गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

महाकवि सुमित्रा नंदन पंत द्वारा लिखी कुमाउनी कविता


पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाल पुष्प बुरांस अनेक स्थानीय लोककथाओं को समेटे है महाकवि सुमित्रानेदन पंत ने भी श्रेत्रीय कुमाउनी भाषा में इस पुष्प पर कुछ पंक्तियों लिखी हैं जो मुझे ब्लाग बैरंग बैरंग ...पर मिलीं इन्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं

शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस धरोहर के प्रकाशन हेतु आभार, शुक्ला जी.
    आपको सपरिवार 'होली' की शुभकामनाएं.

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  2. ...... सुंदर प्रस्तुति.
    पृकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पन्त जी कि उपरोक्त कुमाउनी कविता को साझा करने हेतु आभार.

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  3. ...... सुंदर प्रस्तुति.
    पृकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पन्त जी कि उपरोक्त कुमाउनी कविता को साझा करने हेतु आभार.

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  4. नारी तू नहीं है अबला

    है शक्ति स्वयं पहचान
    खुद को शोषित मान ले
    फिर कौन करे सम्मान
    दूषित जग से लड़ना होगा
    खुद ही आगे बढ़ना होगा.

    रूप धार कर रण चंडी का

    अधिकार छीन लेना होगा

    जगा आत्म अभिमान

    नारी तू नहीं है अबला

    है शक्ति स्वयं पहचान

    क्या क्या नही तुझे सब कहते

    कैसी कैसी फब्ती कसते

    तुझे मूढ़ अज्ञानी कहते

    दुर्गुण आठ सदा उर रहते

    सब मिल करते बदनाम

    नारी तू नहीं है अबला

    है शक्ति स्वयं पहचान

    पोखर सी ख़ामोशी क्यों
    सागर सी तू रह मौन
    कर बुलंद अपने को तू
    आकाश झुके पूछे तू कौन
    जग के इन झंझावातों में
    तुझको स्वयं संवरना होगा
    अब मत रहना अनजान
    नारी तू नहीं है अबला

    है शक्ति स्वयं पहचान

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