शनिवार, 31 दिसंबर 2011

सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी के ब्लाग पर मेरे कुछ ‘हाइगा’ और नव वर्ष की शुभकामनाये


हाइगा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हाइ और गा । हाइ शब्द का अर्थ है हाइकू जो जापनी कविता की एक समर्थवान विधा है और गा का तात्पर्य है चित्र । इस प्रकार हाइगा का अर्थ है चित्रों के समायोजन से वर्णित किया गया हाइकू। वास्तव में हाइगा’ जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ । हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला) हाइगा की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था
देश की वर्तमान हालात को बयां करते मेरे कुछ ‘हाइगा’ हिन्दी हाइगा को समर्पित सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी के ब्लाग पर हाल ही में प्रकाशित हुये है। जिन्हें पढने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें !
देश की वर्तमान हालात को बयां करते ‘हाइगा...

हिन्दी विकी पीडिया पर हिन्दी में हाइगा... के नाम से सामग्री डाली गयी है जिसे आप और अधिक विस्तार दे सकते हैं

आप को कोलाहल से दूर परिवार की ओर से नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।
  
                     

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

एक और रवि (वार) की दुखद हत्या ....


हिन्दी साहित्य में गुलेरी जी की लोकप्रिय कहानी ‘उसने कहा था’ आज हमें एक दूसरे संदर्भ में याद आयी। हुआ यूं कि जब से लखनऊ कलक्ट्रेट में तैनाती पायी है अवकाश दिवस अर्थहीन हो गये हैं। तकरीबन पिछले दो माह से लगातार अवकाश के दिवस में शहर में कोई न कोई महत्वपूर्ण आयोजन होता है (यथा मोहर्रम के चलते अथवा निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता जागरूकता के लिेये अवकाश के दिन प्रायोजित कार्यक्रम आदि आदि ) इसके लिये निश्चित किये गये दायित्यों के कारण उसमें भौतिक उपस्थिति के चलते विगत किसी भी अवकाश दिवस मे मैं अपने पारिवारिक दायित्व नहीं निभा पाया हूँ।

अभी कल जो रविवार बीता है उसमें भी राजधानी में शासक दल द्वारा मुस्लिम क्षत्रिय वैश्य भाईचारा रैली का आयोजन किया गया था जिसमें शान्ति व्यवस्था व अन्य व्यवस्थाओं (?)के मध्येनजर समूचे प्रदेश से छोटे बडे लगभग 500 अधिकारी विभिन्न उत्तरदायित्यों के निर्वहन के लिये राजधानी में उपस्थित थे।


प्रदेश की लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी (?) द्वारा मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराया गया।
संभवतः बहुजन समाज पार्टी के इतिहास में यह पहला अवसर रहा होगा जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हिन्दुस्तान के मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराया गया। यह संयोग ही था कि आज ठीक उस समय जब लखनऊ में सार्वजनिक मंच से बसपा प्रमुख जहां हिन्दुस्तान में मुसलमानों को सच्चर कमेटी के अनुरूप सहूलियें मुहैया कराने का संकल्प कर रही थी ठीक उसी समय भारतीय ब्लाग और ब्लागरों के समाचारों का दर्पण कहा जाने वाले 'भारतीय ब्लॉग समाचार' पाकिस्तानी हिन्दुओं की हिन्दुस्थान में दुर्दशा ...की सूचना सार्वजनिक करते हुये यह बता रहा था कि पाकिस्तान से तीर्थयात्रा पर भारत आया 150 हिन्दुओं का दल किस प्रकार हिन्दू होने का अपराध ....की सजा भुगतते हुये वापिस अपने देश पाकिस्तान नहीं जाना चाहता।

मै इस अवसर पर हिन्दुस्तान में राजनैतिक तुष्टिकरण के विस्तार में न जाते हुये नवभारत टाइम्स में रीडर्स ब्लाग . पर ब्लागर केशव द्वारा प्रकाशित निम्न आंकडों को आपको पुनः याद दिलाना चाहता हूं।



यह प्रकरण आपके सम्मुख सादर विचारार्थ प्रस्तुत है।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी के निधन पर विनम्र श्रद्वांजलि

बीते नवम्बर की आठ तारीख को तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ... की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रही । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग ..
पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।

वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर अचानक ब्लाग जगम में लगातार अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत अचानक अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर‘फिर मिलेंगे’... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।



सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से बीमार चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर 2011 को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था।

आज उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी कविता तय तो यह था...

तय तो यह था...




तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल

तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद

तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल

अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था

तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...

हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं

लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!

ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!


नवभारत टाइम्स दैनिक ई पत्र पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
तय तो यह था....विनम्र श्रद्वांजलि

और यह रही डा0 सन्ध्या जी की उनके ब्लाग पर दिनांक 18 सितम्बर 2008 को प्रकाशित पहली पोस्ट


बृहस्पतिवार, १८ सितम्बर २००८

कोई नहीं था.....

कोई नहीं था कभी यहां
इस सृष्टि में
सिर्फ
मैं...
तुम....और
कविता थी!
प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न
भारतीय नारी ब्लाग पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
सचमुच
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल परन्तु ...तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....

ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती !

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही समस्त विधायी निर्णय लेने के लिये सक्षम हैं । आम जनता द्वारा निर्वाचन के माध्यम से इन जनप्रतिनिधियों का चयन किया जाता है परन्तु केन्द्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर राज्य सभा तथा विधान परिषद के रूप में स्थायी उच्च सदन की व्यवस्था है। राज्य स्तर के उच्च सदन में स्थानीय निकायों तथा शिक्षकों के लिय निर्वाचन के माध्यम से पृथक-पृथक स्थान निर्धारित होते हैं। इस प्रकार प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षकों के लिये राज्य के उच्च सदन में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजने की स्पष्ट व्यवस्था होने से वह राजनैतिक रूप से अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र होता है तथा यथा समय अपनी स्वतंत्र राय के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनने हुये उसे विधान परिषद हेतु भेजता भी हैं परन्तु अन्य राज्य कर्मचारियों के पास निर्वाचन से संबंधित अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने का इस प्रकार का कोई प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं है।

उल्टे किसी भी राज्य कर्मचारी को राजनैतिक गतिविधि में संलिप्त होने पर राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के अनुरूप उसे दोषी करार दिया जाता है। प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षक जो राजकोश से वेतन/भत्ते प्राप्त करते हैं और अन्य राजकीय कर्मचारियों की प्रास्थिति में यह भेद राज्य में उनकी लोकतांत्रिक स्थिति को प्रभावित करता है।


लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की विभिन्न धारायें निर्वाचन से संबंधित अपराधों का वर्णन करती हैं । इसकी धारा 134 निर्वाचन से संबंधित पदीय कर्तव्य के निर्वहन से संबंधित है जिसकी धारा 134-(1) के अनुसार जो कर्मचारी निर्वाचन में संसक्त पदीय कर्तव्य के भंग में किसी कार्य का लोप या युक्तियुक्त हेतुक के बिना दोषी होगा तो वह जुर्माने से जो पांच सौ रूपये तक हो सकेगा, दण्डनीय होगा यह भी कि धारा 134-(1) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा। इसी धारा में
134(क) जोडकर राजकीय सेवकों के लिये निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने को अपराध की श्रेणी में रखते हुये इसके लिये शास्ति का प्राविधान किया गया है।

मूल धारा तथा शास्ति इस प्रकार है

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा (134क) निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने वाले राजकीय सेवकों के लिये शास्तिः-यदि सरका की सेवा में या कोई व्यक्ति किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचन अभिकर्ता या मतदान अभिकर्ता या गणन अभिकर्ता के रूप में कार्य करेगा , तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से , या दोनो से दण्डनीय होगा।

इस प्रकार अन्य राजकीय कर्मचारियों को जहां राजनैतिक कार्यो में सक्रिय भागीदारी के लिये दण्डित किये जाने की व्यवस्था है वही राजकीय शिक्षकों को अपना शिक्षक प्रतिनिधि चुनकर उच्च सदन में भेजे जाने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया निर्धारित है और मेरे विचार में इसके चलते उनकी प्रास्थिति राज्य सरकार के सम्मुख उच्च विचारण की होती है।

कदाचित इसीलिये राजकीय अध्यापक के सम्मुख आयी परेशानियों का संज्ञान लेकर राज्य सरकार उसे अनेक ऐसे अधिकार देने पर राजी हो जाती है जो अन्य राज्य कर्मचारियों को राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के चलते प्राप्त नहीं हो सकते। एक ऐसे ही अधिकार की चर्चा करते हुये उत्तर प्रदेश राज्य के हालिया शासनादेश की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जिसके अनुसार जनपद स्तरीय कैडर का होने के बावजूद अध्यापको को अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गयी है और इस व्यवस्था को पारदर्शी तथा शिक्षकों के लिये उत्पीडन रहित बनाने के लिये आन लाइन आवेदन करने की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की गयी हैं। ...

राज्य सरकार के अन्य कर्मचारी और अधिकारीगण जो प्रदेश स्तरीय सेवा के सदस्य होते हैं उन्हें भी अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता क्यों नहीं देनी चाहिये जबकि लोकतंत्र का चौथा खम्भा लगातार राजकीय कर्मचारियों के स्थानान्तरण को एक उद्योग की श्रेणी में वर्गीकृत करते हुये उसे कर्मचारियों के उत्पीडन का औजार घोषित करने पर उतारू है ??
यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती।

रविवार, 27 नवंबर 2011

एक अभिशप्त देवालय: हथिया देवाल (थल)...

उत्तराखंड राज्य के जनपद सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ से धारचूला जाने वाले मार्ग पर लगभग सत्तर किलोमीटर दूर स्थित है कस्बा थल जिससे लगभग छः किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम सभा बल्तिर । यहीं पर एक अभिशप्त देवालय है नाम है एक हथिया देवाल।

चित्र 1थल में लहलहाते धान के खेतों की मनमोहक छटा
किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों केा काटकाटकर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्धटना में उसका एक हाथ जाता रहा। अब वह एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था।
परन्तु गँाव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू किया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा? लगभग सारे गाँव से एक जैसी उलाहना सुन सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया। उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा।

चित्र 2 हथिया देवाल का पहुँच मार्ग
यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पडा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी ।


चित्र 3 मार्ग में मौसमी झरने की लुभावनी छटा
अगले दिन प्रातःकाल जब गाँव वासी शौच के उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। कैतूहल से सबकी आँखे फटी रह गयीं। सारे गांववासी वहाँ पर एकत्रित हुये परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गांववालों ने गाँव मे जाकर उसे ढूंढा और आपस में एक दूसरे उसके बारे में पूछा परन्त्तु उसके बारे में कुछ भी पता न चल सका , वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोडकर जा चुका था।


चित्र 4 अभिशप्त देवालय जिसके बारे में यह किंवदंती है कि वह एक रात मे उकेरा गया
जब स्थानीय पंडितो ने उस देवालय के अंदर उकेरी गयी भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रा़ित्र में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिश्टकारक भी हो सकता है।
बस इसी के चलते रातो रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में (जिन्हे स्थानीय भाषा में नौला कहा जाता है) मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता हैं

चित्र 5 ग्राम बल्तिर में खेतो को जोतता किसान

बुधवार, 16 नवंबर 2011

माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य से स्व0 अमृता प्रीतम जी की विरासत को बचाने के लिये किये जा रहे अनुरोध अनुष्ठान



हिन्दू संस्कृति में जब कोई अनुष्ठान किया जाता है तो सर्वपृथम अनुष्ठान स्थल पर देवताओं का आह्वाहन करते हैं । इस अवसर पर देवताओं के साथ असुर आत्माओं का भी आह्वाहन करने की परंपरा रही है । कहा जाता है कि यदि इन्हें आंमंत्रण न दिया जाय तो ये स्वयं बिना बुलाये आकर अनुष्ठाान में बिध्न डालने आ जाती है । सम्मान पूर्वक पहले हे बुला लेने की दशा में अनुष्ठान में बिध्न की संभावना समाप्त हो जाती है। आज मुझे यह परंपरा इसलिये याद आयी क्योंकि माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य से स्व0 अमृता प्रीतम जी की विरासत को बचाने के लिये किये जा रहे अनुरोध अनुष्ठान में ऐसे विध्नकारी तत्वो की आवाजाही लगातार बनी हुयी है ।
कुछ बानगी पेश हैंः.



********* ने कहा३
हां अशोक जी बिल्कुल मूर्खतापूर्ण मुहिम है ण्ण्ण्इस प्रकार तो सारा देश ही साहित्यिक धरोहर बन जायगाण्ण्ण्ण्ण्किसी साहित्य्कार की क्रितियां धरोहर हुआ करती हैंण्ण्ण्उनके मकान नहीं ण्ण्ण्
.********** ने कहा३ .
.यह उसी प्रकार की मूर्खता है जो राजघाटध् शक्ति स्थल पर सभी प्रधानमन्त्रियों के स्थल बनाकर की जारही हैण्ण्ण्इस प्रकार सारी दिल्ली कब्र्गाह बन जायगीण्ण्ण्ण्बन्द कीजिये ये व्यर्थ की चौंचले बाजी ण्ण्ण्ण्

********** ने कहा३
अशोक शुक्ला जी / क्या सोच कर आपने ये नेक सलाह दे डाली. मैंने केवल नारी.पक्ष को रखा तो दूध ही बना डाला और आपको बताऊँ तथाकथित पुरुष जो होते हैं ऐसे बिल्ला होते हैं जिनपर हमेशा कीड़े.मकोड़े ए मक्खियाँ ही भिनभिनाया करते हैंण- आप भी नारी.विमर्श करके अपनी रोटी ही तो सेंकने पर लगे हुए हैंण. जरा अपने अन्दर झाँका भी कीजिय
********** ने कहा३
. यह ओछी मनोव्रित्ति आज के व्यापारी साहित्य्कार की है------ण्ण्ण्ण्क्या प्रेम्चन्द या अम्रता का मकान नष्त होजाने से समाज में उनकी मौजूदगी उनका काल्जयी साहित्य नष्ट होजायगा ----

...छोडये ये व्यर्थ की बातें -----हित्य रचिये-----ण्ण्ण्कहिये -----ण्ण्ण्छ----पवाइये----ण्ण्ण्ण्ण्---बिना किसी भी लाभ की सोच के-----ण्ण्ण्

********** ने कहा३
...वैसे ये अम्रता..इमरोज़ है कौन ?

********** ने कहा३
हर चीज़ नाशवान है ! ३अपने वश में है उतना तो हम अफ़सोस करें ए बाकी चिंता परमात्मा पर छोड़दें तो बेहतर नहीं होगा घ् माफ़ करें ए अगर मैं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूं ३
३और अब जब मकान ढह ही चुका है ए वहां किसी प्रयास से फिर वहां वैसा ही मकान बना भी दिया जाए ; जिसकी संभावना है भी नहीं द्ध तो भी वह बात तो बननी नहीं न !
********** ने कहा३
सच भी है . अपने आप का पता और कोई नहीं होता ए अपना आप ही होता है------बाकी नश्वर चीज़ों में किसी का अस्तित्व तलाशना ए और ख़ुद को तबाह करके तलाशना सही नहीं ।
आपसे अपनत्व महसूस होने के कारण कह रहा हूं ३
ख़ुद को संभालें ३
********** ने कहा३
लेकिन इमरोज़ ने जो फैसला लिया ए वो सोच समझ कर ही लिया होगा ण्
इस नश्वर संसार में किसी भी वस्तु से मोह नहीं पालना चाहिए ए यह गीता का उपदेश है ण्
यादें दिल में रहेंगी ..लेकिन उस मकां की नहीं ए उन पलों की जो एक साथ गुजारे गए ण्
आपकी कोमल भावनाओं को ठेस न पहुंचेए यही कामना है

********** ने कहा३

क्या कवि. साहित्यकार ण्ण्ण्नामए याद रखे जाने के लिये लिखते हैंण्ण्ण्क्या कभी किसी साहित्य्कार ने स्वयं यह कहा घ्घ्घ्घ्घ्
********** ने कहा३
महज़ ईंट पत्थर गारे से घर नहीं बनता और उनके मिट जाने से मिटता भी नहींण्ण्ण्घर घरवालों से बनता हैण्ण्ण्इमरोज़ जी ने क्या खूब कहा हैरू.
********** ने कहा३
आप भी नारी.विमर्श करके अपनी रोटी ही तो सेंकने पर लगे हुए हैं.
********** ने कहा३

जिस्म गयाए जान गयी एरूह गयी
अब ईंट. पत्थरों को समेटने से क्या होगा
मै तो फ़िज़ा के जर्रे जर्रे मे बिखर गयी
अब मिट्टी को खंगालने से क्या होगा
********** ने कहा३
साहित्यकार और लेखको ने आज तक समाज का उत्थान कम किया है और पतन ज़्यादा | अस्तु इनकी संख्या भी आजकल काफ़ी बढ़ गयी है हर एक कस्बे मे दस बारह धरोहर बन जाएँगी |
********** ने कहा३
राष्ट्रपति को अपना काम करने दो बेटा ऐसे फ़िजूल मे अगर उसको उलझाओगे तो महत्वपूर्ण कार्य अटक जाएँगे |
********** ने कहा३
क्या राष्ट्रपति के पास कोई काम नही होता ? इस विशाल भारत मे अनेको लेखिकाए और लेखक हुए है और उनके मूरीद भी बड़ी संख्या मे है तो क्या राष्ट्रपति पूरे पाँच साल इन्ही स्मारको के पीछे भागता रहे ?
********** ने कहा३
पता नही क्या हो गया है आजकल के लड़के लड़कियो को चार आखर क्या पढ़ लेते है नाम के लिए कुछ ना कुछ शगूफा करते ही रहते है |
********** ने कहा३
बेटी, कोई ढंग का काम करो |बाबा का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है | अमृता प्रीतम को छोड़ दो उसके आशिको के भरोसे |

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तमाम विध्न बाधाओ के बाद भी अनेक साहित्य प्रेमी इस मुहिम से जुडे है माननीय राष्ट्रपति के कार्यालय से मुझे एक मेल आया है जिसमे लिखा है कि स्वयं राष्ट्रपति सचिवालय इस प्रकरण को देख रहा है । मेरा विश्वाश है कि हमें शीध्र ही कुछ न कुछ सार्थक परिणाम मिलेंगें। कृपया अपना उत्साह बनाये रखें ।



यह है हमारी मुहिम
1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।


2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।
कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें
भवदीय

डा0अशोक कुमार शुक्ला !

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

11.11.11 को 11.11 बजे कुल 11 कडियों की सहायता से स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर को बचाने की मुहिम !


इसी तरह कडी दर कडी जुडते हुये बच जायेगी स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास के25 हौज खास को बचाकर उसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोने के लिये अनेक साहित्य प्रेमियों द्वारा माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य एवं दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है। ऐसा विश्वास है कि इस मुहिम का असर अवश्य ही होगा । फिलहाल इस मुहिम में शामिल लोगों के प्रयासों का हाल लिंक के रूप में आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ साथ ही यह भी उम्मीद करूँगा कि आप भी अपना अमूल्य सहयोग देकर इस मुहिम को आगे बढाते हुये महामहिम से इस प्रकरण में हस्तक्षेप का अनुरोध अवश्य करेंगें।

अमृता जी का पुराना घर जिसकी नेम प्लेट उनकी कलात्कता को दर्शाती है

1 मुहिम की शुरूआत करने के लिये हरकीरत ‘हीर’ जी के ब्लाग मुहिम का लिंक है
बिक ही गया अमृता का मकान!!!!



2 इस मुहिम के बाद महामहिम को भेजे गये पत्र की प्रति और राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य के कार्यालय द्वारा एक सप्ताह के उपरांत कृत कार्यवाही जानने संबंधी ब्लाग कोलाहल से दूर पर इस मुहिम का लिंक है
कोलाहल से दूर
!!



अमृताजी की तस्बीरो की नुमाइश लगा बैठे ये हैं इमरोज
3 विक्षुब्ध होकर नामक ब्लाग पर
रोमेन्द्र सागरजी के द्वारा भी एक लिंक दिया गया है।!!


4 भारतीय नारी ब्लाग पर ही सुश्री शिखा कौशिक द्वारा चलायी गयी मुहिम का लिंक है!!!!



यह रही राष्ट्रपति भवन की शिकायत प्राप्ति रसीद

5 महामहिम राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य को भेजे गये पत्र के साथ
भारतीय नारी ब्लाग पर इन पंक्तियों के लेखक द्वारा प्रारंभ की गयी मुहिम का लिंक है



6 ‘भारतीय ब्लाग समाचार’ नामक ब्लाग पर
सुश्री शिखा कौशिक द्वारा प्रारंभ की गयी मुहिम का लिंक है


और यह रही धूल धूसरित मकान की आज की सूरत
7 डेली न्यूज पत्रिका खुशबू ने अपनी पत्रिका में
अमृता जी की विरासत को बचाने के लिये चलायी गयी मुहिम का लिंक है




8 अमृता प्रीतम की याद में नामक ब्लाग पर
रंजना रंजू भाटिया जी द्वारा अमृता जी की विरासत को बचाने के लिये चलायी गयी मुहिम का लिंक है


9 अनन्या नामक ब्लाग पर सुश्री अंजू जी द्वारा भी इस मुहिम को चलाया गया है जिसका लिंक है


चित्र अंजू जी के ब्लाग से साभार


10 हिन्दी के लोकप्रिय दैनिक नवभारत टाइम्स पर भी इस संबंध में मुहिम चलायी गयी है पहले इन पंक्तियों के लेखक द्वारा चलायी गयी मुहिम का लिंकजिसका लिंक है

और अब लीजिये नवभारत टाइम्स पर सुश्री शिखा कौशिक द्वारा चलायी मुहिम का लिंक

11 कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है ।!!!!

कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें महामहिम 11.11.11 को 11.11 बजे कुल 11 कडियों की सहायता से स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर को बचाने की मुहिम !

बुधवार, 9 नवंबर 2011

इस बार हमने ऐसे मनायी अपनी विवाह की वर्षगांठ ...

9 नवम्बर हमारी अधेंगिनी जी का जन्मदिवस होता है सो आज की पोस्ट उन्हे बधाई देते हुये तथा समर्पित करते हुये उन्हें याद दिलाते हैं अभी कुछ दिन पूर्व अपने विवाह की वर्षगांठ की निम्न पंक्तियों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ
हमारे विवाह को अब बीस साल हो चले हैं। सरकारी कामों की हमें चाहें कितनी भी व्यस्तता क्यों न हुये हों लेकिन अब तक हम प्रत्येेक वर्षगांठ का दिन जिम्मेदारियों से बचाकर रखने में सफल रहे हैं। सामान्यतः हर वर्ष अपनी विवाह की वर्षगांठ मनाने हम किसी न किसी धार्मिक स्थल पर जाते है। (यह बात अलग है कि एक ही स्थान पर कई कई बार भी जा चुके है) कुछ पुराने मजेदार किस्से हैं विवाह की वर्षगांठ के जिन्हे फिर कभी। आज तो इस साल की वर्षगांठ का ताजा ताजा तरीन किस्सा यात्रा वृतांत के रूप में प्रस्तुता है।


चित्र1 पिथौरागढ़ जाने के लिये राष्ट्रीय मार्ग एन एच 09

उत्राखण्ड राज्य में प्रवेश करने के लिये तराई श्रेत्र में हल्द्धानी ,टनकपुर, कोटद्धार ऋषिकेष आदि अनेक प्रवेश द्वार हैं। यह सभी स्थान पहाड की सीमा आरंभ होने का संदेश देते हैं पर्वतीय क्षेत्र में आगे बढने के साथ ही जहाँ आपको ठेठ पर्वतीय संस्कृति के दर्शन मिलने लगते हैं वहीं इन सभी स्थानों पर वहुभाषी संस्कृति देखने को मिलती है । इन्हीं प्रवेश द्वारों में से एक प्रवेश द्वार है टनकपुर , जहाँ माँ पुण्यागिरि का दर्शन करने के बाद हमारी यात्रा का अगला पड़ाव मुख्य पर्वतीय क्षेत्र में प्रवेश का था। टनकपुर से प्रसिद्ध सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ जाने के लिये राष्ट्रीय मार्ग एन एच 09 हैं। इस मार्ग से यात्रा आरंभ करना बड़ा सुखद लगता है लेकिन अभी तीस चालीस किलोमीटर ही चले होंगे कि भूस्खलन के चलत राष्ट्रीय राजमार्ग की दुर्दशा प्रगट होने लगी।

शनिवार, 5 नवंबर 2011

इमरोज! यह तूने क्या किया?



अमृता जी का पुराना घर जिसकी नेम प्लेट उनकी कलात्कता को दर्शाती है
हरकीरत हीर जी के ब्लाग से पता चला कि अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। विस्तार से पढने पर जाना घर बिका ही नहीं घूल घूसरित भी हो चुका है। इमरोज जी ने इस बात की दिलासा दी है कि अमृता जी की यादों से जुडी तस्बीरें और अन्य सारी चीजें वे अपने साथ ले जाये है साथ ही मकान को बेचने का कारण बच्चों को पैसे की जरूरत बताया।
वाह रे इमरोज! पैसों की चाहे जैसी भी जरूरत क्यों न रही हो , अमृता जी से जुडी से जुडी इस विरासत को बेचने में तुम्हे कोई तकलीफ नहीं हुयी? फिर तुम कैसे दावा करते थे कि अमृता तो अब भी इसी घर में बसती है और वह तुम्हारे लिये मरी नहीं है।तुमने साबित कर दिया है कि तुमने हमेशा अमृताजी का उपयोग स्वार्थ के लिये ही किया। चाहे वे जीवित रही हों या अब उनके मरने के बाद ।

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का विगुल

निर्वाचन आयोग के निर्देश



आने वाले वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में इस लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस कुंभ की तैयारी का विगुल विगत 29 सितम्बर को फूंक दिया है। इस दिन से लगातार पूरे माह तक लोकतांत्रिक कुंभ में डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बनने वाले प्रत्येक भक्त के लिये अनिवार्य पंजीकरण के द्वार खोले गये थे।
दिनांक 1 जनवरी 2012 को अट्ठारह वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को इस कुंभ में डुबकी लगवाने के लिये सुनिश्चित पंजीकरण करने की व्यवथा इस महाकुंभ के शंकराचार्य अर्थात मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने की है।
आज इस विषेश पुनरीक्षण अभियान में अपने दावे प्रस्तुत कर विधान सभा चुनाव से पहले मतदाता सूचि में नाम जुडवाने का अंतिम अवसर हे

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

२०१२ के लोकतंत्र के कुंभ से पहले मतदाता सूचि में नाम जुडवाने का अंतिम अवसर

आम चुनाव को लोकतंत्र का कुंभ कहा जाता है। संविधान निर्माताओं ने इस कुंभ के लिये पाँच वर्ष की समयावधि तय की थी परन्तु अनेकानेक कारणों के चलते कुछ राज्यों में यह मध्यावधि कुंभ अपनी निर्धारित अवधि से पहले ही आ जाता है। उत्तर प्रदेश में आने वाला वर्ष इस लोकतांत्रिक कुंभ का साक्षी रहने वाला है। इस कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये संविधान में जिस शीर्ष शंकराचार्य की व्यवस्था की है उसे भारत का मुख्य निर्वाचन आयुक्त कहा जाता है।



समूचे देश में इस लोकतांत्रिक कुंभ का संचालन करने वाले शीर्ष शंकराचार्य ने राज्यों में स्थापित अपने मठों (कार्यालयों ) में भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रूप में अपने अपने प्रतिनिधि शंकराचार्य को नियुक्त कर रखा है जो इस महाकुंभ के निष्पक्ष और पवित्रता के लिये सभी जरूरी उपायों को बेरोकटोक अमल में लाते हैं।

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

हाँ! मैने भी पार कर ली है यह सडक!

लखनऊ के प्रशासनिक हलकों में हाई कोर्ट के सामने से गुजरती हुयी सडक अपना विशेष महत्व रखती है। यही वही सडक है जिस पर विभिन्न मामलों में आये दिन न्यायालय से गोहार लगाने के लिये आये सरकार के बडे से बडे अधिकारियों की गाडियां अक्सर खडी देखी जा सकती हैं। यही वह सडक है भी है जिसके एक कोने पर आये दिन विभिन्न समाचार चैनलों की लाइव न्यूज के लिये अनेक ओबी वैन भी बडी बेतरतीबी से खडी देखी जा सकती हैं।

यही वह सडक है जिस पर आये दिन कोई न कोई सरकारी या गैर सरकारी माफिया हाई कोर्ट के सम्मुख प्रस्तुत होने की हैसियत से लाया जाता है।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

उत्तराखंड के अनदेखे पर्यटक स्थल...... माँ पुण्यागिरि देवी ...

अपने एक आलेख में मैने बताया था कि इस वर्ष ग्रीष्मावकाश का पहला दिन किस तरह जनपद पीलीभीत से कुछ किलोमीटर दूरी पर स्थित उत्तराखंड राज्य के कस्बे टनकपुर में बिताया और वहाँ के अनदेखे भृमण योग्य स्थलों को खोजकर आनंद उठाया। नेपाल के एक छोटे से कस्बे बृह्मदेव में उपलब्ध सौंदर्य प्रसाधन तथा बिदेशी सामानो की सूची ने (सभी संबंधितो से क्षमा याचना सहित ) मेरी धर्मपत्नी के लिये इस यात्रा के इस पड़ाव को बहुत रोचक और उत्साह प्रधान बना दिया था।

चित्र 1 पुण्यागिरि मां दर्शन मार्ग
प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत होने के बाद जब आगे के मार्ग के बारे में पड़ताल की तो मालूम हुआ कि

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को श्रंद्धांजलि

आज दो अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिवस है जिसे हम राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाते हैं । महात्मा जी को याद करते हुये ‘हरिजन’ के अंक 30.05.1936 से एक संस्मरण साभार उद्धृत करते हुये उन्हे याद कर रहा हूँ।

वर्ष 1936 की एक अपराह्न को स्विटजरलैंड के प्रतिष्ठित जीव वैज्ञानिक प्रोफेसर राहम भारत पधारे थे। भारतीय वैज्ञानिक सर सी वी रमन उन्हें लेकर महाम्मा गाँधी के पास गऐ और उनका परिचय कराया:-

‘‘ महात्मा जी ! प्रोफेसर राहम ने एक ऐसे कीट की खोज की है जो बिना अन्न जल के बिना लगातार 12 वर्षो तक जीवित रह सकता हैं। अब इस दिशा में और अधिक जीव वैज्ञानिक अध्ययन हेतु आप भारत आयें हैं।’’

गांधी जी का जीवन उपवासों में बीतता था । अतः उन्होंने उक्त विचित्र कीट के अघ्ययन में रूचि प्रदर्शित करते हुये कहा -
‘‘जब आपको इसके वास्तविक रहस्य का ज्ञान हेा जाए तो कृपया मुझे सूचित करियेगा।’’

वास्तव में महात्मा जी उपवास को और अधिक सुगम बनाने वाले इस अध्ययन में इसी लिये रूचि प्रदर्शित कर रहे थे।

आजादी के तिरसठवें साल के बाद आज भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रासंगिकता यदि कम नहीं हुयी है तो इसका कारण मात्र उनके द्वारा रोपे गये विचारों के विशाल वटवृक्ष के कारण ही है। इन महान विभूतियों के इतने विराट व्यक्तित्व का निर्माण उनके बाल्यकाल में उनके आसपास रहने वाले वातावरण के चलते ही संभव हो सका है।



शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

भारतीय ज्ञानपीठ में भी गूंजा लखनऊ का रागदरबारी

हर सुबह की तरह 21 सितम्बर की सुबह के समाचार पत्र की सुर्खियाँ भी विविधता से भरी थीं। जहाँ एक ओर अफगानिस्तान में शान्ति प्रयासो की दिशा में अग्रणी कार्य करने वाले राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की बम धमाके में मौत एक आहत करने वाली खबर थी वहीं दूसरी ओर भारतवर्ष का चर्चित स्पैक्ट्रम घोटाला और लखनऊ जिला जेल में एक और विचाराधीन कैदी की मौत मुख्य लीड में थे।

समाचार पत्र का एक कोना हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ के समाचार से भी भरा था जिसमें उत्तर प्रदेश की राजनैतिक राजधानी और सांस्कृतिक राजधानी के लिये खुशबूदार हवा का झोंका भी था। समाचार पत्र की मुख्य लीड पढते हुये जो खिन्न सी मनःस्थिति हुयी थी उसमें एक खुशनुमा हवा के झोंके ने जैसे आकर उत्साह भर दिया था। समाचार था लखनऊ के यशश्वी कथाकार श्रीयुत श्रीलाल जी शुक्ल को 2009 का और इलाहाबाद के श्रद्धेय अमरकांत जी को 2010 का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया है।



बुधवार, 21 सितंबर 2011

नेविगेशन उपग्रहो से भेजी गयी तरंगों की सहायता से भू सम्पत्तियों के लिये यूनीक आइडेन्टीफिकेशन नम्बर

बहुत समय नहीं बीता है जब सारे संसार ने देखा कि अमेरिका ने अपने सुग्राही यंत्रों के माध्यम से संसार में आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन का ठीक ठीक ठिकाना ढूँढकर उसे समाप्त कर डाला था। अमेरिका के समूचे मिशन में आतंकवादी की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात कर पाने में उसके द्वारा अंतरिक्ष में नेविगेशन उपग्रहो का योगदान रहा । अमेरिका द्वारा पृथ्वी के चारों ओर अट्ठाइस नेविगेशन उपग्रह इस प्रकार छोडे गये हैं कि वे संसार के समूचे भाग पर नजर रख सकते हैं। इनकी कार्यप्रणाली ऐसी है कि संसार के प्रत्येक स्थान पर एक समय में न्यूनतम चार उपग्रहो से संकेत हर परिस्थिति में प्राप्त होते रहते हैं। इन्ही पा्रप्त संकेतों के माध्यम से पृथ्वी पर स्थित किसी वस्तु की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात की जा सकती है।

चित्र 1 राजस्व परिषद में आयोजित भूअभिलेख आधुनिकीकरण कार्यशाला

बुधवार, 14 सितंबर 2011

शापित भूमि से उपजा विलक्षण कुँवर!

14 सितम्बर की तिथि मात्र हिन्दी दिवस के रूप में याद किये जाने का दिवस नहीं है। यह दिवस हिन्दी कविता जगत की एक ऐसी विभूति के निर्वाण का दिवस भी है जिसने मात्र 28 वर्ष के अपने जीवन काल में हिन्दी को ऐसी समृद्वशाली रचनायें दी जो अनेक विद्वजनों के लिये आज भी शोध का विषय बनी हुयी हैं। 21 अगस्त 1919 में ई0 में तत्कालीन गढवाल जनपद के चमोली नामक स्थान मे मालकोटी नाम के ग्राम में एक निष्ठावान अध्यापक श्री भूपाल सिंह बर्त्वाल के घर पर एक बालक का जन्म हुआ। (इनके जन्म की तिथि के संबंध में यह विवाद है कि यह 21 अगस्त 1919 है अथवा 20 अगस्त 1919। गढवाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल में डा0 हर्षमणि भट्ट द्वारा निष्पादित शोध में यह प्रमाणित हुआ कि कविवर चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि 21 अगस्त 1919 है )

1941 के दिसम्बर माह में ये परिवार सहित पंवालिया नामक स्थान पर चले गये जो उनके जन्म ग्राम मालकोटी से कुछ दूरी पर स्थित था और मालकोटी से अधिक समृद्व और प्राकृतिक शोभा से युक्त था। यह चमोली जनपद में रूद्रप्रयाग और केदारनाथ के बीच केदारनाथ मार्ग पर भीरी के नजदीक बसा ग्राम है जिसे बर्त्वाल परिवार ने सिंचित और अधिक उत्पादकता रखने वाली भूमि पर हरियाली और खुशहाली की उम्मीदों के साथ लिया था।

शनिवार, 10 सितंबर 2011

सिद्धपीठ माँ वाराही में रक्षाबंधन का दिन..

श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन जहाँ समूचे भारतवर्ष में रक्षाबंधन के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने अपने भाई के प्रति स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश में ऐक स्थान ऐसा भी है जहाँ इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसज्जित कर विदा करती हैं। यह स्थान है उत्राखण्ड राज्य का सिद्धपीठ माँ वाराही का देवीधुरा स्थल। इस बार के ग्रीष्मावकाश मे वहाँ जाने का अवसर मिला सो यहाँ की कुछ अनोखी परंपराओं केा आपके साथ बाँट रहा हूँ।
चित्र-1 देवीधुरा कस्बे का विहंगम दृष्य

बुधवार, 31 अगस्त 2011

जन्मदिवस मुबारक हो अमृता जी !

अधूरे प्रेम की प्सास के दस्तावेजों की सर्जक अमृमा प्रीतम का जन्मदिवस

पिछले माह जुलाई में जब भारतीय नारी ब्लाग पर अमृमा प्रीतम के बारे में लिखने की श्रंखला प्रारंभ की थी तो मेरी यह योेजना थी कि प्रति सप्ताह औसतन दो पोस्ट लिखते हुये अमृता जी के जन्म दिवस 31 अगस्त को इसका समापन करूँगा परन्तु कुछ कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो न सका। एक तो यह पूरा महीना स्वतंत्र भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे की गांधीवादी लडाई के चलते इस विषय से संबंधित आलेखों के सामयिक महत्व का रहा और दूसरे भारतीय नारी ब्लाग पर संस्थापको द्वारा अगस्त महीने के लिये बहन विषय नियत कर दिया गया।
वहरहाल , बहन विषय पर तो अमृताजी के संबंध में भी कुछ सामग्री जुटा पाया जिसे आपके साथ साझा भी किया, इसी विषय पर अमृता जी से जुडी कुछ सामग्री और है जिसे व्यवस्थित न कर पाने के कारण नहीं प्रस्तुत कर सका अब इसे भैया दूज या ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर साझा करूंगा। इसके अतिरिक्त अन्य विभूतियों के जीवन से जुडी बहन विषयक सामग्री को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहा। आज जब इस माह का अंतिम दिन है और साथ ही अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस भी है तो इस अवसर पर अपनी पूर्व योजनानुसार भारतीय नारी ब्लाग पर उन्हे याद करने के अवसर को चूकना नहीं चाहता सो यह पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अमृता प्रीतम जी की कलम उन विषयों पर चली जो सामान्यतः भारतीय नारी के सामाजिक सरोकारों से इतर थे। जहाँ अमृता जी के अन्य समकालीन लेखकों द्वारा भारतीय नारी की तत्कालीन सामाजिक परिवेश में उनकी व्यथा और मनोदशा का चित्रण किया है वहीं अमृता जी ने अपनी रचनाओं में इस दायरे से बाहर निकल कर उसके अंदर विद्यमान ‘स्त्री’ को मुखरित किया है। ऐसा करते हुये अनेक अवसरों पर वे वर्जनाओं को इस सीमा तक तोडती हुयी नजर आती हैं कि तत्कालीन आलोचकों की नजर में अश्लील कही जाती थीं।

चित्र 1 पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के अप्रैल 2003 में लिखा गया लेख

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

तुम तो चली गयी , अब क्या करूँ उन शब्दों का जो सिर्फ तुम्हारे लिये ही लिखे थे?


भारतीय सिनेजगत में चवन्नी उछाल कर दिल माँगने का सिलसिला बहुत पुराना रहा है परन्तु भारत सरकार ने बीते एक माह से चवन्नी का चलन ही बंद कर दिया है। ऐसी हालत में अब भारतीय टकसाल में ढलने वाली सबसे छोटी मुद्रा अठन्नी होगी। अब चवन्नी उछाल कर दिल माँगने वाला सिने जगत सीधे सीधे चेक माँगता हुआ नजर आ रहा है (याद करें अदनान सामी) परन्तु असली लाचारी उन ऐतिहासिक दस्तावेजों की है जो सिर्फ चवन्नी के बारे में ही लिखे गये थे। इस संबंध में साहित्यिक और सिने जगत ने तो अपने अपने तरीके से इसका हल निकाल लिया है परन्तु विधिक प्राविधानो पर नजर दौडाने पर हाल ही में एक रोचक तथ्य संज्ञानित हुआ है।
किसी कार्य से भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899(यथासंशोधित) के प्राविधानों को पढने की आवश्यकता उत्पन्न हुयी। इस केन्द्रीय अधिनियम की एक धारा ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जो इस प्रकार थीः-

घारा 78ः- अधिनियम का अनुवाद तथा सस्ते दाम पर बिक्री- प्रत्येक राज्य सरकार अपने द्वारा शासित क्षेत्रार्न्तगत अधिकतम पच्चीस नये पैसे (शब्द ‘पच्चीस नये पैसे’ 1958 में प्रतिस्थापित) प्रति की दर पर प्रभुख भाषा में इस अधिनियम के अनुवाद की बिक्री के लिये प्राविधान बनायेगी।
(मूल धारा अंग्रेजी मे है यहाँ उसका अनुवाद प्रस्तुत है)

यह पढकर मुझे यह सुखद आश्चर्य हुआ कि आज से 112 वर्ष पूर्व जब अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीय स्टाम्प अधिनियम बनाया गया तब भी जन साधारण को सूचना उपलब्ध कराने के विन्दु पर कितनी सजगता थी। बहरहाल आज तो इसके लिये पृथक से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 ही लागू है।

सोमवार, 15 अगस्त 2011

शासन के प्रतीक तहसीलदार को लाठी डंडो से पीट पीट कर मार डालने जैसा विध्वंसकारी स्वरूप


स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग?
आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के दो दिन पूर्व यानी 21 जुलाई की बात थी मै एक आवश्यक राजकीय कार्य के चलते उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इलाहाबाद गया हुआ था। थोडा समय बचा तो इलाहाबाद राजकीय पुस्तकालय पहुँच गया।
पुस्तकालय में पुराने समाचार पत्रों में आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के संबंध में छपी खबरों को ढूँढकर उसके चित्रों के साथ एक आलेख बनाने की योजना थी। (इससे संबंधित पोस्ट 23 जुलाई 2011 को इसी ब्लाग पर जारी हुयी थी जिसे आप सबका भरपूर सम्मान और समर्थन मिला था)
आजाद जी की खबरों वाले समाचार पत्र का छायाचित्र लेने के दौरान ही उसी समाचार पत्र में छपी एक खास खबर पर निगाह अटक गयी।


चित्र-1 .1मार्च 1931 का समाचार पत्र जिसमें चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु के समाचार के साथ तहसीलदार की हत्या का भी समाचार छपा था

सोमवार, 8 अगस्त 2011

आभार...... कविताकोश !!

3 अगस्त 2011 का दिन मेरे लिये उत्साह का दिन था। अपना मेल बाक्स देख रहा था कि कविताकोश के संस्थापक ललित कुमार जी का मेल मिला लिखा था 7 अगस्त 2011 को जयपुर में कविकाकोश सम्मान समारोह 2011 में मुझे सम्मानित अतिथि के रूप में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया गया था। यूँ तो कविताकोश सम्मान समारोह 2011 में सम्मिलित होने संबंधी औपचारिक मेल काफी पहले आ गया था
परन्तु इस मेल में मेरे लिये लक्ष्मी विलास होटल आरक्षित कक्ष तथा वाहन आदि का विवरण था। जयपुर मेरा पसंदीदा शहर है । मेरा छोटा भाई संजय जो साफ्टवेयर इंजीनियर है सपरिवार वहीं रहता है। संजय अक्सर लखनऊ आ जाता है परन्तु यह शिकायत करना नहीं भूलता कि दद्दा जी (वह मुझे इसी नाम से संबोधित करता है ) को तो जयपुर आने की फुरसत ही नहीं मिलती। कविताकोश के सौजन्य से मिले इस अवसर को मैं संजय की शिकायत का निराकरण करने के रूप में उपयोगी पाकर उत्साहित हो गया।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

जबरिया मारे रोने न दे

अचानक यहाँ लखनऊ में एक ऐसी खबर आयी है जो भारतीय नारी के लिये अच्छी है सो आज की पोस्ट में उसे दे रहा हूँ । हाँलांकि इसमें पुरूषों के प्रति कुछ ज्यादती नजर आती है लेकिन यह चर्चा आप सब सुधी पाठक जनों पर छोडते हुये खबर का आनंद लें।


जी हाँ ! लखनऊ के उच्च न्यायालय में एक डाक्टर दंपत्ति के तलाक संबंधी मुकदमे में न्यायालय ने कुछ ऐसी ही व्यवस्था दी है। इस निर्णय ने जहाँ एक ओर विवाहित हिन्दू महिला के अधिकारों को मजबूती प्राप्त होने के साथ साथ विवाह विच्छेद के आधारों को नये सिरे से परिभाषित करने जैसा कार्य किया है वहीं दूसरी ओर पत्नियों के अत्याचार से पीड़ित पतियों की दशा ‘‘जबरिया मारे रोने न दे ’’जैसी भी कर दी है।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

फेसबुक ट्विटर पर नशेडियों की नयी फौज

इधर कुछ महीनों से हमें भी ब्लागरर्स को पढने का और अपने कुछ अनुभवों को ब्लाग पर डालने का नया चस्का लगा है। कल सुबह की बात है जब मैं सुबह सुबह अपने लैपटाप पर ब्लागो की सैर करते हुये ब्लागरों की नयी नयी पोस्ट देख रहा था तो मेरी पत्नी दैनिक हिन्दुस्तान समाचारपत्र लेकर मेरे पास आयी और बोली:
‘‘देखो जो मैं कहती थी ना। आज अखबार में भी वही छपा है।’’
मैं अपने लैपटाप पर झुके झुके ही बोलाः ‘‘क्या हुआ जी...? क्या छपा है...?’





चित्र1 समाचार पत्र मे सोशियल नेट वर्किग साइट से जुडी खबर

तो झट से मेरी पत्नी ने साथ वाली खबर मेरे आगे कर दी । समाचार का शीर्षक देखकर उसे पढने की उत्सुकता हुयी तो उसमें लिखे तथ्यों को पढकर मैं भी सकपका गया। ‘न्यूयार्क पोस्ट’ ने लगभग 1000 फेसबुक और ट्विटर प्रयोक्ताओं के बीच किये गये सर्वे के आधार पर यह यह निष्कर्ष निकाला है की

बुधवार, 27 जुलाई 2011

यादों के झरोखे में कारगिल विजय दिवस पर संस्मरण

26 जुलाई का दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि हम इसे कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ यादें आपके बीच बांटने का मन हुआ सो विचारों ही विचारों में 1999 के जून माह तक जा पहुँचा । घटना संभवतः माह के आरंभ के किसी कोई दिवस की है । मै अविभाजित उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल के जनपद टिहरी गढ़वाल की तहसील नरेन्द्रनगर में बतौर अधीनस्त प्रशासनिक अधिकारी (तहसीलदार ) के रूप में कार्यरत था।
रात का तकरीवन ग्यारह बजा था मैंने रात का खाना खाकर बिस्तर में पहुँचने के बाद रिमोट से खेलते हुये टी वी पर आने वाले चैनलों की थाह लेनी शुरू ही की थी कि बाहर के कमरे में रखा टेलीफोन अचानक घनघनाने लगा। किसी अनमनी काल को भाँपकर मैने पत्नी से फोन उठाने को कहा।

चित्र1 कारगिल शहीदों की स्मृति में लगाया गया विजय अभिलेख
(चित्र विकीपीडिया इनसइक्लोपीडिया के सौजन्य से)

कुछ ही सेकेन्ड के बाद पत्नी कार्डलेस फोन हाथ में लेकर शयन कक्ष में आ पहुँची और हाथ से कार्डलेस फोन का माउथ पीस दबाकर बोली:-
‘‘डी0एम 0 साहब का फोन है।’’

शनिवार, 23 जुलाई 2011

"यह मृत्यु मेरी निजी क्षति है।मै इससे कभी उबर नहीं सकता"


23 जुलाई का दिवस भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इस दिन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े दो भिन्न विचारधारओं के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जन्मदिवस है। इनमें से पहले है बालगंगाधर तिलक जिन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपना गुरू मानते थे, वेे आज से ठीक 155 वर्ष पूर्व सन् 1856 में पैदा हुये थे और दूसरे है पं चंद्रशेखर तिवारी जिन्हें हम सब उनके प्रचलित नाम चन्द्रशेखर आजाद के नाम से जानते हैं। इनका जन्म बाल गंगाधर तिलक से 50 वर्ष बाद सन् 1906 में मध्य प्रदेश के भाबरा (झाबुआ) नामक स्थान पर पंडित सीताराम तिवारी और श्रीमती जगरानी देवी के घर हुआ। जनपद उन्नाव का बदरका नामक ग्राम आजाद जी की कर्मस्थली रहा है।

1अमर क्रांतिकारी चन्दशेखर आजाद की स्मृति में अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में स्थापित प्रतिमा

यूं तो आजाद जी ने जीविका के लिये 14 वर्ष की उम्र से ही नौकरी प्रारंभ कर दी थी परन्तु एक वर्ष बाद ही शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से सन् 1921 में मात्र 15 वर्ष की आयु में पंडित चंद्रशेखर का प्रवास स्थल काशी बना जहाँ रहकर वे महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुडे ।

रविवार, 17 जुलाई 2011

क्या देवी-देवताओं को वाहनों की जरूरत पड़ती है?


कभी ध्यान से श्री कृष्णजी के पास खड़ी उनकी पांव की तरफ मुग्ध भाव से झुकी गाय को देखा है। कितने कोमल भाव हैं कितनी ममता है। भगवान दत्तात्रेयजी के साथ सदा मुग्धा गाय, काले कुत्ते या कबूतर को देख किसके मन में हिंसा उपज सकती है। ईसा की बाहों में मेमना, घायल हंस को अश्रुपूरित आंखों से तकते सिद्धार्थ, माँ सरस्वतीजी का हंस, शिवजी के पूरे परिवार का विभिन्न पसु-पक्षियों के साथ सानिध्य, गुरु गोविंद सिंहजी का बाज यह सभी तो एक ही संदेश दे रहे हैं। दया का, ममता का, धरा के सारे प्राणियों के साथ प्रेम-भाव का।
कुछ अलग सा: क्या देवी-देवताओं को वाहनों की जरूरत पड़ती है?

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

‘कविता कोश’ पुस्तिका के पन्नों पर योगदानकर्तागण



कविताकोश प्रकाशन द्वारा पाँच वर्ष का सफर पूरा करने पर एक पुस्तक प्रकशित करायी गयी है। इस प्रकाशित पुस्तक में योगदानकर्ताओं को सर्वाधिक महत्व देते हुये एक प्रमुख योगदानकर्ता आशा खेत्रपाल जी से इसके लिये इसकी प्रस्तावना लिखवायी गयी है। 10 फरवरी 2011 को प्रकाशन की इस अनूठी पहल के प्रति साधुवाद अंकित करते हुये आशा जी ने लिखा हैः-

‘‘...इस पुस्तक के लिये प्रस्तावना किसी तो किसी नामी साहित्यकार से लिखवाई जा सकती थी फिर यह सम्मान मुझे क्यों दिया जा रहा है । जब मैने इस बारे में ललित से पूछा तो उन्होंने कहा कि कविताकोश के किसी प्रयोक्ता से ही प्रस्तावना लिखवाना चाहते हैं। कविताकोश और इस पुस्तक का वास्तविक व ईमानदार आंकलन कोश का कोई प्रयोक्ता ही कर सकता है। आज जब मैने प्रस्तावना लिखने के लिये कलम उठा ली है तो लिखते समय मेरा मन गौरव अनुभव कर रहा है।....’’

इसके अतिरिक्त कोश के योगदानकर्ताओं के लिये एक पृथक अध्याय भी लिखा गया है जिसमें सर्वाधिक रचनाऐं जोडकर योगदान करने वाले सात प्रमुख योगदानकर्ताओं का सचित्र परिचय प्रकाशित किया गया है ।
कोश में पचास से अधिक रचनाऐं जोडने वाले अन्य बाइस योगदानकर्ताओं का भी ससम्मान उल्लेख किया गया है। जिन योगदानकर्ताओं द्वारा स्वयं रचनाऐं न जोड़कर उसे कविताकोश टीम के माध्यम से कोश में जोड़ा है ऐसे ग्यारह योगदानकर्ताओं के नाम भी प्रमुखता से उद्धृत किये गये हैं।

कोश से जुडने वाले नये योगदानकर्ताओं की सहायता की दृष्टि से कम्प्यूटर पर हिंदी में कैसे लिखे ? नामक एक पृथक अध्याय भी जोडा गया है।

सोमवार, 11 जुलाई 2011

महर्षि दधीचि का मिस अल्मोडा कनेक्शन.....

बाबा रामदेव द्वारा महिला वस्त्रों का धारण करने की खबर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि हमको महर्षि दधीचि के मिस अल्मोडा कनेक्शन की सनसनाती हुयी जानकारी के कुछ सुराग हाथ लगे हैं। बात दरअसल यह है कि अभी हाल ही में हमें जनपद सीतापुर की तहसील मिश्रित (जो हमारी ननिहाल भी है) जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह जनपद सीतापुर महाकवि नरोत्मदास की जन्म स्थली के अतिरिक्त नैमिशारण्य चक्रःतीर्थ , महर्षि दधीचि निर्वाण सरोवर आदि पौराणिक तीर्थ स्थानो के लिये भी प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्मकथाओं के अनुसार देवता असुर संग्राम में महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियों से वजा्रस्त्र बनाने के लिये अपने शरीर का त्याग यहीं किया था वह स्थान अब यहाँ मिश्रित तीर्थ के रूप में जाना जाता है।



1 सूर्यास्त की बेला में महर्षि दधीचि के निर्वाण स्थल पर बने मंदिर की छटा

मिश्रित तीर्थ स्थान में महर्षि दधीचि निर्वाण सरोवर नामक एक बहुकोणीय सरोवर है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब महर्षि दधीचि ने अपने शरीर के त्याग का निर्णय लिया तो उनके शरीर पर पवित्र गंगाजल उँडेला जाता रहा और गौमाता के द्धारा उनके शरीर को तब तक चाटा जाता रहा जब तक कि वह हड्यिों का ढ़ांचे के रूप में परिवर्तित नहीं हो गया। अवशेष हड्डियों से बने वज्रास्त्र की सहायता से ही देवताओं को विजय की प्राप्ति हो सकी। महर्षि के शरीर पर उँडेले गये पवित्र जल से ही इस सरोवर का निर्माण हुआ।

महर्षि दधीचि के निर्वाण स्थल पर एक प्राचीन मंदिर निर्मित है जिसके प्रांगण में ही यह बहुकोणीय सरोवर स्थित है। इस प्रांगण के चारो ओर घनी बस्ती है और इसी बस्ती के बीच में सरोवर में प्रवेश करने के आठ द्धार हैं । बचपन से अनेक बार इन द्धारों से गुजरने का अवसर मुझे मिलता रहा है परन्तु इस बार इस द्वार से प्रवेश करना विशेष घटना के रूप में घटित हुआ क्योंकि इस बार यह प्रवेश द्वार कुछ विशिष्ठता सहेजे हुये था।
यूँतो घनी बस्ती होने के कारण लगभग प्रत्येक प्रवेश द्धार के अगल बगल में अस्थायी दुकानें अथवा छप्पर आदि डालकर अतिक्रमण किया जाना आम बात है परन्तु इस बार जो देखने को मिला वह अनोखा था। महर्षि दधीचि सरोवर के एक प्रवेश द्धार पर इस बार ‘मिस अल्मोडा गेट’ लिखवाया गया है ।



2 महर्षि दधीचि सरोवर के एक प्रवेश द्वार पर अंकित ‘मिस अल्मोडा गेट’

आस पास कई महानुभावों से पूछताछ किये जाने के बाद भी हमें कोई भी यह नही बता सका कि कौन सी ‘मिस अल्मोडा’ के द्धारा (अथवा उनकी स्मृति में) इस द्धार का नामकरण किया गया गया है।



3 दधीचि कुण्ड में सूर्यास्त की मनोरम छटा

सौभाग्य से मेरा ननिहाल यहाँ होने के कारण बचपन से कई बार यहाँ आने का सौभाग्य मिलता रहा है । मेरी स्मृति में नहीं आता कि इसके पहले कभी इस प्रवेश द्वार पर ऐसी कोई संज्ञा अंकित पायी हो। इसी ‘मिस अल्मोडा गेट’ के ठीक नीचे किसी दाँतों के अस्पताल का विज्ञापन पट लटका हुआ है । इस अस्पताल की पड़ताल करने पर एक ऐसे सज्जन से मुलाकात हुयी जिन्हे सम्मानित भाषा में झोलाछाप कहा जाता है।




4 महर्षि दधीचि सरोवर के प्रवेश द्वार पर विज्ञापित ‘दाँतों का अस्पताल’


मुझे उनके झोले से कोई गुरेज नहीं था सो ताजा -ताजा ‘मिस अल्मोडा गेट’ अंकित पाकर मैं अपनी इस पृच्छा का समाधान उनसे भी पूँछ बैठा। बहरहाल यह बात कोई भी नही बता सका कि कौन सी मिस अल्मोडा के द्धारा, अथवा किनकी स्मृति में इस प्राचीन द्धार का नवीनतम् नामकरण किया गया है , हाँ....वे भी नहीं बता सके .., जिन्होने इस नाम के ग्लैमर में अपना झोला पूरी मजबूती से टाँग रखा है।
...... और महर्षि दधीचि का यह ‘मिस अल्मोडा कनेक्शन’ मेरे लिये अनसुलझा ही रहा।
अब आप के साथ इस वृतांत को इस आशा के साथ बाँट रहा हूँ कि शायद आप ही इस सुराग के माध्यम से महर्षि दधीचि के मिस अल्मोडा कनेक्शन का रहस्योद्घाटन कर सकें।

नवभारत Times पर शुरू हुयी कोलाहल से दूर ब्लॉग सेवा पर भी आप क्लिक करके इसे पढ़ सकते है

इसी पेज पर
पर जाना होगा।

सावन (हाइकू)

(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली

(1)
फट गयी है
आसमान की झोली
धरा यूँ बोली

(2)
बादल छाये
धरती पर ऐसे
मोहिनी जैसे

अब आप के साथ इस (हाइकू) को इस आशा के साथ बाँट रहा हूँ कि शायद आप ही इस सुराग के माध्यम से रहस्योद्घाटन कर सकें।

सरहदों के पार से आती नई कविता की बयार>

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

चर्चा मंच: "लगता है अहसास कोई जिन्दा है कहीं":-(शनिवासरीय चर्चा)....Er. सत्यम शिवम

नमस्कार दोस्तों....मै सत्यम शिवम हर शनिवार की तरह आज भी आ गया हूँ...बारिश की कुछ फुहारों के साथ...मौसम बहुत सुहाना है,कही बूँदा बाँदी हो रही है,तो कही निरंतर बारिश...पर भीगने का मजा तो कुछ और ही है...चर्चा मंच: "लगता है अहसास कोई जिन्दा है कहीं":-(शनिवासरीय चर्चा)....Er. सत्यम शिवम

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

ं की खुशबु फैलाता एक संयुक्त ब्लॉग.... .....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पो


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मोबाइल आज हमारी जीवन-चर्या का अहम् हिस्सा है। मोबाइल पर आने वाली वाली कालें ही हमारे दैनिक क्रियाकलापों को नियंत्रित करती हैं। कई बार मोबाइल पर आने वाली कालों को हम चाहकर भी रिसीव नहीं करते हैं ऐसे में ये मिस्ड कालें भी बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही एक मिस्ड काल को व्यक्त करती मेरी कुछ पंक्तियाँ 4 जुलाई को साहित्य प्रेमी संघ के पटल पर प्रकाशित हुयी है। जिन तक पहुँचने के लिये कृपया आगे दिया गया लिंक क्लिक करें .......
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