मंगलवार, 11 जुलाई 2017

फेसबुक..नशा..!

कल भी-
चुपके से आयी थी वो
मेरी पोस्ट पर 
और लाइक दबाकर चली गयी
कुछ भी नहीं बोली....
मैंने देखा था
अपनी पोस्ट पर
वो ब्लू एक्टिव लाइक,
महसूस भी किया था
अपने चेहरे पर
तुम्हारी उंगलियो के पोरों सा,
लेकिन जाने क्यों.?
चन्द पलों बाद
कुछ सोचकर
फिर लौटी थी तुम
उसी ब्लू ऐक्टिव लाइक को छूने
एक बार फिर
तुम्हारे छूते ही
गायब हो गया था
वो ब्लू एक्टिव लाइक
जानती हो
फेसबुक की
आभासी दुनिया से दूर
शरमा कर वो दुबक गया है
मेरे अंतस्थल में..!
फिर से बताता हूँ-
लोगों को चढ़ता होगा..नशा..!
मुझे तो तुम चढ़ी हो
...
प्रिये..!

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

यकीन है मुझे...!

 वादा था... 
 सिर्फ प्रेम लिखूंगा..! 
 लेकिन 
 कैसे लिख सकूँगा..? 
 जब 
 अपने कमरे में 
 रस्सी के फंदे पर 
 झूलता मिला हो 
 कोई पहरुआ..? 
 जब आँखों के सामने 
 टूटे पड़े हों कुछ सपने..? 
 गौर से देखो मित्रों 
 उसी कमरे में मिलेगा- 
 टूटा हुआ भरोसा..! 
 मिलेगी सिसकती हुई आस...! 
 और शायद.. 
 मिल जाए 
 भटकी हुई व्यवस्था भी...! 
 अब सोचो- 
 ऐसे में कैसे निभेगा ? 
 सिर्फ प्रेम लिखने का वादा..! 
 फिर भी- 
 यकीन है मुझे 
 कि- 
 मैं सिर्फ 
 प्रेम ही लिखूंगा.!

शनिवार, 1 जुलाई 2017

जादू...!

सुबह उठते ही
ताजे हवा के झोंके की आस में
खिडकी खोल दी
लेकिन यह क्या....?
ताजी हवा के साथ
चेेहरे से टकरायी
ठंडी फुहार
और जादू देखिये
भीग गया मन
सचमुच लोगो को तो नशा चढता है
लेकिन
मुझे तुम चढी हो ....प्रिये !

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