बुधवार, 14 सितंबर 2011

शापित भूमि से उपजा विलक्षण कुँवर!

14 सितम्बर की तिथि मात्र हिन्दी दिवस के रूप में याद किये जाने का दिवस नहीं है। यह दिवस हिन्दी कविता जगत की एक ऐसी विभूति के निर्वाण का दिवस भी है जिसने मात्र 28 वर्ष के अपने जीवन काल में हिन्दी को ऐसी समृद्वशाली रचनायें दी जो अनेक विद्वजनों के लिये आज भी शोध का विषय बनी हुयी हैं। 21 अगस्त 1919 में ई0 में तत्कालीन गढवाल जनपद के चमोली नामक स्थान मे मालकोटी नाम के ग्राम में एक निष्ठावान अध्यापक श्री भूपाल सिंह बर्त्वाल के घर पर एक बालक का जन्म हुआ। (इनके जन्म की तिथि के संबंध में यह विवाद है कि यह 21 अगस्त 1919 है अथवा 20 अगस्त 1919। गढवाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल में डा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध में यह प्रमाणित हुआ कि कविवर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि 21 अगस्त 1919 है )

1941 के दिसम्बर माह में ये परिवार सहित पंवालिया नामक स्थान पर चले गये जो उनके जन्म ग्राम मालकोटी से कुछ दूरी पर स्थित था और मालकोटी से अधिक समृद्व और प्राकृतिक शोभा से युक्त था। यह चमोली जनपद में रूद्रप्रयाग और केदारनाथ के बीच केदारनाथ मार्ग पर भीरी के नजदीक बसा ग्राम है जिसे बर्त्वाल परिवार ने सिंचित और अधिक उत्पादकता रखने वाली भूमि पर हरियाली और खुशहाली की उम्मीदों के साथ लिया था।

इस पंवालिया नामक स्थान के संबंध में डा0 उमाशंकर सतीश ने ‘हिलांस’ मासिक के सितम्बर 1980 अंक में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि वह ग्राम पंवालिया उत्तराखण्ड के प्रमुख धाम केदारनाथ में पांडित्य कर्म करने वाले धार्मिक पंडों के अधिकारक्षेत्र में हुआ करता था। इन पंडों ने किसी लाला (व्यवसायी) से एक हजार रूपये का कर्ज लिया था जिसे चुकाने का दबाव उन पर था। जब लाला (व्यवसायी) के कर्ज केा चुकाने में उन्हे सफलता नहीं मिली तो विपत्ति के समय में कर्ज को चुकाने के लिये इस गांव पंवालिया को बेच कर कर्ज की अदायगी करने का विचार किया गया।
इसी समय उस लाला (व्यवसायी) ने बडी क्रूरता के साथ पंवालिया को मात्र हजार रूपये में बर्त्वाल परिवार को बेचने का प्रस्ताव किया। मालकोटी से अलग एक नया धरौंदा बनाने के अवसर का उपयोग करने की आशा से बर्त्वाल परिवार ने यह जमीन ले ली। यह मान्यता है कि बुरे दिनों में भूमि और भवन से वंचित होने वाले उन धार्मिक व्यक्तियों ने इस भूमि पर बसने वालों को भविष्य में पनपने और फलने न देने का अभिशाप दिया। उन्होंने जब पंवालिया को छोडा तो वहां की मिट्टी कई देवस्थानों में चढाकर खरीददार का अनिष्ट करने के उद्देश्य से गोपनीय तांत्रिक अनुष्ठान संपन्न कराये तथा बददुआयें दी।
कहा जाता है कि इन तांत्रिक अनुष्ठानों तथा बददुआवों के असर ने बर्त्वाल परिवार को छिन्न भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। जब से बर्त्वाल परिवार ने पंवालिया में डेरा डाला, तभी से कविवर बीमारी की चपेट में आ गये और उसका परिवार भी कालान्तर में प्रभावित हुआ। अपने दुखों के सम्बन्ध में कथाकार यशपाल केा भेजे गये एक पत्र 27 जनवरी 1947 को उन्होंने लिखा थाः-

प्रिय यशपाल जी,

अत्यंत शोक है कि मैं मृत्युशैया पर पडा हुआ हूॅ और बीस- पच्चीस दिन अधिक से अधिक क्या चलूंगा.....................सुबह को एक दो घंटे बिस्तर से मै उठ सकता हूॅ और इधर उधर अस्यव्यस्त पडी कविताओं को एक कापी पर लिखने की कोशिश करता हूॅ। बीस - पच्चीस दिनों में जितना लिख पाऊंगा, आपके पास भेज दूंगा।

और सचमुच इन शब्दों को लिखने के बाद वे शायद स्वतंत्र भारत की हवा में कुछ सांसे लेने के लिये मात्र 14 सितम्बर तक ही जिन्दा रहे। 14 सितम्बर 1947 की रात हिमालय के लिये काल रात्रि साबित हुयी जब हिमालय के अमर गायक चन्द्रकुवर बर्त्वाल ने सदा सदा के लिये इस लोक को छोड दिया औ कभी जागकर न उठने के सो गया। ऐसा था वह रविवार का दिन। वे चले गये और अपने पीछे अपनी अव्यवस्थित काव्य संपदा को यह कह कर छोड गयेः-
मैं सभी के करूण-स्वर हूॅ सुन चुका
हाय मेरी वेदना को पर न कोई गा सका।

भारत में सनसनीखेज खुलासे करने के लिये विख्यात ‘तहलका’ पत्रिका द्वारा फरवरी 2011 में 15 फरवरी 2011 अंक में उत्तराखंड प्रदेश के 30 नायकों की सूची में निर्णायक मंडली द्वारा 10 महानायकों के नामों में जनकवि गिर्दा और उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणि बडोनी को पछाडते हुये पेडों के पहरूआ के रूप में चंडी प्रसाद भट्ट और हिंदी के कालिदास चंद्रकुंवर बर्त्वाल को स्थान देते हुये लिखा गया हैः-
हिंदी साहित्य में छायावाद के प्रतीक कविवर सुमित्रानंदन पंत तो देश दुनिया के साहित्य जगत में प्रसिद्व हैं ही इसलिये तहलका ने चुना हिमवंत के कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल को जिन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था।
समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का कालिदास मानते हैं परन्तु हिंदी के इस हिमवंत कवि बर्त्वाल ने सत्तर साल पहले रचित अपनी ‘छुरी’ नामक कविता मेे जिस परिदृष्य को खींचा था उसे उनकी दूरदर्शिता कहेंगे या मात्र संयोग इसका निर्णय आप स्वयं उस कविता के निम्न अंश को देखकर कर सकते हैे:-
मजदूरों की सरकार ओह
इटली तू जाय जहन्नम को,
लीग सी नाज्.ारी जो छोडी
नामर्द कहें क्या हम तुम को।

4 टिप्‍पणियां:

  1. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
    --
    हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  2. हिमालय के अमर गायक चन्द्रकुवर बर्त्वाल के बारे में पहली बार जाना -बहुत आभार !

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