मंगलवार, 5 सितंबर 2017

शिक्षक दिवस पर गुरु घंटाल को भी नमन

जीवन यात्रा से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है। सो आज का विशिष्ट नमन जीवन यात्रा के उन अनुभवों को जो कड़वे होने के कारण सबसे अच्छे शिक्षक सिद्ध हुए।
जीवन यात्रा के प्रारम्भिक चरणों का ऐसा अनुभव जो याद आ रहा है वो कक्षा सात के आसपास का है। स्थान वही पौड़ी का डी ऐ वी कालेज....
सहपाठियों में कई नाम अच्छे थे लेकिन एक नाम था सलिल.....जी हाँ ..! शायद सलिल ही नाम था उसका...!
मैं नया नया प्रभावित हुआ था उसके लंबे बालों को देखकर..!
कॉपी पर लिखते हुए उसके बाल आँखों पर आ जाते तो वह बड़ी स्टाइल से सिर को झटक कर उन्हें वापिस अपने सिर पर ले आता । उसे न होम वर्क की चिन्ता रहती और न ही कापियों के कवर फटने की..! 
वो कक्षा में पीछे की सीट पर बैठता था और मैं अगली पंक्ति में।सलिल जी से मुलाक़ात जा संयोग कुछ इस वजह से बना कि विद्यालय में किन्ही बड़े अफसर का निरीक्षण होना था सो अगली पंक्ति में बैठने वालो को पीछे की पंक्तियों में अलग अलग स्थान पर समायोजित किया गया था ताकि निरीक्षणकर्ता को पिछली पंक्तियों में भी होमवर्क पूरा करने वाले अच्छे छात्रो का आभास मिल सके।
उस निरीक्षण का क़िस्सा फिर कभी सुनाऊंगा लेकिन आज सलिल के साथ बितायी एक दोपहर बताना चाहता हूँ जब उसके आभामंडल से आकर्षित होकर मैं उसके साथ मध्यावकाश में कालेज से काफी दूर जंगल की और निकल गया था। 
कंडोलिया से सिविल लाइन्स आने वाले मोटर मार्ग के मध्य में ही एक स्थान पर एक टाकीज था जिसे फट्टा टाकीज कहा जाता था। वह स्थान लगभग निर्जन था। वही पर दो बड़ी चट्टानों के बीच एक ऐसा स्थान था जहाँ कोई हमें देख नहीं सकता था। 
उस निर्जन स्थान पर पहुँच कर सलिल ने अपनी जेब से दो अधजले सिगरेट के टोटे निकाले और एक मुझे पकड़ा कर दुसरा स्वयं सुलगा लिया। आसमान की ओर देखकर आँखे बंद करके एक लंबा कश लिया और कुछ देर बाद स्टाइल के साथ धुंवा छोड़कर बोला-
"तुम भी इसी तरह कश लगाओ ...बड़ा मजा आता है..!"
मैंने कई बार प्रयास किया लेकिन उस अधजली सिगरेट को सुलगा नहीं सका तो उसने अपना वाला टुकड़ा मुझे दिया और ओंठो से लगाकर सांस अंदर खींचने को कहा।
मैंने ऐसा ही किया और अगले ही पल खांसी का एक तेज झटका आया और आँखों से पानी निकल आया।
वो बोला-
"अबे ....! इतनी तेज खींचने को थोड़े ही बोला था..! आराम से खींच..स् स् याया ले...!"
लेकिन मेरी हिम्मत न हुई कि मैं एक बार और ऐसा विषाक्त धुंवा अपने फेफड़ों तक खिंच सकूँ।
आज सोचता हूँ कि ईश्वर मेरे प्रति कितना दयालु था कि उसने मेरे लिए सिगरेट के इस पहले अनुभव को इतना कड़वा बना दिया कि आगे कई वर्षो तक मैं दुवारा सिगरेट पीने की सोच भी नही सका। 
....यदि ईश्वर दयालु न होता तो वो पहला कश हल्का होता और आनन्ददायी होता तो शायद मै भी इस बुरी आदत का शिकार बन गया होता.....!
शिक्षक दिवस पर उस "बाल गुरु घंटाल" को भी नमन....

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

फेसबुक..नशा..!

कल भी-
चुपके से आयी थी वो
मेरी पोस्ट पर 
और लाइक दबाकर चली गयी
कुछ भी नहीं बोली....
मैंने देखा था
अपनी पोस्ट पर
वो ब्लू एक्टिव लाइक,
महसूस भी किया था
अपने चेहरे पर
तुम्हारी उंगलियो के पोरों सा,
लेकिन जाने क्यों.?
चन्द पलों बाद
कुछ सोचकर
फिर लौटी थी तुम
उसी ब्लू ऐक्टिव लाइक को छूने
एक बार फिर
तुम्हारे छूते ही
गायब हो गया था
वो ब्लू एक्टिव लाइक
जानती हो
फेसबुक की
आभासी दुनिया से दूर
शरमा कर वो दुबक गया है
मेरे अंतस्थल में..!
फिर से बताता हूँ-
लोगों को चढ़ता होगा..नशा..!
मुझे तो तुम चढ़ी हो
...
प्रिये..!

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

यकीन है मुझे...!

 वादा था... 
 सिर्फ प्रेम लिखूंगा..! 
 लेकिन 
 कैसे लिख सकूँगा..? 
 जब 
 अपने कमरे में 
 रस्सी के फंदे पर 
 झूलता मिला हो 
 कोई पहरुआ..? 
 जब आँखों के सामने 
 टूटे पड़े हों कुछ सपने..? 
 गौर से देखो मित्रों 
 उसी कमरे में मिलेगा- 
 टूटा हुआ भरोसा..! 
 मिलेगी सिसकती हुई आस...! 
 और शायद.. 
 मिल जाए 
 भटकी हुई व्यवस्था भी...! 
 अब सोचो- 
 ऐसे में कैसे निभेगा ? 
 सिर्फ प्रेम लिखने का वादा..! 
 फिर भी- 
 यकीन है मुझे 
 कि- 
 मैं सिर्फ 
 प्रेम ही लिखूंगा.!

शनिवार, 1 जुलाई 2017

जादू...!

सुबह उठते ही
ताजे हवा के झोंके की आस में
खिडकी खोल दी
लेकिन यह क्या....?
ताजी हवा के साथ
चेेहरे से टकरायी
ठंडी फुहार
और जादू देखिये
भीग गया मन
सचमुच लोगो को तो नशा चढता है
लेकिन
मुझे तुम चढी हो ....प्रिये !

सोमवार, 20 मार्च 2017

आचार्य जी का पुण्य स्मरण और योगी आदित्यनाथ को शुभकामनाएं...!


1947 में आजादी मिलने के साथ ही उत्तराखंड से एक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ नाम था "युगवाणी" इसे आरम्भ किया था आचार्य गोपेश्वर कोठियाल ने...!
आज आचार्य जी की पुण्यतिथि है.. 19 मार्च 1999 को उनका निधन हुआ था और उसके ठीक दस दिन बाद 29 मार्च 1999 को भयंकर भूकंप आया था...जिसमें आचार्य जी का ग्राम उदखण्डा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ था..।
तब उनके पुत्र संजय कोठियाल Sanjay Kothiyal के साथ इस दुरूह ग्राम उदखण्डा तक की यात्रा की थी ...। आचार्य जी के न रहने के बाद संजय जी " युगवाणी" पत्रिका का निरंतर प्रकाशन कर रहे हैं..
एक और उत्तराखंडी अजय सिंह बिष्ट ने कल उत्तर प्रदेश में नया इतिहास रचा है ...जब उसे प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना गया...जी हाँ..! योगी आदित्यनाथ के रूप में पहचाने जाने वाले दरअसल अजय सिंह बिष्ट हैं जो 1991 में कोटद्वार महाविद्यालय में छात्रसंघ का चुनाव बुरी तरह हारने के बाद दुखी होकर अपने मामा महंत अवैद्यनाथ के पास गोरखपुर आ गए। 1992 में महंत के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें योगी आदित्यनाथ के रूप में पहचान मिली..तब उन्होंने अपने पिता से कहा था-
"बस यूँ समझ लो कि अब ..अजय सिंह बिष्ट मर चुका है..!"
कैसा संयोग है कि एक आचार्य गोपेश्वर कोठियाल की मृत्यु के बाद उनकी मशाल "युगवाणी" को उनके पुत्र संजय कोठियाल अनवरत देदीप्तिमान रखे हैं तो ..अजय सिंह बिष्ट की आभासी मृत्यु को स्वयं अजय सिंह ने चोला बदलकर प्रकाशवान किया है..!
आचार्य जी का पुण्य स्मरण और योगी आदित्यनाथ को ढेरों शुभकामनाएं...!
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