सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

मेरी आमद अंकित की जाय

इधर कुछ दिनों से मेरे दिन लखनऊ में हज यात्रियों के बीच गुजर रहे थे , उनकी कागजी औपचारिकताओं को पूरा कराकर उनको हवाई जहाज में बैठाकर विदा करने तक की व्यस्त दिनचर्या के मघ्य फुरसत का लम्हा तलाशना सचमुच बहुत मुश्किल लग रहा था जी चाहता था कि जल्दी से जल्दी पांच अक्टूबर आये तो कुछ सुकून मिले (5 अक्टूबर को लखनऊ से हज यात्रियों का आखिरी जत्था निकलने वाला था)। अचानक 30 सितम्बर को शाम को मोबाइल घनघनाया और एक नया फरमान सुनाई दिया कि आज ही कार्यमुक्त होकर रात्रि में जनपद हरदोई के लिये प्रस्थान करना है आने वाले कल यानी 1 अक्टूबर से भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार मतदाता सूचियों का संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्य प्रारंभ होगा जो जनवरी के पहले सप्ताह तक चलेगा । इस दौरान निर्वाचन आयोग की अनुमति के बिना पुनरीक्षण से जुडे प्रशासनिक अधिकारियेां के स्थानान्तरण नहीं किये जा सकेंगे। यह बाघ्यता कुछ साथियों को संतोष प्रदान करती है तो कुछ साथियों को निराशा भी देती है। मैं भी उन्हीं लोगो में हूं जिन्हें यह सूचना संतोष प्रदान करती है कि चलो अब कम से कम तीन महीने तो हर समय लटकी रहने वाली स्थानान्तरण की तलवार तो नहीं दिखलायी पडेगी , लेकिन मेरा यह संतोष मेरी तैनाती स्थान लखनऊ पर नहीं बना रह सका लेकिन नव तैनाती जनपद हरदोई में तैनाती के लिये अवश्य बना रहा कि अब कम से कम तीन महीने तक तो इस जनपद की आवो हवा में दिन गुजारने ही होंगे।
निर्देशों के अनुपालन में हज यात्रियों के जथ्थों को ज्यों का त्यों छोडकर मै तीस सितम्बर की रात में ही मैं नव तैनाती जनपद हरदोई पहुंच गया। यह छोटा सा शहर अपने आपमें बडी एतिहासिकता समेटे है । भक्त प्रहलाद को हिरण्याकश्यप के चंगुल से छुडाने के लिये प्रभु के द्वारा नरसिंह अवतार धारण करने ऐतिहासिक कथा से लेकर ब्राह्मण वध के उपरांत पाप से मुक्त होने के लिये हत्याहारण तीर्थ कुण्ड में स्नान करने के इतिहास की कथा, महात्मा गांधी के आगमन से पवित्र हुयी धरती की एतिहासिकता ......तक..... अभी तो बस इस शहर के बारे में बस दस्तक देने भर की ही जानकारी है ।
एक बर्ड सेंन्चुरी ‘साण्डी पक्षी विहार ’के नाम की कुछ होर्डिग्स भी शहर में जहां तहां टंगी दिखायी पडी हैं। ज्यों ज्यों इन सब को देखता रहूंगा आपसे साझा करता रहूंगा। फिलहाल दो अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर जिलाधिकारी हरदोई व अन्य अधिकारियों के साथ मेरी आमद अंकित की जाय।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

रोली का टीका जो इतिहास बन गया !



यू ट्यूब पर पिता द्वारा दिये गये आर्शिवाद के क्षण !!!!

मेरी छोटी बहिन की पुत्री आयु0 पूर्तिश्री के विगत जन्मोत्सव के अवसर पर मेरे माता तथा पिता आयु0 पूर्तिश्री को आर्शिवाद देने के लिये उपस्थित थे। बच्चों के द्वारा केक काटने की जिद और संस्कारो की सामान्य रूढियों के सामंजस्य के अनुरूप केक भी लाया गया और पिताजी तथा मांजी के द्वारा आयु0 पूर्तिश्री को रोली अक्षत का तिलक लगाकर केक काटते हुये अपना जन्मदिवस मनाये जाने की तैयारी की गयी।
मांजी तथा पिताजी द्वारा जैसे ही पूर्तिश्री के माथे पर रोली और अक्षत का तिलका लगाकर केक काटने की रस्म के लिये स्वतंत्र किया गया मुझे थोडी सी शैतानी सूझी । मै लपककर पूर्ति और केक के बीच आ गया और बोला:-

अरे मांजी यह क्या ! बर्थडे तो मेरा था आपने पूर्ति को टीका क्यों लगाया । मुझे भी टीका लगाइये।’
यह कहकर मैने अपना माथा मांकी ओर झुका दिया । मां ने प्रेम से मेरे माथे पर भी रोली और अक्षत का तिलक लगा दिया । अब मै फिर बोला:-

अरे पिताजी आपने तो टीका लगाया ही नहीं । आप भी लगाइये ना !’
पिताजी ने भी अक्षत और रोली का टीका मेरे माथे पर लगा दिया । स्वाभाविक रूप से इतने अतिरिक्त कार्यक्रम के बाद ही पूर्ति श्री के बर्थ डे का केक काटा जा सका था। इसके बाद जन्मदिन के सामान्य कार्यक्रम सम्पन्न हुये और हम लोग अपने अपने घर लौट आये।
यहां यह घटना घटित होकर सामान्यतः भुलादी जाती परन्तु विगत फरवरी ने इस घटना को कभी न भूलने वाली घटना बना दिया। हुआ यूं कि 3 फरवरी को भारत पाकिस्तान के मध्य हुये क्रिकेट मैच को आखिरी क्षणों तक देखते हुये भारत की विजय को उन्होंने रसगुल्लों के साथ सेलिब्रेट करने के बाद वे अपने शयन कक्ष में दाखिल हुये। रात्रि के दूसरे पहर लगभग 2.30 बजे सीने में असहजता की शिकायत के बाद जैसे ही उन्हें मेडिकल सुविधाओं तक पहुंचाया गया तब तक वे अपनी ऐसी यात्रा के लिये तैयार हो चुके थे जहां से कोई वापिस नहीं लौटता यह प्रातः 3.30 बजे का अवसर रहा होगा।
आज जब वे हमारे बीच नहीं है तो आयु0 पूर्तिश्री के विगत जन्मोत्सव पर मेरे माथे पर लगाया गया अक्षत रोली का उनका टीका उनका वह आर्शिवाद है जो अनमोल है और जिसकी पुनरावृति अब कभी न हो सकेगी।



अक्टूबर 2011 में टूटते सितारों की उडान नामक संयुक्त काव्य संग्रह के प्रकाशित होने पर पिता द्वारा दिया गये आर्शिवाद के क्षण जो मेरी आगामी पुस्तक का मुखपृष्ठ बनेंगें

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

महाकवि सुमित्रा नंदन पंत द्वारा लिखी कुमाउनी कविता


पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाल पुष्प बुरांस अनेक स्थानीय लोककथाओं को समेटे है महाकवि सुमित्रानेदन पंत ने भी श्रेत्रीय कुमाउनी भाषा में इस पुष्प पर कुछ पंक्तियों लिखी हैं जो मुझे ब्लाग बैरंग बैरंग ...पर मिलीं इन्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं

शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त रेगिस्तान माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक

महानगरीय संस्कृति में सुविधाभोगी समाज में पनपते जायज नाजायज रिश्तों की अंतःकथा व्यक्त करता यह वाकया मुझे अमृता प्रीतम की उस कहानी ‘ब्रहस्पतिवार का दिन’ की याद दिला गया जिसमें अमृता ने तथाकथित समाज से यह सवाल किया था कि किसी औरत की पाकीजगीं का ताल्लुक उसके शरीर से ही क्यों लिया जाता है। अमृता जी ने अपनी इस कहानी में अपने बच्चे मन्नू को घर पर अकेला छोडकर अपने धन्धें पर जाती एक काल गर्ल पूजा के मन में पलते मातृत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया थाः-
''माँ के गले से लगी बाँहों ने जब बच्चे को आँखों में इत्मीनान से नींद भर दी, तो पूजा ने उसे चारपाई पर लिटाते हुए, पैरों के बल चारपाई के पास बैठकर अपना सिर उसकी छाती के निकट, चारपाई की पाटी पर रख दिया और कहने लगी—‘‘क्या तुम जानते हो, मैंने अपने पेट को उस दिन मन्दिर क्यों कहा था ? जिस मिट्टी में से किसी देवता की मूर्ति मिल जाए, वहाँ मन्दिर बन जाता है—तू मन्नू देवता मिल गया तो मेरा पेट मन्दिर बन गया....’’
और मूर्ति को अर्ध्य देने वाले जल के समान पूजा की आँखों में पानी भर आया, ‘‘मन्नू, मैं तुम्हारे लिए फूल चुनने जंगल में जाती हूँ। बहुत बड़ा जंगल है, बहुत भयानक, चीतों से भरा हुआ, भेड़ियों से भरा हुआ, साँपों से भरा हुआ...’’
और पूजा के शरीर का कंपन, उसकी उस हथेली में आ गया, जो मन्नू की पीठ पर पड़ी थी...और अब वह कंपन शायद हथेली में से मन्नू की पीठ में भी उतर रहा था।

उसने सोचा—मन्नू जब खड़ा हो जाएगा, जंगल का अर्थ जान लेगा, तो माँ से बहुत नफरत करेगा—तब शायद उसके अवचेतन मन में से आज का दिन भी जागेगा, और उसे बताएगा कि उसकी माँ किस तरह उसे जंगल की कहानी सुनाती थी—जंगल की चीतों की, जंगल के भेड़ियों की और जंगल के साँपों की—तब शायद....उसे अपनी माँ की कुछ पहचान होगी।
पूजा ने राहत और बेचैनी का मिला-जुला साँस लिया। उसे अनुभव हुआ जैसे उसने अपने पुत्र के अवचेतन मन में दर्द के एक कण को अमानत की तरह रख दिया हो....
पूजा ने उठकर अपने लिए चाय का एक गिलास बनाया और कमरे में लौटते हुए कमरे की दीवारों को ऐसे देखने लगी जैसे वह उसके व उसके बेटे के चारों ओर बनी हुई किसी की बहुत प्यारी बाँहें हों...उसे उसके वर्तमान से भी छिपाकर बैठी हुई....

पूजा ने एक नज़र कमरे के उस दरवाजे की तरफ देखा—जिसके बाहर उसका वर्तमान बड़ी दूर तक फैला हुआ था....
शहर के कितने ही गेस्ट हाउस, एक्सपोर्ट के कितने ही कारखाने, एअर लाइन्स के कितने ही दफ्तर और साधारण कितने ही कमरे थे, जिनमें उसके वर्तमान का एक-एक टुकड़ा पड़ा हुआ था....
परन्तु आज बृहस्पतिवार था—जिसने उसके व उसके वर्तमान के बीच में एक दरवाज़ा बन्द कर दिया था।
बन्द दरवाज़े की हिफाजत में खड़ी पूजा को पहली बार यह खयाल आया कि उसके धन्धे में बृहस्पतिवार को छुट्टी का दिन क्यों माना गया है ?
इस बृहस्पतिवार की गहराई में अवश्य कोई राज़ होगा—वह नहीं जानती थी, अतः खाली-खाली निगाहों से कमरे की दीवारों को देखने लगी...
इन दीवारों के उस पार उसने जब भी देखा था—उसे कहीं अपना भविष्य दिखाई नहीं दिया था, केवल यह वर्तमान था...जो रेगिस्तान की तरह शहर की बहुत-सी इमारतों में फैल रहा था....
और पूजा यह सोचकर काँप उठी कि यही रेगिस्तान उसके दिनों से महीनों में फैलता हुआ—एक दिन महीनों से भी आगे उसके बरसों में फैल जाएगा।

और पूजा ने बन्द दरवाज़े का सहारा लेकर अपने वर्तमान से आँखें फेर लीं।‘‘

सचमुच अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त वर्तमान रेगिस्तान शहर की बहुत सी इमारतों से फैलता हुआ आज माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक आ पहुंचा था।
यह अजब संयोग ही किलखनऊ शहर बीते ब्रहस्पतिवार को एक अनोखे मुकदमे का साक्षी बना जब घरों में चौका बरतन करने वाली राजाजीपुरम निवासी एक कुंवारी माँ ने अपने बच्चों के पिता का नाम जानने के लिये उच्च न्यायालय लखनऊ में हलफनामा पेश कर दस लोगों का डी0एन0ए0 टेस्ट करवाने की गुहार लगायी। इस कुंवारी मां का दर्द उसके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामें मे अंकित इन शब्दों में साफ साफ झलकता है-
‘‘मेरे बच्चों के 10 पिता हैं तो मैं किसका नाम दूं। मुझे किसी ने बेटी बहन बीवी और मां नहीं समझा सिर्फ औरत समझा जिसने प्रकृति के गुण दोषों को अपने गर्भ में पालकर उन्हें इन्सान के रूप में निर्माण कर जन्म देने का गुनाह किया है। मेरे बच्चों के दस पिता हैं तौ मैं किसका नाम दूँ। डी0 एन0 ए0 जांच में जवाब खुद ही मिल जायेगा।’’

इस कुंवारी मां के द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष जिन दस व्यक्तियों का डी0एन0ए0 टेस्ट कराने का अनुरोध किया है उनमें एक नामी पत्रकार एक डाक्टर एक वकील तथा एक इंजीनियर और एक ठेकेदार भी शामिल है। इस सूची को देखने के बाद बस एक ही बात मस्तिष्क में गूंजती है कि ‘इस हम्माम में सब नंगे हैं।’ एक कुंवारी मां के सौजन्य से मा0 न्यायालय के सम्मुख पहुचे इस अनोखे मुकदमें में फरवरी माह की 9 तारीख को पुनः सुनवाई होनी है।
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