दयानन्द पाण्डेय का यह उपन्यास समूचे हिन्दीभाषी उत्तर भारत के एक आम कस्बे की कहानी है, समूचे उपन्यास में एक इमानदार अधिवक्ता का तहसील स्तरीय वकालत मे न टिक पाना और शनै शनै कुंठाग्रस्त होकर अवसाद का शिकार होना विद्यमान न्यायिक व्यवस्था की कलई भी खोलता है-
उस की प्रैक्टिस अब लगभग निल थी। कई बार तो वह कचहरी जाने से भी कतराने लगा। पत्नी के साथ देह संबंधों में भी वह पराजित हो रहा था। चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। एक दिन उस ने पत्नी से लेटे-लेटे कहा भी कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।'
पत्नी कसमसा कर रह गई। आखों के इशारों से ही कहा कि,
'ऐसा मत कहिए। पर रमेश ने थोड़ी देर रुक कर जब फिर यही बात दुहराई कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।' तो पत्नी ने पलट कर कहा,
'ऐसा मत कहिए।' वह धीरे से बोली,
'अब मेरी भी इच्छा नहीं होती।'
क्या पैसे की तंगी और बेकारी आदमी को ऐसा बना देती है? नपुंसक बना देती है? रमेश ने अपने आप से पूछा।
समीक्षा पढें सरोकारनामा: व्यवस्था के प्रति विश्वास जगाने की कहानी:
समीक्ष्य पुस्तक :
बांसगांव की मुनमुन
पृष्ठ सं.176
मूल्य-300 रुपए
प्रकाशक
संस्कृति साहित्य
30/35-ए,शाप न.2, गली नंबर- 9, विश्वास नगर
दिल्ली- 110032
प्रकाशन वर्ष-2012
उस की प्रैक्टिस अब लगभग निल थी। कई बार तो वह कचहरी जाने से भी कतराने लगा। पत्नी के साथ देह संबंधों में भी वह पराजित हो रहा था। चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। एक दिन उस ने पत्नी से लेटे-लेटे कहा भी कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।'
पत्नी कसमसा कर रह गई। आखों के इशारों से ही कहा कि,
'ऐसा मत कहिए। पर रमेश ने थोड़ी देर रुक कर जब फिर यही बात दुहराई कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।' तो पत्नी ने पलट कर कहा,
'ऐसा मत कहिए।' वह धीरे से बोली,
'अब मेरी भी इच्छा नहीं होती।'
क्या पैसे की तंगी और बेकारी आदमी को ऐसा बना देती है? नपुंसक बना देती है? रमेश ने अपने आप से पूछा।
समीक्षा पढें सरोकारनामा: व्यवस्था के प्रति विश्वास जगाने की कहानी:
समीक्ष्य पुस्तक :
बांसगांव की मुनमुन
पृष्ठ सं.176
मूल्य-300 रुपए
प्रकाशक
संस्कृति साहित्य
30/35-ए,शाप न.2, गली नंबर- 9, विश्वास नगर
दिल्ली- 110032
प्रकाशन वर्ष-2012
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-12-13) को चर्चा मंच 1465 :काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन- में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्थान देने के लिये हृदय से आभारी हूं
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-