शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

फेसबुक ट्विटर पर नशेडियों की नयी फौज

इधर कुछ महीनों से हमें भी ब्लागरर्स को पढने का और अपने कुछ अनुभवों को ब्लाग पर डालने का नया चस्का लगा है। कल सुबह की बात है जब मैं सुबह सुबह अपने लैपटाप पर ब्लागो की सैर करते हुये ब्लागरों की नयी नयी पोस्ट देख रहा था तो मेरी पत्नी दैनिक हिन्दुस्तान समाचारपत्र लेकर मेरे पास आयी और बोली:
‘‘देखो जो मैं कहती थी ना। आज अखबार में भी वही छपा है।’’
मैं अपने लैपटाप पर झुके झुके ही बोलाः ‘‘क्या हुआ जी...? क्या छपा है...?’





चित्र1 समाचार पत्र मे सोशियल नेट वर्किग साइट से जुडी खबर

तो झट से मेरी पत्नी ने साथ वाली खबर मेरे आगे कर दी । समाचार का शीर्षक देखकर उसे पढने की उत्सुकता हुयी तो उसमें लिखे तथ्यों को पढकर मैं भी सकपका गया। ‘न्यूयार्क पोस्ट’ ने लगभग 1000 फेसबुक और ट्विटर प्रयोक्ताओं के बीच किये गये सर्वे के आधार पर यह यह निष्कर्ष निकाला है की

बुधवार, 27 जुलाई 2011

यादों के झरोखे में कारगिल विजय दिवस पर संस्मरण

26 जुलाई का दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि हम इसे कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ यादें आपके बीच बांटने का मन हुआ सो विचारों ही विचारों में 1999 के जून माह तक जा पहुँचा । घटना संभवतः माह के आरंभ के किसी कोई दिवस की है । मै अविभाजित उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल के जनपद टिहरी गढ़वाल की तहसील नरेन्द्रनगर में बतौर अधीनस्त प्रशासनिक अधिकारी (तहसीलदार ) के रूप में कार्यरत था।
रात का तकरीवन ग्यारह बजा था मैंने रात का खाना खाकर बिस्तर में पहुँचने के बाद रिमोट से खेलते हुये टी वी पर आने वाले चैनलों की थाह लेनी शुरू ही की थी कि बाहर के कमरे में रखा टेलीफोन अचानक घनघनाने लगा। किसी अनमनी काल को भाँपकर मैने पत्नी से फोन उठाने को कहा।

चित्र1 कारगिल शहीदों की स्मृति में लगाया गया विजय अभिलेख
(चित्र विकीपीडिया इनसइक्लोपीडिया के सौजन्य से)

कुछ ही सेकेन्ड के बाद पत्नी कार्डलेस फोन हाथ में लेकर शयन कक्ष में आ पहुँची और हाथ से कार्डलेस फोन का माउथ पीस दबाकर बोली:-
‘‘डी0एम 0 साहब का फोन है।’’

शनिवार, 23 जुलाई 2011

"यह मृत्यु मेरी निजी क्षति है।मै इससे कभी उबर नहीं सकता"


23 जुलाई का दिवस भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इस दिन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े दो भिन्न विचारधारओं के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जन्मदिवस है। इनमें से पहले है बालगंगाधर तिलक जिन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपना गुरू मानते थे, वेे आज से ठीक 155 वर्ष पूर्व सन् 1856 में पैदा हुये थे और दूसरे है पं चंद्रशेखर तिवारी जिन्हें हम सब उनके प्रचलित नाम चन्द्रशेखर आजाद के नाम से जानते हैं। इनका जन्म बाल गंगाधर तिलक से 50 वर्ष बाद सन् 1906 में मध्य प्रदेश के भाबरा (झाबुआ) नामक स्थान पर पंडित सीताराम तिवारी और श्रीमती जगरानी देवी के घर हुआ। जनपद उन्नाव का बदरका नामक ग्राम आजाद जी की कर्मस्थली रहा है।

1अमर क्रांतिकारी चन्दशेखर आजाद की स्मृति में अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में स्थापित प्रतिमा

यूं तो आजाद जी ने जीविका के लिये 14 वर्ष की उम्र से ही नौकरी प्रारंभ कर दी थी परन्तु एक वर्ष बाद ही शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से सन् 1921 में मात्र 15 वर्ष की आयु में पंडित चंद्रशेखर का प्रवास स्थल काशी बना जहाँ रहकर वे महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुडे ।

रविवार, 17 जुलाई 2011

क्या देवी-देवताओं को वाहनों की जरूरत पड़ती है?


कभी ध्यान से श्री कृष्णजी के पास खड़ी उनकी पांव की तरफ मुग्ध भाव से झुकी गाय को देखा है। कितने कोमल भाव हैं कितनी ममता है। भगवान दत्तात्रेयजी के साथ सदा मुग्धा गाय, काले कुत्ते या कबूतर को देख किसके मन में हिंसा उपज सकती है। ईसा की बाहों में मेमना, घायल हंस को अश्रुपूरित आंखों से तकते सिद्धार्थ, माँ सरस्वतीजी का हंस, शिवजी के पूरे परिवार का विभिन्न पसु-पक्षियों के साथ सानिध्य, गुरु गोविंद सिंहजी का बाज यह सभी तो एक ही संदेश दे रहे हैं। दया का, ममता का, धरा के सारे प्राणियों के साथ प्रेम-भाव का।
कुछ अलग सा: क्या देवी-देवताओं को वाहनों की जरूरत पड़ती है?

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

‘कविता कोश’ पुस्तिका के पन्नों पर योगदानकर्तागण



कविताकोश प्रकाशन द्वारा पाँच वर्ष का सफर पूरा करने पर एक पुस्तक प्रकशित करायी गयी है। इस प्रकाशित पुस्तक में योगदानकर्ताओं को सर्वाधिक महत्व देते हुये एक प्रमुख योगदानकर्ता आशा खेत्रपाल जी से इसके लिये इसकी प्रस्तावना लिखवायी गयी है। 10 फरवरी 2011 को प्रकाशन की इस अनूठी पहल के प्रति साधुवाद अंकित करते हुये आशा जी ने लिखा हैः-

‘‘...इस पुस्तक के लिये प्रस्तावना किसी तो किसी नामी साहित्यकार से लिखवाई जा सकती थी फिर यह सम्मान मुझे क्यों दिया जा रहा है । जब मैने इस बारे में ललित से पूछा तो उन्होंने कहा कि कविताकोश के किसी प्रयोक्ता से ही प्रस्तावना लिखवाना चाहते हैं। कविताकोश और इस पुस्तक का वास्तविक व ईमानदार आंकलन कोश का कोई प्रयोक्ता ही कर सकता है। आज जब मैने प्रस्तावना लिखने के लिये कलम उठा ली है तो लिखते समय मेरा मन गौरव अनुभव कर रहा है।....’’

इसके अतिरिक्त कोश के योगदानकर्ताओं के लिये एक पृथक अध्याय भी लिखा गया है जिसमें सर्वाधिक रचनाऐं जोडकर योगदान करने वाले सात प्रमुख योगदानकर्ताओं का सचित्र परिचय प्रकाशित किया गया है ।
कोश में पचास से अधिक रचनाऐं जोडने वाले अन्य बाइस योगदानकर्ताओं का भी ससम्मान उल्लेख किया गया है। जिन योगदानकर्ताओं द्वारा स्वयं रचनाऐं न जोड़कर उसे कविताकोश टीम के माध्यम से कोश में जोड़ा है ऐसे ग्यारह योगदानकर्ताओं के नाम भी प्रमुखता से उद्धृत किये गये हैं।

कोश से जुडने वाले नये योगदानकर्ताओं की सहायता की दृष्टि से कम्प्यूटर पर हिंदी में कैसे लिखे ? नामक एक पृथक अध्याय भी जोडा गया है।

सोमवार, 11 जुलाई 2011

महर्षि दधीचि का मिस अल्मोडा कनेक्शन.....

बाबा रामदेव द्वारा महिला वस्त्रों का धारण करने की खबर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि हमको महर्षि दधीचि के मिस अल्मोडा कनेक्शन की सनसनाती हुयी जानकारी के कुछ सुराग हाथ लगे हैं। बात दरअसल यह है कि अभी हाल ही में हमें जनपद सीतापुर की तहसील मिश्रित (जो हमारी ननिहाल भी है) जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह जनपद सीतापुर महाकवि नरोत्मदास की जन्म स्थली के अतिरिक्त नैमिशारण्य चक्रःतीर्थ , महर्षि दधीचि निर्वाण सरोवर आदि पौराणिक तीर्थ स्थानो के लिये भी प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्मकथाओं के अनुसार देवता असुर संग्राम में महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियों से वजा्रस्त्र बनाने के लिये अपने शरीर का त्याग यहीं किया था वह स्थान अब यहाँ मिश्रित तीर्थ के रूप में जाना जाता है।



1 सूर्यास्त की बेला में महर्षि दधीचि के निर्वाण स्थल पर बने मंदिर की छटा

मिश्रित तीर्थ स्थान में महर्षि दधीचि निर्वाण सरोवर नामक एक बहुकोणीय सरोवर है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब महर्षि दधीचि ने अपने शरीर के त्याग का निर्णय लिया तो उनके शरीर पर पवित्र गंगाजल उँडेला जाता रहा और गौमाता के द्धारा उनके शरीर को तब तक चाटा जाता रहा जब तक कि वह हड्यिों का ढ़ांचे के रूप में परिवर्तित नहीं हो गया। अवशेष हड्डियों से बने वज्रास्त्र की सहायता से ही देवताओं को विजय की प्राप्ति हो सकी। महर्षि के शरीर पर उँडेले गये पवित्र जल से ही इस सरोवर का निर्माण हुआ।

महर्षि दधीचि के निर्वाण स्थल पर एक प्राचीन मंदिर निर्मित है जिसके प्रांगण में ही यह बहुकोणीय सरोवर स्थित है। इस प्रांगण के चारो ओर घनी बस्ती है और इसी बस्ती के बीच में सरोवर में प्रवेश करने के आठ द्धार हैं । बचपन से अनेक बार इन द्धारों से गुजरने का अवसर मुझे मिलता रहा है परन्तु इस बार इस द्वार से प्रवेश करना विशेष घटना के रूप में घटित हुआ क्योंकि इस बार यह प्रवेश द्वार कुछ विशिष्ठता सहेजे हुये था।
यूँतो घनी बस्ती होने के कारण लगभग प्रत्येक प्रवेश द्धार के अगल बगल में अस्थायी दुकानें अथवा छप्पर आदि डालकर अतिक्रमण किया जाना आम बात है परन्तु इस बार जो देखने को मिला वह अनोखा था। महर्षि दधीचि सरोवर के एक प्रवेश द्धार पर इस बार ‘मिस अल्मोडा गेट’ लिखवाया गया है ।



2 महर्षि दधीचि सरोवर के एक प्रवेश द्वार पर अंकित ‘मिस अल्मोडा गेट’

आस पास कई महानुभावों से पूछताछ किये जाने के बाद भी हमें कोई भी यह नही बता सका कि कौन सी ‘मिस अल्मोडा’ के द्धारा (अथवा उनकी स्मृति में) इस द्धार का नामकरण किया गया गया है।



3 दधीचि कुण्ड में सूर्यास्त की मनोरम छटा

सौभाग्य से मेरा ननिहाल यहाँ होने के कारण बचपन से कई बार यहाँ आने का सौभाग्य मिलता रहा है । मेरी स्मृति में नहीं आता कि इसके पहले कभी इस प्रवेश द्वार पर ऐसी कोई संज्ञा अंकित पायी हो। इसी ‘मिस अल्मोडा गेट’ के ठीक नीचे किसी दाँतों के अस्पताल का विज्ञापन पट लटका हुआ है । इस अस्पताल की पड़ताल करने पर एक ऐसे सज्जन से मुलाकात हुयी जिन्हे सम्मानित भाषा में झोलाछाप कहा जाता है।




4 महर्षि दधीचि सरोवर के प्रवेश द्वार पर विज्ञापित ‘दाँतों का अस्पताल’


मुझे उनके झोले से कोई गुरेज नहीं था सो ताजा -ताजा ‘मिस अल्मोडा गेट’ अंकित पाकर मैं अपनी इस पृच्छा का समाधान उनसे भी पूँछ बैठा। बहरहाल यह बात कोई भी नही बता सका कि कौन सी मिस अल्मोडा के द्धारा, अथवा किनकी स्मृति में इस प्राचीन द्धार का नवीनतम् नामकरण किया गया है , हाँ....वे भी नहीं बता सके .., जिन्होने इस नाम के ग्लैमर में अपना झोला पूरी मजबूती से टाँग रखा है।
...... और महर्षि दधीचि का यह ‘मिस अल्मोडा कनेक्शन’ मेरे लिये अनसुलझा ही रहा।
अब आप के साथ इस वृतांत को इस आशा के साथ बाँट रहा हूँ कि शायद आप ही इस सुराग के माध्यम से महर्षि दधीचि के मिस अल्मोडा कनेक्शन का रहस्योद्घाटन कर सकें।

नवभारत Times पर शुरू हुयी कोलाहल से दूर ब्लॉग सेवा पर भी आप क्लिक करके इसे पढ़ सकते है

इसी पेज पर
पर जाना होगा।

सावन (हाइकू)

(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली

(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली

(2)
बादल छाये
धरती पर ऐसे
मोहिनी जैसे

अब आप के साथ इस (हाइकू) को इस आशा के साथ बाँट रहा हूँ कि शायद आप ही इस सुराग के माध्यम से रहस्योद्घाटन कर सकें।

सरहदों के पार से आती नई कविता की बयार>

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

चर्चा मंच: "लगता है अहसास कोई जिन्दा है कहीं":-(शनिवासरीय चर्चा)....Er. सत्यम शिवम

नमस्कार दोस्तों....मै सत्यम शिवम हर शनिवार की तरह आज भी आ गया हूँ...बारिश की कुछ फुहारों के साथ...मौसम बहुत सुहाना है,कही बूँदा बाँदी हो रही है,तो कही निरंतर बारिश...पर भीगने का मजा तो कुछ और ही है...चर्चा मंच: "लगता है अहसास कोई जिन्दा है कहीं":-(शनिवासरीय चर्चा)....Er. सत्यम शिवम

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

ं की खुशबु फैलाता एक संयुक्त ब्लॉग.... .....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पो


ं की खुशबु फैलाता एक संयुक्त ब्लॉग.... .....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पो

.....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पों की खुशबु फैलाता एक संयुक्त ब्लॉग....



मोबाइल आज हमारी जीवन-चर्या का अहम् हिस्सा है। मोबाइल पर आने वाली वाली कालें ही हमारे दैनिक क्रियाकलापों को नियंत्रित करती हैं। कई बार मोबाइल पर आने वाली कालों को हम चाहकर भी रिसीव नहीं करते हैं ऐसे में ये मिस्ड कालें भी बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही एक मिस्ड काल को व्यक्त करती मेरी कुछ पंक्तियाँ 4 जुलाई को साहित्य प्रेमी संघ के पटल पर प्रकाशित हुयी है। जिन तक पहुँचने के लिये कृपया आगे दिया गया लिंक क्लिक करें .......
.....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पों की खुशबु फैलाता एक संयुक्त ब्लॉग....

रविवार, 3 जुलाई 2011

रूपान्तरण [कहानी]


उस पूरी रात मैं सेा न सका। प्रातः जल्दी उठा और सावित्री दीदी के लिखे सारे पुराने पत्रों की पूंजी निकाल लाया। एक एक कर उन्हें अपनी पढाई के टेबिल पर बिखराकर पुनः नये सिरे से पढने लगा। उन पत्रों को नयी द्वष्टि से पढते हुये सोच रहा था कि ‘क्या सचमुच दीदी के आखिरी पत्र में लिखी हिदायत के अनुरूप इन्हे नष्ट कर दिया जाय ?’ इन सारे पत्रों में तो मुझे अब भी उद्बोधन और प्रेरणास्पद सूक्तियां ही दिखलायी पड रही थीं। बडे प्रयासेां के बाद भी मैं उन पत्रों ऐसा कुछ भी न खोज सका जो उन्हे आपत्तिजनक या असंग्राही बनाता हो। अंत में हार कर एक ब्लेड ले आया और उन सारे पत्रों में जहां जहां ‘‘भैया’’ और ‘‘दीदी’’ नामक संबोधन अंकित था उसे ब्लेड से कुतरने लगा। सावित्री दीदी के उस आखिरी पत्र में दी गयी हिदायत के अनुरूप आखिर उन्हें नष्ट जो करना था।साहित्य शिल्पी के 22 जून अंक में प्रकाशित हुयी है।
यदि आप भी इस कहानी को पूरा पढ़ना चाहते हैं तो कृपया नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें , और हाँ कहानी पढ़ने के बाद अपनी टिप्पणी भेजना न भूलें।
आभारी रहूंगा

पूरी कहानी पढ़ने के लिए आगामी लिंक पर क्लिक करे .........उत्तर प्रदेश राजस्व (प्रशासनिक) अधिकारी मंच: रूपान्तरण [कहानी]
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