शनिवार, 29 अगस्त 2015

श्रीयुत धीरेन्द्र वर्मा जी के साथ खिंची यह सेल्फी

हिंदी साहित्य का एक कालजयी उपन्यास है "चित्रलेखा"। इसके रचयिता श्री भगवतीचरण वर्मा की आज 112 वीं जयन्ती है ।
  भगवती बाबू ने यह उपन्यास 1934 में लिखा था जिसके छ वर्ष बाद 1940 में पहली बार इस पर आधारित फिल्म "चित्रलेखा" बनाई गयी । दुसरी बाद इस उपन्यास पर आधारित फिल्म 1964 में पुनः बनी और सुपर हिट रही... इस फिल्म से कमाए हुए पैसे से ठीक छ वर्ष बाद 1970 में भगवतीचरण वर्मा ने महानगर लखनऊ में मकान बनाना आरम्भ किया और घर का नाम रखा "चित्रलेखा"। 
100 से अधिक संस्करण वाला उपन्यास "चित्रलेखा" आज 81 वर्ष का हो गया है तथा महानगर की यह "चित्रलेखा" 45 वर्ष की हो गयी है जिसमें आज उनके छोटे पुत्र साहित्यकार श्री धीरेन्द्र वर्मा निवास करते हैं।
  बीती रात यह महानगर "चित्रलेखा" ऐसी दीख रही थी ... उधर से गुजरा तो यह द्रश्य और श्रीयुत धीरेन्द्र वर्मा जी के साथ खिंची यह सेल्फी आपके लिए खीच लाया ....

बुधवार, 15 जुलाई 2015

देवता के सामने तडफती मछली ...(समीक्षा)

डॉ. धर्मवीर भारती की पहली पत्नी सुश्री कांता भारती ने तलाक के बाद वैवाहिक जीवन की मुश्किलों पर एक उपन्यास 'रेत की मछली' भी लिखा है। माना जाता है कि यह उनकी पीडाओं और अनुभूतियों की प्रस्तुति है।
धर्मवीर भारती का कालजयी उपन्यास गुनाहों का देवता पहली बार 1959 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास ने हिन्दी साहित्य में जो स्थान बनाया वह दूसरे किसी अन्य उपन्याय को न मिल सका। इस उपन्यास के पात्र चन्दर और सुधा को समूचे हिन्दी साहित्य ने अपने आस पास अनुभव किया। कहा जाता है कि इस उपन्यास के नायक चंदर के रूप में धर्मवीर भारती ने स्वयं का चरित्र जिया है। श्री भारती की पत्नी रही कांता भारती ने इस उपन्यास के प्रकाशन के 16 वर्ष बाद 1975 में एक उपन्याय लिखा 'रेत की मछली' गोया कि कवियों का प्रिय शगल रहे किसी नवयौवना के सोलहवां वर्ष की भांति धर्मवीर भारती जी के गुनाहों के सोलहवे वर्ष को राह दिखाने का प्रयास किया गया हो।
........निःसन्देह यह उपन्यास स्त्री विमर्श के चुनिंदा पठनीय उपन्यासों में स्थान रखता है। जहां गुनाहों का देवता में किशोरावस्था से आरंभ हुये प्रेम के प्रस्फुटन के चलते किशोरवय लडकें लडकियों की ऐसी बाइबिल है जिसे पढकर वे तकिया पर सिर रखकर आंसू भी बहाते है और जब यही बच्चे जवान होकर प्रौढावस्था की ओर बढते हैं तो एक बार फिर इस बाइबिल को निकालकर पढते हैं और सोचते हैं कि उसे पहली बार पढकर वे क्यों रोये थे। .....यह भावुक कर देने वाला उपन्यास है परन्तु गुनाहों के इस देवता के गुनाह वास्तव में कैसे थे इसे जानने के लिये कांता भारती की कृति रेत की मछली भी उन सभी पाठको ंद्वारा अनिवार्य रूप से पढी जानी चाहिये जिन्होंने गुनाहों का देवता को पढा है। निंसन्देह उपन्यास के शिल्प की दृष्ठि से यह गुनाहों के देवता की तुलना में काफी कमजोर कृति है परन्तु कहना न होगा कि यह गुनाहों के देवता का अविभाज्य पहलू अवश्य है और साथ ही महानता का मुखौटा पहने चंदर केे असली चेहरे को परत दर परत उधेडने वाला उपन्यास है।
''मैं आजीवन तुम्हारे साथ खडा रहूंगा''
नायक के द्वारा कहे गये इस वाक्यांश की अनुभूति को जब लेखिका नायिका के शब्दों में व्यक्त करती है तो वह भी लेखकीय धरातल पर धर्मवीर भारती के समानान्तर खडी मालूम देती है
''मैं आजीवन तुम्हारे साथ खडा रहूंगा गिनती के ये कुछ शब्द जीवन की नयी परिभाषा होते हैं एक नया आश्वासन होते हैं यह उस दिन मैने जाना..... घर तक का वह रास्ता न जाने कितना लंबा और अंधेरा महसूस हुआ । रह रह कर लगता जैसे कोई अनहोनी पीछा कर रही हो मैं तुम्हारे साथ खडा रहूंगा आजीवन शब्द गूंजते और में संयत होकर आगे चल पडती । उस लंबे रास्ते के साथ साथ मेरी यातना भी बढती जा बढ जा रही थी। मानसिक तनाव ने थोडी देर में ही मेरे रक्त में ज्वर फैला दिया था।''
ऐक और उदाहरण देखें-
''....कहकर वे कुर्सी से उठे और मेरी ओर आ गये । पहला आंसू शायद कठिनाई से निकलता है, किन्तु उसके बाद अंतिम आंसू कठिनाई से रूकता भी है। मैं रोती जा रही थी उन्होंनेआतुर होकर मेरा सिर अपनी बाहों में दबा लिया । स्नेह पाकर अब मन खुलकर रो लेना चाहता था। ..''
गुनाहों का देवता, वाकई भावुक कर देनेवाला उपन्यास है... लेकिन इस देवता के गुनाह कैसे थे... इसे जानने के लिए धर्मवीर भारती की पत्नी कांता भारती का उपन्यास रेत की मछली भी जरुर पढ़ना चाहिए... शिल्प की दृष्टि से रेत की मछली गुनाहों के देवता के बरअक्स बहुत कमतर है... लेकिन वो गुनाहों को जस्टीफाई करने की कोशिश करनेवाला नहीं, बल्कि महनता के मुखौटे के पीछे छिपे चेहरे को परत दर परत उधेड़ कर कलई खोलने वाला उपन्यास है.. इस दुर्लभ चित्र में कान्ता भारती जी उस सदी के महान लेखक हरिवंश राय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत के साथ खडी दीख रही हैं। कांता जी का यह दुर्लभ चित्र आदरणीय श्री अनिल जनविजय जी के सौजन्य से प्राप्त हो सका है

गुरुवार, 14 मई 2015

समरथ को नहीं दोष गुसाई

अब तक निचले स्तर के न्यायालयों में भृष्टाचार की शिकायतें जन सामान्य में सुनी जाती थीं परन्तु इधर भारत के उच्च न्यायालयों ने जिस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित किया है उससे आम जन में इसके प्रति अच्छा संदेश नहीं गया है। चाहे निचली अदालत से सलमान खान को हुयी सजा का प्रकरण हो या तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का आय से अधिक संपत्ति वाला प्रकरण दोनो ही प्रकरणों में यह धारणा प्रबल हुयी है कि नामी गिरामी वकील करने से अपेक्षित न्याय मिलना अवश्यंभावी है। उच्च न्यायालय में सलमान खान के केस की अपील करने वाले अधिवक्ता हरीश साल्वे की कोर्ट में पहुंचने की फीस 30 लाख रूपये से लेकर 1 करोड रूपये प्रतिदिन बतायी जा रही है।
 .... सोचता हूं कि जिस देश में गरीबी की रेखा का पैमाना 32 रूपये प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र तथा 47 रूपयें प्रतिदिन शहरी क्षेत्र में हो (गरीबी की नयी रेखा)
 ....और इतने निम्न मानक के बावजूद 21.92 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही हो (भारतीय रिजर्व बैंक की वािर्षक रिपोर्ट 2012) ...और जहां आम आदमी पूरी उम्र कुछ लाख रूपया संग्रह करने में ही खर्च हो जाती हो वहां न्याय पाने के लिये इतना भुगतान करना क्या न्याय खरीदने जैसा नहीं है?



अभी इस खबर से निबट भी नहीं पाया था कि एक नयी खबर आयी कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक मराठी लेखक के विरूद्ध आपराधिक मुकदमा चलाने का निर्णय इसलिये दिया कि उसने अपनी अभिव्यक्ति में महात्मा गांधी के लिये अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया था। एक ओर यही न्यायालय सोशियल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करती है जिसके आड लेकर नामी गिरामी लोग कुछ भी उल जुलूल लिखकर सुर्खिया बटोरते हैं जिनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत हुये न्यायाधीश तक शामिल हैं वही दूसरी ओर एक आम लेखक का गांधी जी के प्रति प्रदर्शित दृष्टिकोण उसके विरूद्ध आपराधिक मुकदमें का कारण बनता है।
 इन उदाहरणों के आधार पर न्यायपालिका के बारे में आम राय बस यही बन रही है कि '''समरथ को नहिं दोष गुसाई''''
 ....यूँ ही एक विचार मन में कौंधा कि क्या माननीय न्यायालय अपने एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा लगातार गांधीजी के सम्बन्ध में व्यक्त किये जा रहे अपमानजनक शब्दों का संज्ञान ले सकता है? स्क्रीनशॉट के रूप में एक साक्ष्य ये रहा जिसमे गाँधी जी को "बेशरम ब्रिटिश एजेंट" और "देशद्रोही, विश्वासघाती" कहा गया है....   


शनिवार, 7 मार्च 2015

सफरनामा: योगदानकर्ता सेे उपनिदेशक कविताकोश तक का






विगत 15 नवम्बर को नई दिल्ली के एक बाहरी इलाके में संजय सिंन्हा फेसबुक फेमिली के समारोह स्थल में सैकडों की संख्या में देशी विदेशी चेहरे फेसबुक की दीवर से बाहर निकल कर ऐतिहासिक मिलन में शरीक होने आये थे। इनमें से अधिकतर ऐसे थे जो अपनी हर सुबह की शुरूआत आपस में ऐक दूसरे को गुड मार्निग कहकर ही करते थे परन्तु आज वे पहली बार मिल रहे थे। इन्हीं में से ऐक थी सुश्री शारदा सुमन जो बिहार के समस्तीपुर के ऐक मिडिल स्कूल में प्राधानाध्यापिका के घर अपै्रल 74 में जन्मी थी। मेरी बिटिया स्वीकृति से मिलकर वो इस तरह भाव विह्वल हो गयी मानो उन्हें अपनी मां मिल गयी हो। 


सुश्री शारदा सुमन जी की यह भावात्मकता अक्सर उनके फेसबुक अपडेट में दिखलाई देती रहती है परन्तु आभासी दुनिया से इतर वास्तविक रूप से उन्हें भावविह्वल देखने का पहला अवसर था।   फेसबुक के अधिकतर साथी सुश्री शारदा जी को कविताकोश की उपनिदेशिक के रूप में जानते हैं परन्तु मैं उन्हें कविताकोश के उस योगदानकर्ता के रूप में जानता हूं जिसने 30 मार्च 2009 को कविताकोश की सदस्यता ग्रहण की और एक अनाडी योगदानकर्ता की तरह विद्यापति के विबाहक गीत में अपना पहला संशोधन युनिकोड के स्थान पर अंग्रजी में किया था। 

कविताकोश पर अपनी इस पहली उपस्थित के बाद सुश्री शारदा जी कविताकोश में योगदान करने के गुर सीखकर लगभग तीन वर्ष बाद 27 अगस्त 2012 को पुनः कविताकोश से जुडी और इस कोश में कविता जोडकर अपना पहला योगदान गोपाल सिंह नेपाली की की कविता मेरा देश बडा गर्वीला जोडकर किया।
बचपन से साहित्यिक अभिरूचि के बावजूद इतने लंबे अंतराल तक साहित्य से दूर रहने का कारण पूछने पर सुश्री शारदा जी बताती हैं

  '' हम स्कूल कैम्पस में बने स्टाफ क्वार्टर में रहते थे. माँ की अभिरुचि हिंदी साहित्य में होने की वजह से, जिसमे उन्होंने भी स्नातकोत्तर डिग्री ली थी इसलिए घर का माहौल साहित्यिक था. बाद में मेरे शिक्षक ने भी अभिरुचि को बढ़ाने में मेरी भरपूर मदद की. माँ अब नहीं हैं, दो बहन और हैं जो कि अपने-अपने घर में सुखी हैं. मेरे घर में मेरे पति हैं और एक पन्द्रह साल का बेटा है. मेरे पति सिविल इंजीनियर हैं. मैंने कभी नौकरी के लिए कोशिश भी नहीं की है. सम्पूर्ण रूप से गृहिणी हूँ. शादी के बाद सारा समय घर पति और बच्चे को दिया. पति का भरपूर सहयोग मिला है. जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तब अंतरजाल पर सक्रिय हुई.''

आज उनका बेटा किशोर है और अपने पिता की भांति इन्जीनियर  ही बनना चाहता है साथ ही अपनी ंपढाई की ओर स्वयं समर्पित भी तो शारदा जी ने अपनी साहित्यिक अभिरूचि को कविताकोश के योगदानकर्ता के रूप निखारने का कार्य प्रारंभ किया। इस कार्य में उन्होंने जो धुंवाधार पारी खेली है उसे देखकर इस कोश के निदेशक श्री ललित कुमार जी के द्वारा इन्हें कविता कोश के नये अनुभाग मारिशस का प्रभारी बनाया और शनै शनै उन्होंने इस अनुभाग में बहुत सारा साहित्य जोड डाला। कविताकोश में क्षेत्रीय कविताओं की श्रेणियां बनाकर उन्हें इस कोश में रखने का काम आपने सफलतापूर्वक किया। 

अब आप कविताकोश की उपनिदेशक हैं। 

सुश्री शारदा जी स्वयं भी अच्छा लिखती है जो पूर्व में प्रकाशित भी हुआ है इसके बारे में पूछने पर वो बताती हैं

''पहले लिखा भी और बिहार की कुछ पत्र-पत्रिकाओं में छपा भी लेकिन लिखना अब छूट गया है. अब बस अन्य साहित्यकारों का लिखा संकलित ही करती हूँ. ''

अंतरजाल पर हिन्दी साहित्य को एकीकृत करने का प्रयास करने वाले अनेक मंच हैं जिनमें से सबसे अनूठा और वैश्विक पटल पर सर्वाधिक लोकप्रिय मंच कविताकोश है।
इस कोश में आज हिन्दी काव्य की विभिन्न विधाओं से संबंधित लगभग सत्तर अस्सी हजार पृष्ठ हैं। इस वेबसाइट पर इन सभी पन्नों को इसके सम्मानित योगदानकर्ताओं के द्वारा बनाया गया है।
शारदा जी इस कोश तक कैसे पहुंची इसके बारे में उनका कहना है -

''अंतरजाल पर कुछ सर्च करते-करते एक दिन कविता कोश पर पहुंची फ़िर बस इसी की हो कर रह गई. लगा कि इस अच्छी वेबसाइट में अभी बहुत कुछ करने को बचा हुआ है. उस समय मुझे जो चाहिए था इसमें मौज़ूद था. मेरे पास ख़ाली समय था और साहित्य में अभिरुचि थी बस जुट गई. इन दोनों परियोजना में अभी भी बहुत कुछ रह रहा है जिस पर हम लगातार काम कर भी रहे हैं, लेकिन धन की कमी की वजह से बहुत सारा काम हो नहीं पा रहा है. फ़िलहाल तो हम अपनी योजनाओं के बारे में तब तक बात नहीं करना चाहते जब तक उसे अमली जामा न पहना दिया जाए. अंतर्जाल पर हालाँकि आज कविता कोश जैसी कोई वेबसाइट नहीं है फ़िर भी स्पर्धा तो है हीं. ''

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जब उनसे यह जानने की कोशिश की गयी कि आज के जमाने में जब साइबर क्राइम बढता जा रहा है और महिलाओं को अंतरजाल पर अनेक अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पडता है उसमें उन्हें किस प्रकार की समस्याओं से रूबरू होना पडा तो उन्होंने बताया कि -

''महिला होने के वजह से मुझे अभी तक किसी ख़ास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है. हाँ कभी-कभी लोग शायद महिला होने की वजह से जुड़ने की कोशिश करते हैं. ''

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