शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

भारतीय ज्ञानपीठ में भी गूंजा लखनऊ का रागदरबारी

हर सुबह की तरह 21 सितम्बर की सुबह के समाचार पत्र की सुर्खियाँ भी विविधता से भरी थीं। जहाँ एक ओर अफगानिस्तान में शान्ति प्रयासो की दिशा में अग्रणी कार्य करने वाले राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की बम धमाके में मौत एक आहत करने वाली खबर थी वहीं दूसरी ओर भारतवर्ष का चर्चित स्पैक्ट्रम घोटाला और लखनऊ जिला जेल में एक और विचाराधीन कैदी की मौत मुख्य लीड में थे।

समाचार पत्र का एक कोना हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ के समाचार से भी भरा था जिसमें उत्तर प्रदेश की राजनैतिक राजधानी और सांस्कृतिक राजधानी के लिये खुशबूदार हवा का झोंका भी था। समाचार पत्र की मुख्य लीड पढते हुये जो खिन्न सी मनःस्थिति हुयी थी उसमें एक खुशनुमा हवा के झोंके ने जैसे आकर उत्साह भर दिया था। समाचार था लखनऊ के यशश्वी कथाकार श्रीयुत श्रीलाल जी शुक्ल को 2009 का और इलाहाबाद के श्रद्धेय अमरकांत जी को 2010 का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया है।



बुधवार, 21 सितंबर 2011

नेविगेशन उपग्रहो से भेजी गयी तरंगों की सहायता से भू सम्पत्तियों के लिये यूनीक आइडेन्टीफिकेशन नम्बर

बहुत समय नहीं बीता है जब सारे संसार ने देखा कि अमेरिका ने अपने सुग्राही यंत्रों के माध्यम से संसार में आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन का ठीक ठीक ठिकाना ढूँढकर उसे समाप्त कर डाला था। अमेरिका के समूचे मिशन में आतंकवादी की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात कर पाने में उसके द्वारा अंतरिक्ष में नेविगेशन उपग्रहो का योगदान रहा । अमेरिका द्वारा पृथ्वी के चारों ओर अट्ठाइस नेविगेशन उपग्रह इस प्रकार छोडे गये हैं कि वे संसार के समूचे भाग पर नजर रख सकते हैं। इनकी कार्यप्रणाली ऐसी है कि संसार के प्रत्येक स्थान पर एक समय में न्यूनतम चार उपग्रहो से संकेत हर परिस्थिति में प्राप्त होते रहते हैं। इन्ही पा्रप्त संकेतों के माध्यम से पृथ्वी पर स्थित किसी वस्तु की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात की जा सकती है।

चित्र 1 राजस्व परिषद में आयोजित भूअभिलेख आधुनिकीकरण कार्यशाला

बुधवार, 14 सितंबर 2011

शापित भूमि से उपजा विलक्षण कुँवर!

14 सितम्बर की तिथि मात्र हिन्दी दिवस के रूप में याद किये जाने का दिवस नहीं है। यह दिवस हिन्दी कविता जगत की एक ऐसी विभूति के निर्वाण का दिवस भी है जिसने मात्र 28 वर्ष के अपने जीवन काल में हिन्दी को ऐसी समृद्वशाली रचनायें दी जो अनेक विद्वजनों के लिये आज भी शोध का विषय बनी हुयी हैं। 21 अगस्त 1919 में ई0 में तत्कालीन गढवाल जनपद के चमोली नामक स्थान मे मालकोटी नाम के ग्राम में एक निष्ठावान अध्यापक श्री भूपाल सिंह बर्त्वाल के घर पर एक बालक का जन्म हुआ। (इनके जन्म की तिथि के संबंध में यह विवाद है कि यह 21 अगस्त 1919 है अथवा 20 अगस्त 1919। गढवाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल में डा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध में यह प्रमाणित हुआ कि कविवर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि 21 अगस्त 1919 है )

1941 के दिसम्बर माह में ये परिवार सहित पंवालिया नामक स्थान पर चले गये जो उनके जन्म ग्राम मालकोटी से कुछ दूरी पर स्थित था और मालकोटी से अधिक समृद्व और प्राकृतिक शोभा से युक्त था। यह चमोली जनपद में रूद्रप्रयाग और केदारनाथ के बीच केदारनाथ मार्ग पर भीरी के नजदीक बसा ग्राम है जिसे बर्त्वाल परिवार ने सिंचित और अधिक उत्पादकता रखने वाली भूमि पर हरियाली और खुशहाली की उम्मीदों के साथ लिया था।

शनिवार, 10 सितंबर 2011

सिद्धपीठ माँ वाराही में रक्षाबंधन का दिन..

श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश में ऐक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं। यह स्थान है उत्राखण्ड राज्य का सिद्धपीठ माँ वाराही का देवीधुरा स्थल। इस बार के ग्रीष्मावकाश मे वहाँ जाने का अवसर मिला सो यहाँ की कुछ अनोखी परंपराओं केा आपके साथ बाँट रहा हूँ।
चित्र-1 देवीधुरा कस्बे का विहंगम दृष्य

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