संभवतः वर्ष 1999 के जून माह का अवसर रहा होगा। मेरी तैनाती ऋषिकेश से 15 किलोमीटर दूर पर्वतीय जनपद टिहरी गढवाल की एकमात्र अर्द्धमैदानी तहसील नरेन्द्रनगर में थी। उत्तराखंड राज्य की घोषणा हो चुकी थी बस उसे अवतरित होना बाकी था। तत्कालीन भारत सरकार के प्रधानमंत्री महोदय का उत्तराखंड आना प्रस्तावित था जिसके लिये आसपास के सभी जनपदों से प्रशासनिक अधिकारियों को शान्ति व्यवस्था हेतु जिम्मेदारी सौंपी गयी थीं । मुझे भी एक ऐसी ही मीटिंग में भाग लेने हेतु देहरादून कलक्ट्रेट पहुंचना था। प्रातः जल्दी उठा और सरकारी कारिन्दों के साथ सरकारी जीप से देहरादून के लिये चल पड़ा। ऋषिकेश से कुछ किलोमीटर आगे बढ़ने पर थोड़ा सा रास्ता जंगल से होकर गुजरता था । इसी जगह पहंँच कर देखा आगे रास्ते पर भारी भीड खडी है। सरकारी जीप को आते देखकर भीड़ इस आशय से किनारे हो गयी कि शायद पुलिस आ गयी है। कैातूहलवश जीप रोकवा कर मैं भी उतर पडा और भीड को लगभग चीरता हुआ आगे बढ आया। देखा सड़क से पचास मीटर दूर जंगल की अंदर एक युवती की अर्द्वनग्न लाश पड़ी थी। आसपास एकत्रित भीड किसी मदारी के सामने खड़े तमाशबीनों की तरह उस लाश को देख रही थी। मैने आगे बढकर देखा युवती लगभग इक्कीस वर्ष की थी उसके शरीर पर छींटदार सूट और गले में रंगीन दुपट्टा था। गौरतलब बात यह थी उसके दाँये हाथ की कलाई पर ड्रिप के माध्मम से दवा, ग्लूकोस आदि चढ़ाये जाने वाली नली लगी थी। पास ही ऐक अधचढ़ी ड्रिप और नली भी पड़ी थी। युवती के शरीर केे निचले हिस्से केा देखने से स्पष्ठ प्रतीत होता था कि वहा गर्भवती थी। यह स्पष्ट था कि अनचाहे गर्भ से निजात पाने के दौरान किसी गंभीर काप्लिकेशन के कारण ही उसेकी मृत्यु हुयी थी और उसका तीमारदार अपनी जान छुड़ाकर उसे इस तरह छोड़कर भाग गया होगा। मैने आगामी कार्यवाही के लिये स्थानीय पुलिस को फोन किया और अपनी जीप से आगामी कार्यक्रम के लिये चल पड़ा।
परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था । वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी ,मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी ,जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । मै सोचने लगा कि आखिर किसी की प्रेमिका रही होगी वह ? प्रेम के वशीभूत अपने प्रेमी के आलिंगन में बंधने को कैसी आतुर रही होगी वह ? और उस सम्मोहक आलिंगन की पािणति इस रूप में होगी, क्या कभी उसने सोचा होगा? नही ंना! बस इसी पृष्ठभूमि में उस नवयौवना को श्रंद्धांजलि स्वरूप कुछ पंक्तियाँ लिखीं थी जो समर्पित थीं उस प्रारंभिक निश्छल आलिंगन को, और उस इक्कीसवें बसंत को जो चाहकर भी अगली बहार या पतझड़ नहीं देख सकी थी।
वह श्रंद्धांजलि आज ‘साहित्य शिल्पी’ के ताजा संस्करण में कविता ‘इक्कीसवाँ बसंत’ के नाम से जारी हुयी है।
परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था । वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी ,मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी ,जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । मै सोचने लगा कि आखिर किसी की प्रेमिका रही होगी वह ? प्रेम के वशीभूत अपने प्रेमी के आलिंगन में बंधने को कैसी आतुर रही होगी वह ? और उस सम्मोहक आलिंगन की पािणति इस रूप में होगी, क्या कभी उसने सोचा होगा? नही ंना! बस इसी पृष्ठभूमि में उस नवयौवना को श्रंद्धांजलि स्वरूप कुछ पंक्तियाँ लिखीं थी जो समर्पित थीं उस प्रारंभिक निश्छल आलिंगन को, और उस इक्कीसवें बसंत को जो चाहकर भी अगली बहार या पतझड़ नहीं देख सकी थी।
वह श्रंद्धांजलि आज ‘साहित्य शिल्पी’ के ताजा संस्करण में कविता ‘इक्कीसवाँ बसंत’ के नाम से जारी हुयी है।
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इक्कीसवॉ बसन्त [कविता]- अशोक कुमार शुक्ला |साहित्य शिल्पी: Sahitya Shilpi; Hindi Sahitya ki Dainik patrika#links#links#links#links#links
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