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विगत 15 नवम्बर को नई दिल्ली के एक बाहरी इलाके में संजय सिंन्हा फेसबुक फेमिली के समारोह स्थल में सैकडों की संख्या में देशी विदेशी चेहरे फेसबुक की दीवर से बाहर निकल कर ऐतिहासिक मिलन में शरीक होने आये थे। इनमें से अधिकतर ऐसे थे जो अपनी हर सुबह की शुरूआत आपस में ऐक दूसरे को गुड मार्निग कहकर ही करते थे परन्तु आज वे पहली बार मिल रहे थे। इन्हीं में से ऐक थी सुश्री शारदा सुमन जो बिहार के समस्तीपुर के ऐक मिडिल स्कूल में प्राधानाध्यापिका के घर अपै्रल 74 में जन्मी थी। मेरी बिटिया स्वीकृति से मिलकर वो इस तरह भाव विह्वल हो गयी मानो उन्हें अपनी मां मिल गयी हो।
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सुश्री शारदा सुमन जी की यह भावात्मकता अक्सर उनके फेसबुक अपडेट में दिखलाई देती रहती है परन्तु आभासी दुनिया से इतर वास्तविक रूप से उन्हें भावविह्वल देखने का पहला अवसर था। फेसबुक के अधिकतर साथी सुश्री शारदा जी को कविताकोश की उपनिदेशिक के रूप में जानते हैं परन्तु मैं उन्हें कविताकोश के उस योगदानकर्ता के रूप में जानता हूं जिसने 30 मार्च 2009 को कविताकोश की सदस्यता ग्रहण की और एक अनाडी योगदानकर्ता की तरह विद्यापति के विबाहक गीत में अपना पहला संशोधन युनिकोड के स्थान पर अंग्रजी में किया था।
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कविताकोश पर अपनी इस पहली उपस्थित के बाद सुश्री शारदा जी कविताकोश में योगदान करने के गुर सीखकर लगभग तीन वर्ष बाद 27 अगस्त 2012 को पुनः कविताकोश से जुडी और इस कोश में कविता जोडकर अपना पहला योगदान गोपाल सिंह नेपाली की की कविता मेरा देश बडा गर्वीला जोडकर किया।
बचपन से साहित्यिक अभिरूचि के बावजूद इतने लंबे अंतराल तक साहित्य से दूर रहने का कारण पूछने पर सुश्री शारदा जी बताती हैं
'' हम स्कूल कैम्पस में बने स्टाफ क्वार्टर में रहते थे. माँ की अभिरुचि हिंदी साहित्य में होने की वजह से, जिसमे उन्होंने भी स्नातकोत्तर डिग्री ली थी इसलिए घर का माहौल साहित्यिक था. बाद में मेरे शिक्षक ने भी अभिरुचि को बढ़ाने में मेरी भरपूर मदद की. माँ अब नहीं हैं, दो बहन और हैं जो कि अपने-अपने घर में सुखी हैं. मेरे घर में मेरे पति हैं और एक पन्द्रह साल का बेटा है. मेरे पति सिविल इंजीनियर हैं. मैंने कभी नौकरी के लिए कोशिश भी नहीं की है. सम्पूर्ण रूप से गृहिणी हूँ. शादी के बाद सारा समय घर पति और बच्चे को दिया. पति का भरपूर सहयोग मिला है. जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तब अंतरजाल पर सक्रिय हुई.''
आज उनका बेटा किशोर है और अपने पिता की भांति इन्जीनियर ही बनना चाहता है साथ ही अपनी ंपढाई की ओर स्वयं समर्पित भी तो शारदा जी ने अपनी साहित्यिक अभिरूचि को कविताकोश के योगदानकर्ता के रूप निखारने का कार्य प्रारंभ किया। इस कार्य में उन्होंने जो धुंवाधार पारी खेली है उसे देखकर इस कोश के निदेशक श्री ललित कुमार जी के द्वारा इन्हें कविता कोश के नये अनुभाग मारिशस का प्रभारी बनाया और शनै शनै उन्होंने इस अनुभाग में बहुत सारा साहित्य जोड डाला। कविताकोश में क्षेत्रीय कविताओं की श्रेणियां बनाकर उन्हें इस कोश में रखने का काम आपने सफलतापूर्वक किया।
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अब आप कविताकोश की उपनिदेशक हैं।
''पहले लिखा भी और बिहार की कुछ पत्र-पत्रिकाओं में छपा भी लेकिन लिखना अब छूट गया है. अब बस अन्य साहित्यकारों का लिखा संकलित ही करती हूँ. ''
अंतरजाल पर हिन्दी साहित्य को एकीकृत करने का प्रयास करने वाले अनेक मंच हैं जिनमें से सबसे अनूठा और वैश्विक पटल पर सर्वाधिक लोकप्रिय मंच कविताकोश है।
इस कोश में आज हिन्दी काव्य की विभिन्न विधाओं से संबंधित लगभग सत्तर अस्सी हजार पृष्ठ हैं। इस वेबसाइट पर इन सभी पन्नों को इसके सम्मानित योगदानकर्ताओं के द्वारा बनाया गया है।
शारदा जी इस कोश तक कैसे पहुंची इसके बारे में उनका कहना है -
''अंतरजाल पर कुछ सर्च करते-करते एक दिन कविता कोश पर पहुंची फ़िर बस इसी की हो कर रह गई. लगा कि इस अच्छी वेबसाइट में अभी बहुत कुछ करने को बचा हुआ है. उस समय मुझे जो चाहिए था इसमें मौज़ूद था. मेरे पास ख़ाली समय था और साहित्य में अभिरुचि थी बस जुट गई. इन दोनों परियोजना में अभी भी बहुत कुछ रह रहा है जिस पर हम लगातार काम कर भी रहे हैं, लेकिन धन की कमी की वजह से बहुत सारा काम हो नहीं पा रहा है. फ़िलहाल तो हम अपनी योजनाओं के बारे में तब तक बात नहीं करना चाहते जब तक उसे अमली जामा न पहना दिया जाए. अंतर्जाल पर हालाँकि आज कविता कोश जैसी कोई वेबसाइट नहीं है फ़िर भी स्पर्धा तो है हीं. ''
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जब उनसे यह जानने की कोशिश की गयी कि आज के जमाने में जब साइबर क्राइम बढता जा रहा है और महिलाओं को अंतरजाल पर अनेक अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पडता है उसमें उन्हें किस प्रकार की समस्याओं से रूबरू होना पडा तो उन्होंने बताया कि -
''महिला होने के वजह से मुझे अभी तक किसी ख़ास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है. हाँ कभी-कभी लोग शायद महिला होने की वजह से जुड़ने की कोशिश करते हैं. ''