रविवार, 20 जनवरी 2013

समय के साथ कुन्द न हो इसकी धार

सामान्यतः हर नये वर्ष का पहला दिवस हममें से अधिकांश के लिये नये संकल्पों का दिवस होता है। और जनवरी का दूसरा सप्ताह आते आते नववर्ष के प्रथम दिवस को लिये गये संकल्प की धार भोथरी हो चुकी होती है। एक ऐसा ही संकल्प इस नये वर्ष पर मैने भी लिया परन्तु इसकी धार समय के साथ कुन्द न हो इसके लिये यह संकल्प सामूहिक रूप से लिया गया।
हरदोई जनपद में आने के बाद मुझे एक पदेन जिम्मेदारी का निर्वहन करना पडा वह थी महात्मा गांधी जन कल्याण समिति के सचिव पद की जिम्मेदारी। यह उत्तरदायित्व मेरे सभी पूर्वाधिकारियों के लिये एक औपचारिकता भर रही है। यह समिति हरदोई में गांधी की स्मृति में निर्मित गांधी भवन की देख रेख का कार्य करती है।
इससे जुडा ऐतिहासिक तथ्य यह है कि सन 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने के बाद इसका विरोध करने के लिये ने महात्मा गांधी समूचे भारत में यात्रा कर जनजागरण किया था। इसी दौरान 11 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने हरदोई का भी भ्रमण किया था। सभी वर्गों के व्यक्तियों द्वारा महात्मा गांधी जी का स्वागत किया तथा उन्होंने टाउन हाल में 4000 से अधिक व्यक्तियों की जनसभा को संबोधित किया। सभा के समापन पर खद्दर के कुछ बढिया कपडें 296 रूपये में नीलाम किये गये और यह धनराशि गांधी जी को भेट की गयी। (संदर्भ:एच आर नेबिल संपादित हरदोई गजेटियर पृष्ठ 56)
स्वतंत्रता के बाद सम्पूर्ण भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी की स्मृति को संजोने के लिए के लिऐ उनके भृमण स्थलों पर स्मारकों का निर्माण किया गया जिसमें हरदोई में गांधी भवन का निर्माण हुआ । इस भवन का रख रखाव महात्मा गांधी जनकल्याण समिति द्वारा किया जाता है।
2013 के नववर्ष पर समिति की ओर से पहल करते हुये मैने इस परिसर में एक प्रार्थना कक्ष स्थापित कराया है और सर्वोदय आश्रम टडियांवा. के सहयोग से सर्वधर्म प्रार्थना का नियमित आरंभ कराया है। यह प्रार्थना कक्ष महात्मा जी की विश्राम स्थली रहे कौसानी में स्थापित अनासक्ति आश्रम में स्थापित प्रार्थना कक्ष के समरूप है तथा कौसानी में संचालित नियमित सर्वधर्म प्रार्थना के अनुरूप इस परिसर में भी नियमित रूप से सर्वधर्म प्रार्थना की जा रही है ।
ईश्वर से प्रार्थना है कि इस वर्ष नववर्ष पर सर्वोदय आश्रम के साथ मिलकर मैने जिस संकल्प पर अमल करना चाहा है वह समय की शिला पर दिनों दिन पडने वाली धूल में धुंधली न पडें अपितु और अधिक प्रगाढ होती जाय। आमीन।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

सार्थक की सावित्री दीदी नहीं रहीं

मेरी एक संस्मरणनुमा कहानी रूपान्तरण
की मुख्य पात्रा आदरणीया सावित्री दीदी अपने बूढे माता पिता के गांव में ही रहा करती थीं। उन्हें अचानक सिर में दर्द की शिकायत हुयी। उन्हें लेकर दिल्ली आया गया। जहां इलाज हुआ और कुछ फायदा भी वापिस गांव जा रही थीं कि अल्मोडा पहुंचते पहुंचते पुनः सिर दर्द हुआ और बस वो ईश्वर से मिलने चली गयीं।
हमारे पडोस में रहती थी सावित्री दीदी जो पास ही के किसी प्राइमरी विद्यालय में अघ्यापिका थीं। घर में एकमात्र कमाउ सदस्य थीं तथा सबसे बडी लडकी जिस पर अपने बूढे मॉ बाप ओैर चार छोटे भाई बहिनो की जिम्मेदारी थी। मेहनती इतनी कि कोई भी लजा जाय। अपनी प्राइमरी विद्यालय की अघ्यापकी की बदौलत आजकल एक भाई सुनील को लेखपाल की ट्रेनिंग करवा रही थी और एक छोटी बहिन का विवाह करवा चुकी थी। एक छोटे भाई और बहिन को साथ में रख कर पढा रही थीं। स्वयं संत का जीवन जीते हुये अपने बूढे मॉ बाप ओैर छोटे भाई बहिनो के लिये सांसारिक सुखों को जुटाने में जी जान से लगी रहती थीं। स्वयं के विवाह अथवा प्रेम जैसे विषय के संबंध में सोचना भी जैसे पाप समझती थीं।
उस सच्ची कर्मयोगिनी को श्रद्धांजलि ...


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