वादा था...
सिर्फ प्रेम लिखूंगा..!
लेकिन
कैसे लिख सकूँगा..?
जब
अपने कमरे में
रस्सी के फंदे पर
झूलता मिला हो
कोई पहरुआ..?
जब आँखों के सामने
टूटे पड़े हों कुछ सपने..?
गौर से देखो मित्रों
उसी कमरे में मिलेगा-
टूटा हुआ भरोसा..!
मिलेगी सिसकती हुई आस...!
और शायद..
मिल जाए
भटकी हुई व्यवस्था भी...!
अब सोचो-
ऐसे में कैसे निभेगा ?
सिर्फ प्रेम लिखने का वादा..!
फिर भी-
यकीन है मुझे
कि-
मैं सिर्फ
प्रेम ही लिखूंगा.!
सिर्फ प्रेम लिखूंगा..!
लेकिन
कैसे लिख सकूँगा..?
जब
अपने कमरे में
रस्सी के फंदे पर
झूलता मिला हो
कोई पहरुआ..?
जब आँखों के सामने
टूटे पड़े हों कुछ सपने..?
गौर से देखो मित्रों
उसी कमरे में मिलेगा-
टूटा हुआ भरोसा..!
मिलेगी सिसकती हुई आस...!
और शायद..
मिल जाए
भटकी हुई व्यवस्था भी...!
अब सोचो-
ऐसे में कैसे निभेगा ?
सिर्फ प्रेम लिखने का वादा..!
फिर भी-
यकीन है मुझे
कि-
मैं सिर्फ
प्रेम ही लिखूंगा.!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-07-2017) को "सिमटकर जी रही दुनिया" (चर्चा अंक-2657) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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