बुधवार, 31 अगस्त 2011

जन्मदिवस मुबारक हो अमृता जी !

अधूरे प्रेम की प्सास के दस्तावेजों की सर्जक अमृमा प्रीतम का जन्मदिवस

पिछले माह जुलाई में जब भारतीय नारी ब्लाग पर अमृमा प्रीतम के बारे में लिखने की श्रंखला प्रारंभ की थी तो मेरी यह योेजना थी कि प्रति सप्ताह औसतन दो पोस्ट लिखते हुये अमृता जी के जन्म दिवस 31 अगस्त को इसका समापन करूँगा परन्तु कुछ कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो न सका। एक तो यह पूरा महीना स्वतंत्र भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे की गांधीवादी लडाई के चलते इस विषय से संबंधित आलेखों के सामयिक महत्व का रहा और दूसरे भारतीय नारी ब्लाग पर संस्थापको द्वारा अगस्त महीने के लिये बहन विषय नियत कर दिया गया।
वहरहाल , बहन विषय पर तो अमृताजी के संबंध में भी कुछ सामग्री जुटा पाया जिसे आपके साथ साझा भी किया, इसी विषय पर अमृता जी से जुडी कुछ सामग्री और है जिसे व्यवस्थित न कर पाने के कारण नहीं प्रस्तुत कर सका अब इसे भैया दूज या ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर साझा करूंगा। इसके अतिरिक्त अन्य विभूतियों के जीवन से जुडी बहन विषयक सामग्री को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहा। आज जब इस माह का अंतिम दिन है और साथ ही अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस भी है तो इस अवसर पर अपनी पूर्व योजनानुसार भारतीय नारी ब्लाग पर उन्हे याद करने के अवसर को चूकना नहीं चाहता सो यह पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अमृता प्रीतम जी की कलम उन विषयों पर चली जो सामान्यतः भारतीय नारी के सामाजिक सरोकारों से इतर थे। जहाँ अमृता जी के अन्य समकालीन लेखकों द्वारा भारतीय नारी की तत्कालीन सामाजिक परिवेश में उनकी व्यथा और मनोदशा का चित्रण किया है वहीं अमृता जी ने अपनी रचनाओं में इस दायरे से बाहर निकल कर उसके अंदर विद्यमान ‘स्त्री’ को मुखरित किया है। ऐसा करते हुये अनेक अवसरों पर वे वर्जनाओं को इस सीमा तक तोडती हुयी नजर आती हैं कि तत्कालीन आलोचकों की नजर में अश्लील कही जाती थीं।

चित्र 1 पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के अप्रैल 2003 में लिखा गया लेख

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

तुम तो चली गयी , अब क्या करूँ उन शब्दों का जो सिर्फ तुम्हारे लिये ही लिखे थे?


भारतीय सिनेजगत में चवन्नी उछाल कर दिल माँगने का सिलसिला बहुत पुराना रहा है परन्तु भारत सरकार ने बीते एक माह से चवन्नी का चलन ही बंद कर दिया है। ऐसी हालत में अब भारतीय टकसाल में ढलने वाली सबसे छोटी मुद्रा अठन्नी होगी। अब चवन्नी उछाल कर दिल माँगने वाला सिने जगत सीधे सीधे चेक माँगता हुआ नजर आ रहा है (याद करें अदनान सामी) परन्तु असली लाचारी उन ऐतिहासिक दस्तावेजों की है जो सिर्फ चवन्नी के बारे में ही लिखे गये थे। इस संबंध में साहित्यिक और सिने जगत ने तो अपने अपने तरीके से इसका हल निकाल लिया है परन्तु विधिक प्राविधानो पर नजर दौडाने पर हाल ही में एक रोचक तथ्य संज्ञानित हुआ है।
किसी कार्य से भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899(यथासंशोधित) के प्राविधानों को पढने की आवश्यकता उत्पन्न हुयी। इस केन्द्रीय अधिनियम की एक धारा ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जो इस प्रकार थीः-

घारा 78ः- अधिनियम का अनुवाद तथा सस्ते दाम पर बिक्री- प्रत्येक राज्य सरकार अपने द्वारा शासित क्षेत्रार्न्तगत अधिकतम पच्चीस नये पैसे (शब्द ‘पच्चीस नये पैसे’ 1958 में प्रतिस्थापित) प्रति की दर पर प्रभुख भाषा में इस अधिनियम के अनुवाद की बिक्री के लिये प्राविधान बनायेगी।
(मूल धारा अंग्रेजी मे है यहाँ उसका अनुवाद प्रस्तुत है)

यह पढकर मुझे यह सुखद आश्चर्य हुआ कि आज से 112 वर्ष पूर्व जब अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीय स्टाम्प अधिनियम बनाया गया तब भी जन साधारण को सूचना उपलब्ध कराने के विन्दु पर कितनी सजगता थी। बहरहाल आज तो इसके लिये पृथक से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 ही लागू है।

सोमवार, 15 अगस्त 2011

शासन के प्रतीक तहसीलदार को लाठी डंडो से पीट पीट कर मार डालने जैसा विध्वंसकारी स्वरूप


स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग?
आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के दो दिन पूर्व यानी 21 जुलाई की बात थी मै एक आवश्यक राजकीय कार्य के चलते उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इलाहाबाद गया हुआ था। थोडा समय बचा तो इलाहाबाद राजकीय पुस्तकालय पहुँच गया।
पुस्तकालय में पुराने समाचार पत्रों में आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के संबंध में छपी खबरों को ढूँढकर उसके चित्रों के साथ एक आलेख बनाने की योजना थी। (इससे संबंधित पोस्ट 23 जुलाई 2011 को इसी ब्लाग पर जारी हुयी थी जिसे आप सबका भरपूर सम्मान और समर्थन मिला था)
आजाद जी की खबरों वाले समाचार पत्र का छायाचित्र लेने के दौरान ही उसी समाचार पत्र में छपी एक खास खबर पर निगाह अटक गयी।


चित्र-1 .1मार्च 1931 का समाचार पत्र जिसमें चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु के समाचार के साथ तहसीलदार की हत्या का भी समाचार छपा था

सोमवार, 8 अगस्त 2011

आभार...... कविताकोश !!

3 अगस्त 2011 का दिन मेरे लिये उत्साह का दिन था। अपना मेल बाक्स देख रहा था कि कविताकोश के संस्थापक ललित कुमार जी का मेल मिला लिखा था 7 अगस्त 2011 को जयपुर में कविकाकोश सम्मान समारोह 2011 में मुझे सम्मानित अतिथि के रूप में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया गया था। यूँ तो कविताकोश सम्मान समारोह 2011 में सम्मिलित होने संबंधी औपचारिक मेल काफी पहले आ गया था
परन्तु इस मेल में मेरे लिये लक्ष्मी विलास होटल आरक्षित कक्ष तथा वाहन आदि का विवरण था। जयपुर मेरा पसंदीदा शहर है । मेरा छोटा भाई संजय जो साफ्टवेयर इंजीनियर है सपरिवार वहीं रहता है। संजय अक्सर लखनऊ आ जाता है परन्तु यह शिकायत करना नहीं भूलता कि दद्दा जी (वह मुझे इसी नाम से संबोधित करता है ) को तो जयपुर आने की फुरसत ही नहीं मिलती। कविताकोश के सौजन्य से मिले इस अवसर को मैं संजय की शिकायत का निराकरण करने के रूप में उपयोगी पाकर उत्साहित हो गया।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

जबरिया मारे रोने न दे

अचानक यहाँ लखनऊ में एक ऐसी खबर आयी है जो भारतीय नारी के लिये अच्छी है सो आज की पोस्ट में उसे दे रहा हूँ । हाँलांकि इसमें पुरूषों के प्रति कुछ ज्यादती नजर आती है लेकिन यह चर्चा आप सब सुधी पाठक जनों पर छोडते हुये खबर का आनंद लें।


जी हाँ ! लखनऊ के उच्च न्यायालय में एक डाक्टर दंपत्ति के तलाक संबंधी मुकदमे में न्यायालय ने कुछ ऐसी ही व्यवस्था दी है। इस निर्णय ने जहाँ एक ओर विवाहित हिन्दू महिला के अधिकारों को मजबूती प्राप्त होने के साथ साथ विवाह विच्छेद के आधारों को नये सिरे से परिभाषित करने जैसा कार्य किया है वहीं दूसरी ओर पत्नियों के अत्याचार से पीड़ित पतियों की दशा ‘‘जबरिया मारे रोने न दे ’’जैसी भी कर दी है।
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