मंगलवार, 11 जुलाई 2017

फेसबुक..नशा..!

कल भी-
चुपके से आयी थी वो
मेरी पोस्ट पर 
और लाइक दबाकर चली गयी
कुछ भी नहीं बोली....
मैंने देखा था
अपनी पोस्ट पर
वो ब्लू एक्टिव लाइक,
महसूस भी किया था
अपने चेहरे पर
तुम्हारी उंगलियो के पोरों सा,
लेकिन जाने क्यों.?
चन्द पलों बाद
कुछ सोचकर
फिर लौटी थी तुम
उसी ब्लू ऐक्टिव लाइक को छूने
एक बार फिर
तुम्हारे छूते ही
गायब हो गया था
वो ब्लू एक्टिव लाइक
जानती हो
फेसबुक की
आभासी दुनिया से दूर
शरमा कर वो दुबक गया है
मेरे अंतस्थल में..!
फिर से बताता हूँ-
लोगों को चढ़ता होगा..नशा..!
मुझे तो तुम चढ़ी हो
...
प्रिये..!

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (13-07-2017) को "पाप पुराने धोता चल" (चर्चा अंक-2665) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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