br /> वृक्ष मुदित हुआ हर वैट का<br /> कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />द्वापर में, दसरथ के लाल<br />औ त्रेता में नन्द गोपाल<br />बारह कला – मर्मज्ञ राम थे<br />सोलहों कला के नन्द गोपाल<br /> रामायण – महाभारत लगे कि है टटका –टटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(24)<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />प्रभु की लीला सुख -‘मंगल अपार<br />बोले राजन, लो करो ध्यान !<br />साधु और चरित्रवान<br />मानव होता श्रेष्ठ - महान<br /> उसे न लगता अटका – झटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />जो जीवों से द्रोह न करते<br />सब दुखियों के दु:ख जो हरते<br />प्यार उसी को हम करते<br />उसी की खातिर जीते – मरते<br /> मेरा घ्यान उसी पर अटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />-----------------------------------------------------<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(25)<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />ज्ञानवान की यही है पहचान<br />अविद्या-वासना – विरक्तवान<br />गौ की जो सेवा है करता<br />वही ज्ञानी होता धनवान<br /> विवेकी पुरुष कहीं न भटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />श्रद्धावान आराधना रत<br />वर्णाश्रम में पल – बढ़ कर<br />चित्त शुद्ध उसका हो जाता<br />तत्व - ज्ञान वही पाता नर<br /> इधर –उधर तनिक न भटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />------------------------------------------------------<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(26)<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />निर्गुण गुणों का पाकर आश्रय<br />आत्म शुद्ध नहीं रहता भय<br />उसी का जीवन होता रसमय<br />उसी के जीवन मेन होता लय<br /> पकड़े पथ वही केवट का<br /> कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />शरीर ,ज्ञान ,क्रिया और मन का<br />जिस पुरुष को ज्ञान होता<br />आत्मा से निर्लिप्त रहता<br />वही मोक्ष पद योग्य है होता<br /> होता न ज्ञान जिसे खटपट का<br /> कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />-------------------------------------------------------<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(27)<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />आवागमन को जो भूत हैं कहते<br />वे आत्मा को नहीं समझते<br />यहाँ - वहाँ हैं वही भटकते<br />जी नहीं पाते हैं वे डट के<br /> उनका जीना अरवट – करवट का<br /> कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />जिसके चित्त में समता रहती<br />मेरा वास वहीं पे रहता<br />मन और इंद्रिय जीतकर<br />लोक पर राज वही करता<br /> माया मोह को उसी ने पटका<br /> कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />-----------------------------------<br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(28)<br />--------------------------------------<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /> <br />समय चक्र के उलट पलट का <br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का<br />समय –चक्र के उलट –पलट का <br /> पला –बढ़ा श्रीराम-चरण में<br /> प्रतिपल रहता, मैं भी रण में <br /> भीतर –बाहर किसके क्या है <br /> इसे जान लेता हूँ क्षण में <br />झटका खा लेता हूँ लेकिन <br />किसी को नहीं देता झटका <br /> राम –लक्ष्मण –भरत- शत्रुघ्न <br />सदा से पूजित रहे हमारे <br />इन्हीं के दम पर चमक रहे हैं <br />ग्रह – नक्षत्र औ नभ के तारे<br />---------------------------------------------- <br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(29)<br /> ------------------------------------ <br /><br /><br />भ्रम और समर्पण में बस <br />स्मरण मैं करता केवट का <br /> संत –ऋषियों की हत्या ने <br /> अंत लिख दिया था रावण का <br /> रुद्र – रूप में कुपित हुये शिव <br /> जगा भाग्य विभीषण का <br />जीत उसी की सदा ही होती <br />होता जो धैर्यवान जीवट का <br /> कवि हूँ मैं सरजू तट का <br /> समय –चक्र के उलट –पलट का<br />----------------------------------------------- <br />कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(30)<br />------------------------------------------sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-34387332894621509352019-09-27T19:57:53.841-07:002019-09-27T19:57:53.841-07:00सुन्दर वस्त्रों से हुए सुसज्जित
और अलंकारों से पृथ...सुन्दर वस्त्रों से हुए सुसज्जित<br />और अलंकारों से पृथु राज<br />स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान<br />आभा अग्नि की, दिखे महाराज<br />पहुंचे सभी न कोई अटका<br />हूँ कवि मैं सरयू - तट का<br />सूत - माधव वन्दीजन गाने लगे<br />सिद्ध गन्धर्वादि नाचने - बजाने लगे<br />पृथु को मिली अंतर्ध्यान - शक्ति<br />महाराज पृथु को सभी बहलाने लगे<br />दे - दे करके लटकी - लटका<br />हूँ कवि मैं सरयू -तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(8)<br />--------------------------------------<br />गुणों और कर्मों का ,वंदीजन ने गुणगान किया<br />पृथु महाराज ने सभी को,मुक्त भाव से दान दिया<br />मंत्री,पुरोहित,पुरवासी,सेवक का भी मान किया<br />चारो वर्णों का एकसाथ आज्ञानुर्वा - सम्मान किया<br />गुंजाइस नहीं नहीं,किसी से खटपट का<br />हूँ कवि मैं सरयू - तट का<br />पृथु बोले ! सुन स्तुति गान<br />जो कहता हूँ ,उसे लें मान<br />मैं अभी श्रेष्ठ कर्म- समर्थ नहीं<br />कि अभी सुनूं मैं कीर्तिगान<br />कर्म -सुकर्म -भगत -जगत का<br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(9)<br />--------------------------------<br />यह सुन सूत सब गायक<br />हर्षित हो ,मन ही मन नायक<br />कहे,आप ही देवव्रत नारायण<br />आप हैं गुणगान के लायक<br />प्राकट्य कलावतार हरि - घट का<br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का<br />धर्ममार्ग में नित चलकर<br />निरपराधी को दंड न देंगे<br />सूर्य किरणें जहां तक होंगी<br />आपके यश - ध्वज फहरेंगे<br />विन्दु न कोई छल - कपट का<br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(10)<br />----------------------------------<br />आपका भू - स्वर्ग - पाताल<br />दुष्टों को खा जाएगा काल<br />चमकेंगे जन - जन का भाल<br />सबके सब होंगे खुशहाल<br />भाग्य जागेगा, कूड़े करकट का<br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br />परब्रह्म का प्राप्ति मार्ग<br />सनत कुमार जी बताएँगे<br />सरस्वती -उद्गम स्थल पर<br />अश्वमेध यज्ञ कराएंगे<br />खेती सीचे पानी पुरवट का<br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(11)<br />-----------------------------------<br />शिव - अग्रज सनकादि मुनीश्वर<br />माथे चरणोद चढ़ाएंगे<br />स्वर्ण सिंहासन पर उन्हें आप<br />ससम्मान विठाएँगे<br />शब्द - अर्थ होगा, उद्भट का<br />कवि हूँ मैं सरयू - तट का<br />अन्न- औषधि छिपा के पृथ्वी<br />सृष्टि में, रूप बदल कर डोले<br />प्रजा भूख, से हो गई व्याकुल<br />श्री मैत्रेय , विदुर से बोले<br />जीवन सभी का अटका – अटका<br />कवि हूँ मैं सरजू -तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(12)<br />-----------------------------------<br />प्रजा करुण – क्रंदन सुन पृथु ने<br />शस्त्र उठा लिया हाथ में<br />पृथ्वी गौ का रूप पकड़ कर<br />थर – थर – थर – थर लगी कांपने<br />सर पृथ्वी ने पाँव पर पटका<br />कवि हूँ मैं सरजू -तट का<br />तब गौ रुपी पृथ्वी ने आकर<br />विनीत भाव से नमन किया<br />आप जगत उत्पत्ति – संहारक<br />विश्व - रचना का मन किया<br />मेरा हाल तो नटिनी - नट का<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(13)<br />-----------------------------------<br />मेरी अन्न – औषधि सब<br />राक्षस मिलकर खा जाते थे<br />सही ढंग से जिन्हें था मिला<br />वे अन्न – औषधि नहीं पाते थे<br />यह सब देख के माथा चटका<br />कवि हूँ मैं सरजू -तट का<br />जनमेजय – सगर और भगीरथ<br />आदि कई हुये थे समरथ<br />अयोध्या की आगे बढ़ी कहानी<br />आये चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ<br />राज्य हुआ शुरू दशरथ का<br />कवि हूँ मैं सरयू – तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(14)<br />-----------------------------------<br />सरयू - गंगा दोनों बहनों का<br />हिमालय में उद्गम - स्थल है<br />काली नदी नाम धारण कर<br />बहुत दूर तक वही पहल है<br />घाघरा नाम कहावत का<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br />राम- लक्ष्मण – भरत – शत्रुघ्न<br />चारो पुत्रों नें जन्म लिया<br />चाँदीपुर ,चंद्रिका धाम में जाकर<br />गुरुजनों से शिक्षा ग्रहण किया<br />ज्ञान मिला हमको घट –घट का<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(15)<br />-----------------------------------<br />गंगा – सरयू मिलन जहां पर<br />सभी वहाँ खेलने जाते थे<br />और वहीं आखेट की विद्या<br />गुरु शृंगी से पाते थे<br />रहा नहीं कोई भी खटका<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br />विश्वामित्र यज्ञ- रक्षा को<br />श्री राम – लक्ष्मण हुये रवाना<br />ताड़का और सुबाहु जब मरा<br />खुशियों का न रहा ठिकाना<br />ध्यान लगाये जनकपुर – गंगा तट का<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का / सुखमंगल सिंह (१६)<br />-----------------------------------------------<br />धनुष – यज्ञ के बाद जुड़ गये<br />सीताराम – सीताराम<br />सीता – हरण साधु बन किया<br />रावण का हो गया काम तमाम<br />कथा बन गई ,राम – राम रट का<br />कवि हूँ मैं सरजू - तट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(17)<br />-----------------------------------<br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-77711227114737410682019-09-27T19:56:54.348-07:002019-09-27T19:56:54.348-07:00 मत निराश हो
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न मांग किसी और से
... मत निराश हो<br />------------------<br />न मांग किसी और से<br />ऊषा की राश्मियां<br />आप अपने आप में<br />खुद प्रकाश कर<br />जो हो न सका<br />उसके लिये मत निराश हो<br />जो हो सकेगा<br />उसके लिये कुछ प्रयास कर<br />कवि हूँ मैं सरयू- तट का/ सुखमंगल सिंह (2)<br />-------------------------------<br />हूँ मैं कवि सरजू – तट का<br />हूँ मैं कवि सरयू – तट का<br />समय चक्र के उलट – पलट का<br />मानव मर्यादा की खातिर<br />मेरी अयोध्या खड़ी हुई<br />कालचक्र के चक्कर से ही<br />विश्व की आँखें गड़ी हुई<br />हाल ये जाने है घट – घट का<br />हूँ कवि मैं सरयू – तट का<br />हुआ प्रादुर्भाव पृथु – अर्ति का<br />अंग – वंश के वेन भुजा मंथन से<br />विदुर – मैत्रेय का हुआ संवाद<br />गन्धर्वों ने सुमधुर गाँ किया मन से<br />मन भर गया हर – पनघट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह (3)<br />----------------------------------<br />पृथु – अभिषेक आयोजन हुआ<br />अभिनंदन ,वेदमयी ब्राह्मणों ने किया<br />पृथ्वी- नदी – समुद्र – पर्वत – स्वर्ग – गौ<br />सबने अर्पण उपहार किया<br />उपहार मिला सब टटका – टटका<br />हूँ कवि मैं सरयू – तट का<br />गंधर्वों ने मिल किया गुणगान<br />सिद्धों ने पुष्पवर्षा से बढ़ाया मान<br />समवेत स्तुति ब्राह्मणों ने करके<br />बांटा मुक्त मन से, समुचित ज्ञान<br />बटा ज्ञान सब टटका - टटका<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(4)<br />------------------------------<br />सूर्यवंश का उगा सितारा<br />कुबेर - सिंहासन ब्रह्मा ले आये<br />धरा- गगन औ रिधि - सिधि गाये<br />सभी देवता मिल देखन आये<br />मगन हुआ मन घट- पनघट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />मनमोहक हरियाली छाई<br />सकल अवध खुशहाली आई<br />राजा पृथु का आना सुन<br />ऋषियों की वाणी हर्षायी<br />प्यासे को जैसे, मिला हो मटका<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(5)<br />----------------------------<br />दिया विश्वकर्मा ने सुंदर रथ<br />चंदा ने अश्व दिये अमृतमय<br />सुदृढ़ धनुष दिया अग्नि ने<br />सूर्य ने वाण दिये तेजोमय<br />शत्रु को करारा दे जो झटका<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का<br />चक्र सुदर्शन दिया विष्णु ने<br />लक्ष्मी दी संपत्ति अपार<br />अम्बिका ने दीं चंद्राकार चिन्हों की ढाल<br />और रूद्र दिये चंद्राकार तलवार<br />काम करे सरपट का<br />हूँ कवि मैं सरयू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(6)<br />----------------------------<br /><br />पृथ्वी ने दी योगमयी पादुकायें<br />आकाश नित्य पुष्पों - मालाएँ<br />सातो समुद्र ने दिये शंख<br />पर्वत–नदियों ने हटाईं पथ की बालायें<br />बना दिया पृथु को जीवट का<br />हूँ कवि मैं सरयू - तट का<br />जल - फुहिया जिससे प्रतिपल झरती<br />वरुण ने दिया छत्र ,श्वेत चंद्र- सम<br />धर्म ने माला ,वायु ने दो चंवर दिये<br />मनोहर मुकुट इन्द्र ने ब्रह्मा ने वेद- कवच का दम<br />सम्पूर्ण सृष्टि का माथा चटका<br />हूँ कवि मैं सरयू - तट का<br />कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(7)<br />-------------------------------<br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-61858795069319155392019-09-27T18:32:44.080-07:002019-09-27T18:32:44.080-07:00सरयू रामप्रिया कहलातीं
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पाप नाशिनी हैं मा...सरयू रामप्रिया कहलातीं<br />—————————<br />पाप नाशिनी हैं मां सरयू<br />असंख्य कल्पनाये सजाये लहराती<br />मैदान में करनाली बन सरयू<br />सुन्दर-सरयू-सुगम-कहती<br />हिमालय से निकली गंगा संग सरयू<br />मां शारदा भी है नाम<br />उत्तराखण्ड नेपाल-सीमा में<br />मां काली नदी है नाम<br />जान्हवी, राप्ती, आमी का नीर<br />घाघरा, गोंगरा नाम बताये<br />उनके सभी पाप धूल जायें<br />डुबकी सरयू में जो लगाये<br />—————————————————————<br />कवि हूं मैं सरयू-तट का / सुखमंगल सिंह (३१) <br />—————————————————————<br />सरयू रास्ते संग-संग श्रीराम<br />ऋषि विश्वामित्र चले हैं<br />वाल्मीकी–वालकाण्ड बताये<br />शिक्षा देने को निकले हैं<br />ऋग्वेद ने भी किया गुणगान<br />मां सरयू वाकई महान<br />परंपरा में देविका कहाती<br />और रामप्रिया भी नाम<br />आओ! आज मां सरयू का<br />सब मिलकर गुणगान करें<br />श्री हनुमत से आज्ञा ले 'सुखमंगल' <br />शारदा-सरयू में स्नान करें <br />————————————————————<br /> सरयू-तट का / सुखमंगल सिंह (३२) २ <br />————————————————————sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-59506317557610702272019-09-14T04:42:17.487-07:002019-09-14T04:42:17.487-07:00"हूँ कवि मैं सरयू -तट का"
पृथु बोले ! स..."हूँ कवि मैं सरयू -तट का"<br /><br />पृथु बोले ! सुन स्तुति गान<br /><br />जो कहता हूँ उसे लें मान<br /><br />मैं अभी श्रेष्ठ कर्म -समर्थ नहीं<br /><br />कि अभी सुनूं मैं कीर्तिगान<br /><br />कर्म -सुकर्म -भगत -जगत का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />यह सुन सूत आदि सब गायक<br /><br />हर्षित हो ,मन ही मन नायक<br /><br />कहे,आप ही देवव्रत नारायण<br /><br />आप हैं गुणगान के लायक<br /><br />प्राकट्य कलावतार हरि -घट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />धर्ममार्ग में नित चलकर<br /><br />निरपराधी को दंड न देंगे<br /><br />सूर्य किरणें जहां तक होंगी<br /><br />आपके यश -ध्वज फहरेंगे<br /><br />विन्दु न कोई छल - कपट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />आपका भू -स्वर्ग -पाताल<br /><br />दुष्टों को खा जाएगा काल<br /><br />चमकेंगे जन -जन का भाल<br /><br />सबके सब होंगे खुशहाल<br /><br />भाग्य जागेगा, कूड़े करकट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />परब्रह्म का प्राप्ति मार्ग<br /><br />सनत कुमार जी बताएँगे<br /><br />सरस्वती -उद्गम स्थल पर<br /><br />अश्वमेध यज्ञ कराएंगे<br /><br />खेती सीचे पानी पुरवट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />शिव -अग्रज सनकादि मुनीश्वर<br /><br />माथे चरणोद चढ़ाएंगे<br /><br />स्वर्ण सिंहासन पर उन्हें आप<br /><br />ससम्मान विठाएँगे<br /><br />शब्द - अर्थ होगा ,उद्भट का<br /><br />कवि हूँ मैं सरयू -तट का<br /><br />-- सुखमंगल सिंहsukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-66597221744208177922019-08-23T05:30:22.054-07:002019-08-23T05:30:22.054-07:00स्वर्ग विभा ई।- बुक ,समीक्षा ,
स्वर्ग विभा (ई - बु...स्वर्ग विभा ई।- बुक ,समीक्षा ,<br />स्वर्ग विभा (ई - बुक ) अवतरण <br />हिन्दी के वरिष्ठ कवि ,लेखक ,पत्रकार एवं समाजसेवी श्री सुखमंगल सिंह का 'स्वर्ग वभा ' नामक ई - बुक पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ | इसमें उनकी गद्य -पद्य की सैकड़ों सारगर्भित रचनाएं भारतीय जान जीवन ,संस्कृति, साहित्य , विचार,परंपरा और राष्ट्र- वादिता से ओत -प्रोत हैं | साथ ही देश के प्रतिष्ठित महापुरुषों ,साहित्यकारों एवं राष्ट्रीय चरित्रों के बारे में जानकारियां भी यथेष्ट रूप में उपलब्ध हैं |<br /><br />प्राचीन काशी का इतिहास ,प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री पात्र ,आर्थिक उदारीकरण , आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि आलेखों से लेखक की विचार शीलता से परिचित होना भी सुखद अनुभव प्रदान करता है | डायरी ,वार्ता को भी इस संकलन में स्थान प्रदान करना लेखकी विविधता का परिचायक है | <br />इसमें प्रकाशित कवितायें प्रायः प्रकृति ,पर्यावरण ,जीवनादर्शों ,मानवीय मूल्यों को समर्पित हैं जिसमें कवि का वैचारिक सौंदर्य लोकमंगल की कामना को बल प्रदान करता है | साथ ही जीवन के कटु यथार्थ से कवि का सुपरिचित होना भी प्रासंगिक है | <br />अतः कवि सुखमंगल जी ने अत्यंत प्रखरता के साथ आम आदमी की पीड़ाओं ,समस्याओं आदि को भी इस संकलन मे सहेजने में सफलता प्राप्त की है , जो प्रशंसनीय है|<br />आशा है, अहिंसा, सत्य,करुणा के प्रचार- प्रसार में कवि की रचनाएँ समाज को बल प्रदान करेंगी और ई- बुक पाठकों के बीच इस संकलन का भरपूर स्वागत होगा | रचना- संचयन हेतु बहुत - बहुत बधाई |<br /><br />दिनांक -22/08/2019 हस्ताक्षर- सुरेन्द्र वाजपेयी<br />द्वारा- हिनदी प्रचारक संस्थान<br />पिशाचमोचन, वाराणसी-10 (उ0 प्र0 )sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-55367703033108825392019-08-10T18:18:23.985-07:002019-08-10T18:18:23.985-07:00मूल्यांकन -काव्य साधना (प्रथम खण्ड ,ई.बुक )विकिपीड...मूल्यांकन -काव्य साधना (प्रथम खण्ड ,ई.बुक )विकिपीडिया अवतरण (गूगल +कवितायें ) कवि - लेखक :सुखमंगल सिंह <br />काशी और पूर्वांचल को समूचे विश्व से जोड़े हुए हैं सुखमंगल सिंह - डॉ अजीत श्रीवास्तव <br />----------------------------------------------------------------------------------------------<br /><br />मेरे समक्ष इस समय बहुचर्चित कवि - लेखक सुखमंगल सिंह की ' काव्य साधना ' है | पृष्ठ दर पृष्ठ ज्यों -ज्यों पलटता , देखता - पढ़ता आगे बढ़ रहा हूँ , बहुत कुछ नया मिल रहा है | कवि के मौलिक रचना संसार का व्यापक फलक , विश्व स्तर पर जुड़ाव , पारिवारिक ,सामाजिक , राष्ट्रीय - अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों पर पैनी नजर , क्या कुछ नहीं है ' काव्य साधना में | <br />पांच दशक से निरंतर सिर्फ ' साहित्य सफर ' में इन दिनों मुझसे प्रायः एक सवाल बराबर किया जाता है - अजीत जी ! आप वाट्स एप ,फेसबुक क्यों यूज नहीं करते ? अधिकतर लोगों के इस सवाल का मैं कोई जवाब नहीं देता | <br />दरअसल ये दोनों सुविधायें साहित्यिक क्षेत्र में टांग अड़ाने वाले बच्चों के लिए हैं | इन बच्चों को ( फेसबुकिया ) ऐसा प्रतीत होता है कि ये साहित्य में हाथी ठेल रहे हैं | मैं महसूस करता हूँ कि फेसबुक में स्वच्छता अभियान का चलाया जाना जरूरी है | अउराडबेरों की अउराडबेरी फेसबुक की मर्यादा मिट्टी में मिला रही है किन्तु सिर्फ दो प्रतिशत ही ऐसे हैं जो कि कुछ सार्थक लेकर आते हैं | ऐसे दो प्रतिशत लोगों में सुखमंगल सिंह अग्रणी भूमिका में हैं | <br />गूगल से नियमित नौ साल से जुड़े हैं | गूगल की वजह से सुखमंगल सिंह यत्र - तत्र - सर्वत्र हैं | <br />मेरी सोच जाति -धर्म - सम्प्रदायवादी ,बकवादी कभी नहीं रही है | मैं साफ तौर पर सुनने - बोलने - लिखने में विश्वास रखता हूँ | छोटी - मोटी उपलब्धियां लेने के लिए "रीढ़ की हड्डी भी चिटखने लगे" इतना झुकाने और लपर - चपर करने का आदी नहीं हूँ ! लोग बाग़ सीख देते हैं कि दौर लपर - चपर करने वालों का ही है | <br />मैनें कवि सुखमंगल सिंह को बराबर 'साहित्य और समाज के लिए सकारात्मक ' भूमिका में ही पाया है | मुझसे साहित्य से इतर ,व्यक्तिवादी चर्चा इन्होंने कभी नहीं की | <br />'वसुधैव कुटुम्बकम ' भारतीय दृष्टि है | सत्य,अहिंसा और प्रेम इस भारतीय दृष्टि की रक्षा और विकास के अस्त्र हैं ! आज सम्पूर्ण विश्व में भारत की दृष्टि और उसके अस्त्रों का लोहा मान लिया है | अब तो मार्क्सवादी - लेनिनवादी और माओवादी सभी अपने घुटने टेक चुके हैं ! पूरे विश्व में आज गांधी - गौतम सब पे भारी हैं | वह दिन दूर नहीं जब कि गांधी - गौतम के विचारों - सिद्धांतों को पूरा विश्व अपना लेगा | 'काव्य-साधना 'इन सभी बातों पर बल प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण प्रयास है | <br />दृष्टव्य हैं 'काव्य साधना ' की पूरे विश्व को ललकारती और दिशा प्रदान कराती ये काव्य पंक्तियाँ -<br />" हों सिले यदि होठ तो भी गुनगुनाना चाहिए <br />रोना - धोना छोड़ के बस मुस्कराना चाहिए <br />विद्रोह की ज्वाला आखिर भड़क उठी है क्यों <br />खुद समझना और सभी को समझाना चाहिए "<br />आज देश अमीर - गरीब , दो वर्गों में होता जा रहा है | मध्यमवर्गीय स्थिति अब समाप्तप्राय हो चली है | आज पेट और सोच दोनों पर भौतिकतावादिता बुरी तरह हावी है | संस्कृति और सभ्यता सांस्कृतिक प्रदूषण के गिरफ़्त में है | <br />शिक्षा और स्वास्थ्य पर वर्त्तमान सरकार को ३७० और ३५ ए जैसी दृष्टि अपनानी होगी , देश आज ऐसा महसूस करने लगा है | शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन समय की मांग है | <br />सुखमंगल सिंह अपनी काव्य साधना में कहते हैं -<br /> मेरा जुनून मुझको ही कोसता रहा <br />हम तो उठाईगीरों के गुलाम हो चले <br />रचनाकारों ,साहित्यप्रेमियों यहाँ तक कि आम जनों के लिए भी काव्य साधना उपयोगी ,संग्रहणीय है | सुखमंगल जी सपरिवार स्वास्थ्य ,सानन्द और दीर्घजीवी हों ! उनकी रचनाशीलता निरंतर विकसित होती रहे ,यही कामना है |<br /><br />दिनांक -10/08/2019 हस्ताक्षर - ड़ा अजीत श्रीवास्तव <br />शिवकृपा : सी -4/204-1 ,कालीमहल (सरायगोबर्धन) चेतगंज <br />वाराणसी (उ0 प्र 0 ) -221010 <br /><br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-52193588348007643272019-07-27T20:10:48.720-07:002019-07-27T20:10:48.720-07:00Sukhmangal Singh
Jul 27, 2019, 10:00 PM (10 hours...<br />Sukhmangal Singh <br />Jul 27, 2019, 10:00 PM (10 hours ago)<br />to me<br /><br />"मंगल विचार "(ईमानदार राजा )<br />----------------<br /> ईमानदार शासक के हाथ में जब एक देश आता है तो विश्व के अनेक देशों को वह जो सन्देश देता है ,वही सर्वमान्य होता है | उस शासक से पहले वर्षों से शासन चलाये हुए लोगों को ईमानदार राजा खटकता है, जिसकी परवाह न करते हुए ईमानदार राजा अपने निश्चित लक्ष -पथ पर अग्रसर होता जाता है | यह मानकर कि -<br />आग को भड़का रही है जो <br />आज अंदर की हवायें हैं <br />कुछ पसीने से बनी होंगी <br />कुछ मुकद्दर की हवायेँ हैं (एक सूरज कल का भी -पृष्ठ ६२)<br />वह राजा जो परमात्मा का नाम लेते हुए आगे बढ़ता है ,अजेय होता है | प्रजाजनों के लिए सुखों का वर्धन होकर रहे | कष्टप्रद आचरण करने वालों , अहितकारी तत्तों को समूल नष्ट कर दे और परमात्मा का कृपा पात्र रहे | वही राजा प्रजा का सच्चा स्वामी होता है | (वेदामृत अथर्ववेद सुभाषितावली ,पृष्ठ ९७-१०० )<br />प्यासों को रस - कलश दो न दो <br />आगे खाली गिलास मत रखना (एक सूरज कल का भी -पृष्ठ १०)<br />जिंदगी है दस्तावेज जैसी <br />स्नेह के सम्बन्ध सारे आंकड़े है ( आदमी अरण्यों में -पृष्ठ -२० ) <br />मैल को अंदर छिपाकर के कभी हम <br />आवरण ही आवरण ढोते नहीं हैं <br />अब फरिश्ते हैं शहर में <br />क्यों यहां अब आदमी होते नहीं हैं ( सारस्वत सलिल ,हाथी के दांत पृष्ठ ४९ ) <br />लोकतंत्र में रीति - नीति - धर्म ,मन को भली प्रकार से न समझकर चलने पर ऐसों को देश की जनता सत्ता से बेदखल कर देती है | ऐसा शासक सत्ता से बेदखल होने के उपरांत भी यदि अपने आचरण -व्यवहार में बदलाव न करके ईमानदार राजा को बदनाम करने की साजिशें बनाने में ही मशगूल रहता है तो जनता उसे स्वीकार नहीं पाती | सत्ता विहीन राजा चाटुकार वाणी से अथवा क्रूर हरकत से सत्तायुक्त राजा को हटाने की युक्ति में यदि मशगूल रहता है तो तरह से हानि उसी की होती है | वशीकरण के मन्त्रों से क्या बाँध सकोगे <br />सिर्फ प्रेम के बंधन में बढ़ने वाले हम <br />मेल जॉल , भाई चारा , अपनापन भूला <br />आपस में कब थे यूं बटने वाले हम | ( आदमी अरण्यों में -पृष्ठ -३४ ) <br />- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी २२१००२ sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-8504079951449175302019-07-09T15:00:13.976-07:002019-07-09T15:00:13.976-07:00"साजन प्रदेश "
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साजन बसे परदेश..."साजन प्रदेश "<br />----------<br />साजन बसे परदेश<br /><br />सूनी - सूनी लगे<br /><br />नाचे गायें घर चौबारे<br /><br />नगरी नगरी द्वारे द्वारे<br /><br />जहर लागे हंसी ठिठोली<br /><br />सून सून लागे होली !<br /><br /><br />चारो और रंग बरसे है<br /><br />मेरा सूखा मन तरसे है<br /><br />खाली अबीर गुलाल झोली<br /><br />सूनी सूनी लागे होली |<br /><br /><br />आँखे सबकी ,खुशियां वांचे<br /><br />पीली पीली सरसो नाचे<br /><br />रंगीले परिधान में टोली<br /><br />सूनी सूनी लागे होली |<br /><br /><br />होड़ मची कमचोर बली में<br /><br />हुड़दंगी है गली गली में<br /><br />अपनी तो है रवानी होली<br /><br />सूनी सूनी लागे होली || <br /><br />- सुखमंगल सिंह,वाराणसी sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-3882452430655060892019-05-18T03:34:16.493-07:002019-05-18T03:34:16.493-07:00"बताना होगा "
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भारत सद्भ..."बताना होगा "<br />----------------<br />भारत सद्भाव भरा राष्ट्र जहां को बताना होगा | <br />अतिहन्त -अपाचे चारो दिशा में लगाना होगा || <br /><br />विश्व बंधुत्व बदहाल सभी को सिखाना होगा | <br />सदियों क सुन्दर सुखद रूप दिखाना होगा || <br /><br />सबके लहू का एक जैसा रंग उन्हें बताना होगा | <br />इक्कीसवीं का देश हमारा हमें समझाना होगा || <br /><br />अनुप्रमाणित धरा पर फिर से श्री राम को आना होगा | <br />घर -घर ,जन जन , मन में बसे रावण को भगाना होगा ||<br /><br />सरयू की उलटी धारा दसरथ वंश में बही थी बताना होगा | <br />साहित्य - कथा की दिशा - दशा को संस्कार में ढालना होगा || <br /><br />कौशल = कोशलाधीश का लोगों को समझाना होगा | <br />नर्वदेश्वर की महिमा गरिमा सोमेश्वर की गाना होगा || <br /><br />बलिदानियों के बलिदान की गाथा को हमें नहीं भुलाना होगा | <br />गोकुल गोखुर गाँव का गाना पवित्र -पवित्रता से सुनाना होगा || <br />- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी ,मई १८/१९ sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-90723271591072484462019-05-05T17:41:22.980-07:002019-05-05T17:41:22.980-07:00"दीवाली पर्व "
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झुर-झुर..."दीवाली पर्व " <br />--------------- <br />झुर-झुर बहत पुरुवैया दीपावली सुखद सुहावन , <br />दीप सबके सजे अगनईया औ मिठाई लुभावन | <br />झिलमिल -झिलमिल दीप टीमटिमात मनभावन , <br />मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा सजे आसमा सुहावन | <br />कुंजों में,उपवन में शांति भुवन सुखधाम दिखावन, <br />गुरुजन परिजन ध्येय धन्य दी गुणगान लुटावन | <br />अयोध्या- मथुरा -काशी- प्रयाग धाम मनभावन, <br />धनवंतरी पहले पहल आए गाँव - गाँव बतावन | <br />बाहर - भीतर सखी औ साजन शोभा बढ़त पावन , <br />दीप प्रज्वलित घी तेल बाती से ठाँव -ठाँव दिखावन | <br />रीझ -खीज स्वार्थ सब भूली सुखदायक सुख आँगन , <br />छबि निरखत 'मंगल' मोहन मन कुंज कुंज पावन | <br />छोरी - गोरी दीप जलावत गावत विनोद मनभावन, <br />झुर-झुर बहत पुरुवैया दीपावली सुखद सुहावन || <br />- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी , यू पी. भारत sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-22440996787226475002019-03-30T19:20:49.907-07:002019-03-30T19:20:49.907-07:00ऐसा जतन करें "
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चूल्हा ...ऐसा जतन करें "<br /> ------------------<br />चूल्हा - चौका रोटी पानी /<br /> घर -घर यही कहानी/ <br /> भूखा पेट कोई मिल जाये /<br /> आओ उसे भरें <br />हरी - भरी हो सबकी बगिया /<br />ऐसा जतन करें | <br /> गाँव ,गली ,चौबारे गूंजे /<br /> तुलसी औ कबीर की बानी /<br /> चूल्हा चौका रोटी पानी। ........<br /> हर चौखट दरवाजे गायें /<br /> शुभ- शुभ मंगल गीत / <br /> शत्रु अगर कोई दिख जाये /<br /> वह भी बन जाये मन मीत | <br /> बूढ़ा मन महसूस करे कि /<br /> आई लौट के पुनः जवानी /<br /> चूल्हा - चौका रोटी - पानी || <br /> -सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-38845757155931250462019-03-28T19:09:50.918-07:002019-03-28T19:09:50.918-07:00सीमा पर तैनात
भारत के जावाज़ जवानों के नाम -
---...सीमा पर तैनात <br />भारत के जावाज़ जवानों के नाम - <br />-------------------------------------------<br />सीमा पर तैनात जवानों<br />कर दो बंद दुश्मन की बोली<br />मिटा दो कुल आतंकी टोली<br />पाक से खेलो जमके होली<br /><br />सौ पर भारी एक जवान हो<br />तलुए तले अब पाकिस्तान हो<br />तिरंगा इस्लामाबाद में लहरे<br />वहां तलक अब हिंदुस्तान हो<br /><br />खाली न जाए एक भी गोली<br />पाक से खेलो जमके होली<br /><br />धरती मां की शान तुम्हीं से<br />साधु संतों का ध्यान तुम्हीं से<br />भारत का मान - सम्मान तुम्हीं से<br />जनगण मण का गान तुम्हीं से<br /><br />युद्ध नहीं अब हंसी ठिठोली <br />खेलो पाक से जमके होली।।<br />-सुखमंगल सिंह,वाराणसीsukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-23246615584537194832019-03-28T19:06:57.310-07:002019-03-28T19:06:57.310-07:00"मोदी को फिर लाना है "
-----------------..."मोदी को फिर लाना है "<br />-------------------------<br />घर - घर जाके हमें -आपको <br />सबको यह समझाना है <br />मोदी को फिर से लाना है <br />भारत भूमि की माटी का <br />हमको कर्ज चुकाना है <br />मोदी को फिर से लाना है |<br /><br />भारत अपना ,पांच साल मे<br />पाहुचा उच्च शिखर पर <br />चीन - पाक जैसे दुश्मन <br />दुबक गये दरबे मे डर कर <br />हमारे जवानों का दम- खम<br />पूरे विश्व ने जाना है <br />मोदी को फिर से लाना है |<br /><br />चारो ओर रखवाली हो <br />घर-घर मे खुशहाली हो <br />बेरोजगारी दूर जा भागे <br />खेतों में हरियाली हो <br />वैज्ञानिकों ने भी अपना सीना ताना है <br />मोदी को फिर से लाना है |<br /><br />चोर कौन है, भेद यह खोले<br />कवियों की अब कविता बोले <br />सच का पहले साथी होले <br />चोर के संग न डोले <br />सामी नहीं अब गवाना है <br />मोदी को फिर से लाना है ||<br />-सुखमंगल सिंह,वाराणसीsukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-9594253527459330212019-02-14T05:52:48.655-08:002019-02-14T05:52:48.655-08:00"भोर "
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जीवन का परम सत्य
सुबह ..."भोर "<br />---------<br />जीवन का परम सत्य <br />सुबह हमें बताती |<br /><br />गौरव गाथा हमें <br />पढने हेतु जगाती |<br /><br />जीवन के अरमानों की <br />मर्यादा हमें सिखाती |<br /><br />मनसा वाचा कर्मणा <br />वेद काल दोहराती |<br /><br />उषा काल का महत्व <br />सुबह हमें जनाती||<br />-सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-11478613799099296762019-02-14T05:46:27.060-08:002019-02-14T05:46:27.060-08:00"लाहौर फतह "
दन- दन -दन - दन
चलती तोपें ..."लाहौर फतह "<br />दन- दन -दन - दन<br />चलती तोपें |<br />सन - सन सन सन -<br />बन्दूक की गोली |<br />सीने पर माँ -आवरण<br />दुर्गा माता बोली ?|<br />बचपन में बच्चे को<br />बढ़िया प्यार नहीं दे पाया |<br />सीमा पर लड़ने दुश्मन से<br />वीर निकल आया |<br />दूध पीने को दो घू ट नहीं<br />भरपूर गोली वर्शाया|<br />दुश्मन के छक्के छूटे<br />लाहौर फतह कर आया ||<br />- सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-55697621140608645972019-02-14T05:37:10.406-08:002019-02-14T05:37:10.406-08:00"निर्मल गंगा? "
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गंगा म..."निर्मल गंगा? "<br />-----------------<br />गंगा मरुथल कभी ना बनने पाए /<br />'मंगल' पाताले गंगा चली न जाए |<br /><br />शोर-शौर्य से गंगा साफ नहीं होती /<br />धर्म धैर्य धीरता कर्माने को धाए ?<br /><br />गंगा की सफाई क वर्षों डंका पिटाए /<br />मौसम का मिजाज समझ न पाया |<br /><br />जगह जगह घाट बने- काशी भाया /<br />मेला- मिलन- मनोहर भी रचाया |<br /><br />देश और परदेश से कसमें खाया /<br />धरा रेगिस्थान बनेगी- समझाया |<br /><br />गगनस्पर्शी शोर जोर दिखलाया /<br />फिर भी जल निर्मल नकर पाया ?||<br />- सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-60210793560815236362019-02-14T05:23:42.337-08:002019-02-14T05:23:42.337-08:00"खाईं बढ़ल"
वर्षों बाहर अंजोर दिखल
भीतर..."खाईं बढ़ल"<br /><br />वर्षों बाहर अंजोर दिखल<br /><br />भीतर अंधियार भयल।<br /><br />कच्ची कली के मामले में<br /><br />अँखियन से जहर ढहल।<br /><br />नेहियाँ-नदिया मेड बधल<br /><br />गंउवा में जहर ढलल।<br /><br />शहर 'मंगल' गंउवा बढल<br /><br />मनइन में खाई बढ़ल || <br />-सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-37808931721969202972019-02-14T05:20:19.879-08:002019-02-14T05:20:19.879-08:00"नव वर्ष की शुभकामनाएं "
--------------..."नव वर्ष की शुभकामनाएं " <br />------------------------------<br />नव वर्ष की शुभकामनाएं /<br />बच्चों में उत्साह जगाएं |<br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br /><br />प्रांगन मंदिर संस्कृति अपनाएँ / <br />भगवा ध्वज की पताकायें |<br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br /> <br />तिलक चन्दन टीका लगाएं ?<br /> नव वर्ष धूम से मनाएं | <br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br /><br />शंख ध्वनि सुमधुर बजाएं / <br />पुरुषोत्तम राम को याद दिलायें |<br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br /><br />विक्रमादित्य का विक्रमी मनाएं / <br />डा ० केशव राव जयंती मनाएं |<br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br /><br /> झूले लाल को ना भुलाएँ / <br />नव वर्ष की शुभकामनाएं |<br />देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||<br />- सुखमंगल सिंह sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5939329222897659356.post-56196512278056456432018-09-17T16:28:47.072-07:002018-09-17T16:28:47.072-07:00"जीव-जीवकी गती और कर्म धरम"
स्वार्थ में ..."जीव-जीवकी गती और कर्म धरम"<br />स्वार्थ में चारो ओर धाए;<br />गोविंद गुणगान कभी ना गए।<br />तेरा मेरा कहता चौरनगा!<br />साहिब को आए हलकारे।।<br />बधे काल ते चौखम्भा:<br />ना कोई नेता-बेटी नारी संगा।<br />सारी कर्म किया जो भारी;<br />अब वह संग चले तुम्हारे।।<br />आगे जम ठाढे मतिहिना ;<br />धर्मराज बूझ सब लीना।<br />जिस नियत 'मंगल पैदा कीनहा;<br />पा रूप नया मानव सब लीइन्हा।। <br />sukhmangalhttps://www.blogger.com/profile/03076745453862353480noreply@blogger.com