देह एक बूंद ओस की नमी
......पाकर ठंडाना चाहते है सब
देह एक कोयल की कूक
......सुनना चाहते हैं सब
देह एक आवारा बादल
......छांह पाना चाहते हैं सब
देह एक तपता सूरज
......झुलसते हैं सब
देह एक क्षितिज
.....लांधना चाहते हैं सब
देह एक मरीचिका
......भटकते हैं सब
देह ऐक विचार
.......पढना चाहते हैं सब
देह ऐक सम्मान
.......पाना चाहते हैं सब
देह एक वियावान
.......भटकना चाहते हैं सब
देह एक रात
......जीना चाहते हैं सब
और
देह ऐक दवानल
......फंस कर दम तोडते है सब
(स्वरचित)......@ रचनाकार
......पाकर ठंडाना चाहते है सब
देह एक कोयल की कूक
......सुनना चाहते हैं सब
देह एक आवारा बादल
......छांह पाना चाहते हैं सब
देह एक तपता सूरज
......झुलसते हैं सब
देह एक क्षितिज
.....लांधना चाहते हैं सब
देह एक मरीचिका
......भटकते हैं सब
देह ऐक विचार
.......पढना चाहते हैं सब
देह ऐक सम्मान
.......पाना चाहते हैं सब
देह एक वियावान
.......भटकना चाहते हैं सब
देह एक रात
......जीना चाहते हैं सब
और
देह ऐक दवानल
......फंस कर दम तोडते है सब
(स्वरचित)......@ रचनाकार
देह किसकी .............
जवाब देंहटाएंआशा जोगळेकर जी ! आपका आभार..! निःसन्देह यह दृष्टि उसी देह के लिये लिये है जिसे पाने की ललक हम सब के अंदर है
हटाएंदेह पर सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंMukesh Kumar Sinha ji ! आपका आभार..!
हटाएंशुभकामना अपार, निरोगी होवे काया।
जवाब देंहटाएंTarun Thakur ji ! आपका आभार..!
हटाएंसुंदर टीका---देह की
जवाब देंहटाएंमन के - मनके ! आपका आभार..!
हटाएंरविकर जी ! आपका आभार..!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन ! का आभार..!
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