मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नव वर्ष ''2014'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ

आप सभी सुधी पाठकजनों को काव्य का संसार परिवार की ओर से नव वर्ष ''2014'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।

 नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।
नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।
मंगलमय यह जीवन कर दो।
विद्या विनय बुद्धि का स्वर दो ।
बढे आत्मबल ऐसा कर दो।
नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।
भेद भावना को हटवा दो।
जीवन को आदर्श बना दो।
भब्य भावना लिंगित कर दो।
अतुल ज्ञान दे साहस भर दो।
नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।
जड़ता तिमिर हृदय का हर लो।
ज्ञान प्रभा आलोकित कर दो।
क्रन्दन करूण छात्र का हर लो।
नव स्फूर्ति उमंगी भर दो।
नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।
भौतिक बल बौद्धिक गरिमा दो।
 स्नेह प्रेम का पाठ पढा दो ।
हंस वाहिनी से मिलवा दो।
हम अंधो को ज्योति दिखा दो।
नये वर्ष! कुछ ऐसा वर दो।

 (लगभग 25 वर्ष पूर्व अपने छात्र जीवन में लिखी यह रचना दैनिक ‘अमर उजाला’ के रविवारीय बरेली संस्करण में वर्ष 1983 में प्रकाशित हुयी थी)

http://kavyasansaar.blogspot.in/search/label/रचनाकार%3A%20अशोक%20कुमार%20शुक्ला

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

बंताक्लाज की ओर से आप सभी को क्रिसमस की शुभकामनाऐं

जैसे जैसे मैरी क्रिसमस नजदीक आता जा रहा है मुझे एक सवाल परेशान किये जा रहा है कि एक ही परिवार के दो भाइयों संता और बंता के साथ दोहरा व्यवहार क्यों किया गया ।

क्या ये दोनो सौतेले भाई थे? तभी तो एक भाई सन्ताक्लाज को इतनी लोकप्रियता हासिल हुयी और दूसरे भाई बंताक्लाज का  (चुटकुले के सिवाय) कोई नाम भी नहीं लेता।

अब आज ही देख लो बंताक्लाज डेक्कन हेराल्ड पर रिक्शे से संताक्लाज के बच्चों को चर्च की ओर लेकर जाते हुये मिल गये,

 बहरहाल संताक्लाज की ओर से बधाइयां ओर उपहार खूब मिलें होगे



संताक्लाज के अलावा अब मेरे और बंताक्लाज दोनो की ओर से आप सभी को क्रिसमस की पूर्व संध्या पर क्रिसमस की अग्रिम शुभकामनाऐं

(नोट : सरदार बंताक्लाज का चित्र डेक्क्न हेराल्ड से साभार)


मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

सरोकारनामा: व्यवस्था के प्रति विश्वास जगाने की कहानी

दयानन्द पाण्डेय का यह उपन्यास समूचे हिन्दीभाषी उत्तर भारत के एक आम कस्बे की कहानी है, समूचे उपन्यास में एक इमानदार अधिवक्ता का तहसील स्तरीय वकालत मे न टिक पाना और शनै शनै कुंठाग्रस्त होकर अवसाद का शिकार होना विद्यमान न्यायिक व्यवस्था की कलई भी खोलता है-


उस की प्रैक्टिस अब लगभग निल थी। कई बार तो वह कचहरी जाने से भी कतराने लगा। पत्नी के साथ देह संबंधों में भी वह पराजित हो रहा था। चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। एक दिन उस ने पत्नी से लेटे-लेटे कहा भी कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।'
पत्नी कसमसा कर रह गई। आखों के इशारों से ही कहा कि,
'ऐसा मत कहिए। पर रमेश ने थोड़ी देर रुक कर जब फिर यही बात दुहराई कि,
'लगता है मैं नपुंसक हो गया हूं।' तो पत्नी ने पलट कर कहा,
'ऐसा मत कहिए।' वह धीरे से बोली,
'अब मेरी भी इच्छा नहीं होती।'
क्या पैसे की तंगी और बेकारी आदमी को ऐसा बना देती है? नपुंसक बना देती है? रमेश ने अपने आप से पूछा। 

समीक्षा पढें सरोकारनामा: व्यवस्था के प्रति विश्वास जगाने की कहानी
समीक्ष्य पुस्तक :

बांसगांव की मुनमुन
पृष्ठ सं.176
मूल्य-300 रुपए

प्रकाशक
संस्कृति साहित्य
30/35-ए,शाप न.2, गली नंबर- 9, विश्वास नगर
दिल्ली- 110032
प्रकाशन वर्ष-2012 

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

विशेष तारीख 11-12-13 समय 14-15-16 दिन, महीना, वर्ष और समय सब एकान्तर क्रम से

आज एक विशेष तारीख है 11-12-13 दिन महीना और वर्ष एकान्तर क्रम से हैं ऐसी ही एक विशेष तारीख दो वर्ष पूर्व आयी थी 11-11-11 जब दिन महीना और वर्ष तीनो एक थे। उस दिन मैने एक विशेष कार्य किया था और वह था प्रख्यात लेखिका अम्रता प्रीतम की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने के लिये भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को पत्र लिखना। आप सुधी पाठकजनों के लये अपनी उस पोस्ट का लिंक दे रहा हूं:
 
 अब दो वर्ष के बाद जब पुनः ऐसा ही विशिष्ट दिवस आया है तो यह भी एक महत्वपूर्ण मुहिम को लेकर आया है। कल ही मुझे गांधी ग्लोबल फेमिली का मेल मिला है जिसमें जनवरी के दूसरे सप्ताह में भारत से श्रीलंका जाने वाले पन्द्रह सदस्यीय दल में सम्मिलित किया गया है। इस दल में जम्मू कश्मीर के श्री मोहम्मद याकूब डार और गांधी जी के जीवन काल में बडी संस्था हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शंकर के सान्याल भी शामिल है।
 ठीक एक वर्ष पूर्व 1 जनवरी 2013 को जब हरदोई के गांधी भवन में सर्वोदय आश्रम के सहयोग से प्रार्थना सभा का आरंभ हुआ था तब यह नहीं सोचा था कि गांधी जी के नाम पर उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर हरदोई में आरंभ हुयी इस छोटी सी मुहिम के कारण मुझे ऐसा महत्वपूर्ण अवसर भी मिल सकता है

शनिवार, 23 नवंबर 2013

मूर्तियां भी रंग चुकी हैं चुनावी रंग में

आजकल माहौल चुनावी है । गांव गांव में जागरूकता है और राजनैतिक चर्चाऐं हो रहीं हैं। यह लोकतंत्र में प्रतिनिधि चुनने की व्यवस्था के क्रम में एक अच्छा कदम है। 

ऐसे माहौल में बीते दिन एक गांव जाना हुआ। गांव के बाहर स्थित अंबेडकर पार्क में गौतम बुद्ध और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी की प्रतिमा देखकर स्वयं को उसकी तस्वीर मोबाइल में कैद करने से नहीं रोक सका क्योकि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी की इस प्रतिमा का रंग सामान्यः नजर आने वाली अंबेडकर जी प्रतिमाओं से भिन्न था।

विगत कुछ वर्षो में यह देखने को मिला है कि विभिन्न राजनैतिक दलों ने रंगों को भी जैसे अपने दल के लिये पेटेन्ट ही करा लिया है। 

ऐसे माहौल में इस ग्रामीण पार्क में स्थापित यह मूर्ति भी जैसे चुनावी महौल में रंग चुकी है। 

गेरूये रंग में रंगी यह मूर्ति कहीं आने वाले लोकसभा चुनाव के परिणाम की चुगली तो नहीं कर रही है ?

गेरूये रंग में रंगी यह मूर्ति कहीं आने वाले लोकसभा चुनाव के परिणाम की चुगली तो नहीं कर रही है 


शनिवार, 21 सितंबर 2013

ऐसी होती हैं बेटियां !

एक नवविवाहित जोडे ने अपने विवाह के पहले दिन यह फैसला किया कि अब वे अपने प्रेम में किसी का भी हस्तक्षेप सहन नहीं करेगे और दस्तक देने पर कोई भी दरवाजा नहीं खोलेगा चाहें दरवाजा खटखटाने वाला कोई सगा संबंधी ही क्यो न हो

कुछ समय के बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया तो उन्होने की होल से देखा कि लडके के माता पिता थे दोनो ने एक दूसरे की ओर देखा पति चाहता था कि पत्नी दरवाजा खोल दे परन्तु दोनो अपने वादे से बंधे थे पति हारना नहीं चाहता था सो दरवाजा नहीं खोला और दरवाजे पर दस्तक देने वाले लौट गये। फिर कुछ समय बाद दरवाजे पर दस्तक हुयी तो उन्होने की होल से देखा कि इस बार लडकी के माता पिता थे दोनो ने एक दूसरे की ओर देखा पति आश्वस्त था कि पत्नी दरवाजा नहीं खोलेगी परन्तु पत्नी की आंखें नम हो गयीं और उसने यह कहते हुये दरवाजा खोल दिया कि वह अपने माता पिता को इस तरह दुखी होकर लौटने नहीं दे सकती।

बात आयी गयी हो गयी इस दंपत्ति ने का वैवाहिक जीवन सफल रहा और पत्नी देखते ही देखते तीन बेटों की मां बन गयी। पत्नी के चैथी बार मां बनने पर उनके एक बेटी हुयी तो उसके पिता ने बेटी के जन्म पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया । इस पर पत्नी ने इसका कारण जानना चाहा तो पति ने पत्नी और बच्ची को गले से लगाकर सहजता से उत्तर दिया यह भव्य आयोजन इसलिये कर रहा हूं के कि यही बेटी हमारे लिये बंद दरवाजा खोलेगी ।

ऐसी होती हैं बेटियां ! आज के बेटी दिवस पर संसार की सभी बेटियों को आर्शिवाद और प्यार!

लेखक अपनी बेटी स्वीकृति और सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा अपनायी गयी बेटी कली के साथ 



शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

...और भैया जी ने भारत भारती सम्मान लौटा दिया!!

आप सभी मित्रों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

हिन्दी दिवस के अवसर पर आदरणीय श्रीनारायण चतुर्वेदी से जुडा हिन्दी भाषा का एक मुद्दा याद आता है जो हिन्दी के प्रति इस महान साहित्यकार की हठधर्मिता का जीवंत उदाहरण है। लखनऊ जनपद के गणेशगंज मोहल्ले मे स्थित खुर्शीदबाग का मकान संख्या 53 हिन्दी विषय पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिये किसी तीर्थ स्थान से कम महत्व नहीं रखता क्योंकि यह आदरणीय चतुर्वेदी जी की कर्मस्थली रहा हैं।

 बीती 14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर एक साहित्यिक कार्यक्रम के सिलसिले मे दुगांवा स्थित आदरणीय मुद्राराक्षस जी के घर को जाना हुआ। गणेशगंज के भीड भरे इलाके से होता हुआ को किसी जमाने में लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान माने जाने वाले श्रेत्र खुर्शीदबाग से होकर गुजरा तो बरसस याद हो आयी मकान नम्बर 53 की । यह आवास आदरणीय श्रीनारायण चतुर्वेदी जी यानी हिन्दी साहित्यकारों के पितामह कहे जाने वाले दद्दा जी का आवास था। एक समय था जब इसमें साहित्यिक रौनकें हुआ करती थीं परन्तु अब यहाँ साहित्यिक रौनके नही सजतीं। दद्दा जी जितने मुंहफँट थे उसकी मिसाल दी जाती है।

हिन्दी दिवस के अवसर पर उनसे जुडा हिन्दी भाषा का एक मुद्दा याद आता है जो हिन्दी के प्रति इस महान साहित्यकार की हठधर्मिता का जीवंत उदाहरण है। आदरणीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे ।
 किसी अवसर पर उन्होने किसी परिपेक्ष्य में यह कह दिया कि हिन्दी के कौन से सुरखाब के पर लगे हैं। बस फिर क्या था श्रीनारायण जी की त्यौरियाँ चढ गयीं और उन्होने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से बहुगुणा को ऐसा जवाब दिया कि वे निरूत्तर हो गये।

 एक और किस्सा है उनके हिन्दी प्रेम का । जब आदरणीय वी पी सिंह जी ने उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने सम्बन्धी निर्णय लिया तो उन्होंने बी पी सिंह जी को जो पत्र लिखा उसकी भाषा कुछ इस प्रकार थीः-

 ‘....आपने राष्ट्रभाषा के साथ द्रोह किया है......’


 इस भाषा में लिखा पत्र उन्होंने न सिर्फ बीपी सिंह को प्रेषित ही किया अपितु स्वयं उनके पास जाकर यह पत्र सुनाया भी साथ ही प्रदेश में हिंदी के समर्थन में जनान्दोलन भी खडा किया।

 उन्हें दीर्धकालीन हिंदी सेवा के लिये भारत भारती सम्मान दिया गया परन्तु जब प्रदेश सरकार ने उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया तो उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

भांति भांति के शस्त्र आवेदन



पौराणिक युद्वों में सेनानियों को उत्साहित करने के लिये वीर रस के ओजपूर्ण कवियों का कविता पाठ प्रमुख भूमिका निभाता था यह विचार तो तर्क संगत हो सकता है परन्तु शस्त्र लाइसेंस को पाने के लिये कवितामय आवेदन की तर्कसंगता पर अवश्य विचार किया जाना चाहिये।

महात्मा गांधी की भ्रमण स्थली रहे जनपद हरदोई के शस्त्र लाइसेंस आवेदको के प्रार्थना पत्र विभिन्न रूपों में प्राप्त होते रहते हैं जिनपर यथासंभव कार्यवाहियां भी सम्पन्न करायी जाती हैं। अभी हाल ही में एक शस्त्र लाइसेंस का एक कवितामय आवेदन प्राप्त हुआ जिसे आपके साथ साझा करने का मोह संवरित नहीं कर सका 

 

जनपद का गौरव जिलाधीश

आशीष आपका पाने को।

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

है अनुज तुम्हारा पत्रकार

जनता की है सेवा करता।

आत्म सुरक्षा हेतु शस्त्र की

अन्तर मन से आशा करता।

 

विनती स्वीकार करो मेरी,

आया हूं अर्ज लगाने को।

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

क्षत्रिय अधूरा लगता है,

कन्धे पर जिसके अस्त्र नहीं।

विजय दशहरा पर्वों पर ,

पूजन के लिये कोई शस्त्र नहीं।

 

हूं शस्त्र तमन्ना  से प्यासा ,

आया हूं प्यास बुझाने को।

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

कवि कल्पना कर करके

इतिहास काव्य रच देते हैं

जो कलम आपकी चल जाये,

हर किस्से पूरे होते हैं।

 

जो काम असम्भव , सम्भव हो,

आया हूं पूर्ण कराने को।

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

भगवान राम की सत्ता में ,

यह लखन लाल का सपना है।

अधिकार आपके हाथों में ,

जीवन का हर क्षण अपना है।

 

यह सपना पूरा हो जाये ,

आया विश्वास जगाने को।

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

हो क्षमा याचना त्रुटियों की ,

हे पिता तुल्य! यह अभिलाषा।

निराश नहीं होने देना,

पूरा करना मेरी आशा।

 

टूटे फूटे इन शब्दों से,

आया फरियाद लगाने को। 

छोटे भाई की अभिलाषा

छोटा सा शस्त्र दिलाने की।

 

इस बेहतरीन तुकान्त कविता के लेखक का नाम सार्वजनिक नहीं कर सकता क्योंकि यह एक शस्त्र आवेदक की व्यक्तिगत सुरक्षा से संबंधित है।

बहरलाल, आवेदक को इस सुन्दर तुकान्त कविता के लिये बधाई !
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

लोकप्रिय पोस्ट