शनिवार, 21 सितंबर 2013

ऐसी होती हैं बेटियां !

एक नवविवाहित जोडे ने अपने विवाह के पहले दिन यह फैसला किया कि अब वे अपने प्रेम में किसी का भी हस्तक्षेप सहन नहीं करेगे और दस्तक देने पर कोई भी दरवाजा नहीं खोलेगा चाहें दरवाजा खटखटाने वाला कोई सगा संबंधी ही क्यो न हो

कुछ समय के बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया तो उन्होने की होल से देखा कि लडके के माता पिता थे दोनो ने एक दूसरे की ओर देखा पति चाहता था कि पत्नी दरवाजा खोल दे परन्तु दोनो अपने वादे से बंधे थे पति हारना नहीं चाहता था सो दरवाजा नहीं खोला और दरवाजे पर दस्तक देने वाले लौट गये। फिर कुछ समय बाद दरवाजे पर दस्तक हुयी तो उन्होने की होल से देखा कि इस बार लडकी के माता पिता थे दोनो ने एक दूसरे की ओर देखा पति आश्वस्त था कि पत्नी दरवाजा नहीं खोलेगी परन्तु पत्नी की आंखें नम हो गयीं और उसने यह कहते हुये दरवाजा खोल दिया कि वह अपने माता पिता को इस तरह दुखी होकर लौटने नहीं दे सकती।

बात आयी गयी हो गयी इस दंपत्ति ने का वैवाहिक जीवन सफल रहा और पत्नी देखते ही देखते तीन बेटों की मां बन गयी। पत्नी के चैथी बार मां बनने पर उनके एक बेटी हुयी तो उसके पिता ने बेटी के जन्म पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया । इस पर पत्नी ने इसका कारण जानना चाहा तो पति ने पत्नी और बच्ची को गले से लगाकर सहजता से उत्तर दिया यह भव्य आयोजन इसलिये कर रहा हूं के कि यही बेटी हमारे लिये बंद दरवाजा खोलेगी ।

ऐसी होती हैं बेटियां ! आज के बेटी दिवस पर संसार की सभी बेटियों को आर्शिवाद और प्यार!

लेखक अपनी बेटी स्वीकृति और सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा अपनायी गयी बेटी कली के साथ 



शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

...और भैया जी ने भारत भारती सम्मान लौटा दिया!!

आप सभी मित्रों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

हिन्दी दिवस के अवसर पर आदरणीय श्रीनारायण चतुर्वेदी से जुडा हिन्दी भाषा का एक मुद्दा याद आता है जो हिन्दी के प्रति इस महान साहित्यकार की हठधर्मिता का जीवंत उदाहरण है। लखनऊ जनपद के गणेशगंज मोहल्ले मे स्थित खुर्शीदबाग का मकान संख्या 53 हिन्दी विषय पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिये किसी तीर्थ स्थान से कम महत्व नहीं रखता क्योंकि यह आदरणीय चतुर्वेदी जी की कर्मस्थली रहा हैं।

 बीती 14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर एक साहित्यिक कार्यक्रम के सिलसिले मे दुगांवा स्थित आदरणीय मुद्राराक्षस जी के घर को जाना हुआ। गणेशगंज के भीड भरे इलाके से होता हुआ को किसी जमाने में लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान माने जाने वाले श्रेत्र खुर्शीदबाग से होकर गुजरा तो बरसस याद हो आयी मकान नम्बर 53 की । यह आवास आदरणीय श्रीनारायण चतुर्वेदी जी यानी हिन्दी साहित्यकारों के पितामह कहे जाने वाले दद्दा जी का आवास था। एक समय था जब इसमें साहित्यिक रौनकें हुआ करती थीं परन्तु अब यहाँ साहित्यिक रौनके नही सजतीं। दद्दा जी जितने मुंहफँट थे उसकी मिसाल दी जाती है।

हिन्दी दिवस के अवसर पर उनसे जुडा हिन्दी भाषा का एक मुद्दा याद आता है जो हिन्दी के प्रति इस महान साहित्यकार की हठधर्मिता का जीवंत उदाहरण है। आदरणीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे ।
 किसी अवसर पर उन्होने किसी परिपेक्ष्य में यह कह दिया कि हिन्दी के कौन से सुरखाब के पर लगे हैं। बस फिर क्या था श्रीनारायण जी की त्यौरियाँ चढ गयीं और उन्होने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से बहुगुणा को ऐसा जवाब दिया कि वे निरूत्तर हो गये।

 एक और किस्सा है उनके हिन्दी प्रेम का । जब आदरणीय वी पी सिंह जी ने उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने सम्बन्धी निर्णय लिया तो उन्होंने बी पी सिंह जी को जो पत्र लिखा उसकी भाषा कुछ इस प्रकार थीः-

 ‘....आपने राष्ट्रभाषा के साथ द्रोह किया है......’


 इस भाषा में लिखा पत्र उन्होंने न सिर्फ बीपी सिंह को प्रेषित ही किया अपितु स्वयं उनके पास जाकर यह पत्र सुनाया भी साथ ही प्रदेश में हिंदी के समर्थन में जनान्दोलन भी खडा किया।

 उन्हें दीर्धकालीन हिंदी सेवा के लिये भारत भारती सम्मान दिया गया परन्तु जब प्रदेश सरकार ने उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया तो उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया
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