अब तक निचले स्तर के न्यायालयों में भृष्टाचार की शिकायतें जन सामान्य में सुनी जाती थीं परन्तु इधर भारत के उच्च न्यायालयों ने जिस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित किया है उससे आम जन में इसके प्रति अच्छा संदेश नहीं गया है। चाहे निचली अदालत से सलमान खान को हुयी सजा का प्रकरण हो या तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का आय से अधिक संपत्ति वाला प्रकरण दोनो ही प्रकरणों में यह धारणा प्रबल हुयी है कि नामी गिरामी वकील करने से अपेक्षित न्याय मिलना अवश्यंभावी है। उच्च न्यायालय में सलमान खान के केस की अपील करने वाले अधिवक्ता हरीश साल्वे की कोर्ट में पहुंचने की फीस 30 लाख रूपये से लेकर 1 करोड रूपये प्रतिदिन बतायी जा रही है।
.... सोचता हूं कि जिस देश में गरीबी की रेखा का पैमाना 32 रूपये प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र तथा 47 रूपयें प्रतिदिन शहरी क्षेत्र में हो (गरीबी की नयी रेखा)
....और इतने निम्न मानक के बावजूद 21.92 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही हो (भारतीय रिजर्व बैंक की वािर्षक रिपोर्ट 2012) ...और जहां आम आदमी पूरी उम्र कुछ लाख रूपया संग्रह करने में ही खर्च हो जाती हो वहां न्याय पाने के लिये इतना भुगतान करना क्या न्याय खरीदने जैसा नहीं है?
अभी इस खबर से निबट भी नहीं पाया था कि एक नयी खबर आयी कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक मराठी लेखक के विरूद्ध आपराधिक मुकदमा चलाने का निर्णय इसलिये दिया कि उसने अपनी अभिव्यक्ति में महात्मा गांधी के लिये अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया था। एक ओर यही न्यायालय सोशियल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करती है जिसके आड लेकर नामी गिरामी लोग कुछ भी उल जुलूल लिखकर सुर्खिया बटोरते हैं जिनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत हुये न्यायाधीश तक शामिल हैं वही दूसरी ओर एक आम लेखक का गांधी जी के प्रति प्रदर्शित दृष्टिकोण उसके विरूद्ध आपराधिक मुकदमें का कारण बनता है।
इन उदाहरणों के आधार पर न्यायपालिका के बारे में आम राय बस यही बन रही है कि '''समरथ को नहिं दोष गुसाई''''
....यूँ ही एक विचार मन में कौंधा कि क्या माननीय न्यायालय अपने एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा लगातार गांधीजी के सम्बन्ध में व्यक्त किये जा रहे अपमानजनक शब्दों का संज्ञान ले सकता है? स्क्रीनशॉट के रूप में एक साक्ष्य ये रहा जिसमे गाँधी जी को "बेशरम ब्रिटिश एजेंट" और "देशद्रोही, विश्वासघाती" कहा गया है....
.... सोचता हूं कि जिस देश में गरीबी की रेखा का पैमाना 32 रूपये प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र तथा 47 रूपयें प्रतिदिन शहरी क्षेत्र में हो (गरीबी की नयी रेखा)
....और इतने निम्न मानक के बावजूद 21.92 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही हो (भारतीय रिजर्व बैंक की वािर्षक रिपोर्ट 2012) ...और जहां आम आदमी पूरी उम्र कुछ लाख रूपया संग्रह करने में ही खर्च हो जाती हो वहां न्याय पाने के लिये इतना भुगतान करना क्या न्याय खरीदने जैसा नहीं है?
अभी इस खबर से निबट भी नहीं पाया था कि एक नयी खबर आयी कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक मराठी लेखक के विरूद्ध आपराधिक मुकदमा चलाने का निर्णय इसलिये दिया कि उसने अपनी अभिव्यक्ति में महात्मा गांधी के लिये अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया था। एक ओर यही न्यायालय सोशियल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करती है जिसके आड लेकर नामी गिरामी लोग कुछ भी उल जुलूल लिखकर सुर्खिया बटोरते हैं जिनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत हुये न्यायाधीश तक शामिल हैं वही दूसरी ओर एक आम लेखक का गांधी जी के प्रति प्रदर्शित दृष्टिकोण उसके विरूद्ध आपराधिक मुकदमें का कारण बनता है।
इन उदाहरणों के आधार पर न्यायपालिका के बारे में आम राय बस यही बन रही है कि '''समरथ को नहिं दोष गुसाई''''
....यूँ ही एक विचार मन में कौंधा कि क्या माननीय न्यायालय अपने एक पूर्व न्यायाधीश द्वारा लगातार गांधीजी के सम्बन्ध में व्यक्त किये जा रहे अपमानजनक शब्दों का संज्ञान ले सकता है? स्क्रीनशॉट के रूप में एक साक्ष्य ये रहा जिसमे गाँधी जी को "बेशरम ब्रिटिश एजेंट" और "देशद्रोही, विश्वासघाती" कहा गया है....
aabhaar
जवाब देंहटाएंगाँधी को जाने पढ़े बिना ये सब कह ले जाना अज्ञानी ही कर सकता है भारत में आज गाँधी को कौन जानता है । विदेशी जमीन पर देखिये अगर वो लोग गाँधी के देश के किसी को अपने आस पास पाते हैं तो कौतूहल से गाँधी दर्शन पर बात करना चाहते हैं ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट को गंभीरता पूर्वक पढने के लिये आभार
हटाएंसुन्दर चर्चा ....
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे चिट्ठे पर भी पधारे और अपने विचार व्यक्त करें.
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in
आभार
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जवाब देंहटाएंकृपया मेरे चिट्ठे पर भी पधारे और अपने विचार व्यक्त करें.
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आभार
हटाएंकुछ लोग अपने प्रचार के लिए ऐसा करते हैं.
जवाब देंहटाएंपोस्ट को गंभीरता पूर्वक पढने के लिये आभार
हटाएंgandhi ji bharat ki rajniti ka shikaar ho gaye hai ..gandhi darshan fir padhaye jane ki jaroorat hai ...
जवाब देंहटाएंपोस्ट को गंभीरता पूर्वक पढने के लिये आभार
हटाएंन्यायालय पर भी नजर रखने वाला होना चाहिए...
जवाब देंहटाएंपोस्ट को गंभीरता पूर्वक पढने के लिये आभार
हटाएंNice blog and good information shared here.
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