सोमवार, 7 मई 2018

उनके लिखे से प्रभावित हुये बगैर रहा ही नहीं जा सकता..!

शायद कोई पांच एक साल पुरानी बात है, किसी समारोह में स्मृति चिन्ह के रूप में दयानन्द पाण्डेय जी का उपन्यास 'बांसगांव की मुनमुन' मिला। उपन्यास पढकर में मुनमुन का फैन तो हुआ ही उसकी मां दयानन्द पाण्डेय का भी फैन हो गया। । चौंकिये नहीं ....! कोई गलती नहीं हुयी ...मैने सच कहा कि मुनमुन की मां दयानन्द पान्डेय जी ही है ऐसा स्वयं पान्डेय जी ने ही कहा है कि
''...जब मैं लिखता हूं तो मां बन जाता हूं। अनायास । रचना जैसे मेरे लिखने में आ कर बच्चों की तरह झूम जाती है । खिलखिलाती मिलती है । रचना में समाये पात्र चौकड़ी भरते हैं बच्चों के दोस्तों की तरह । कभी बात मान जाते हैं , कभी नहीं मानते । बहुत बार मेरे हाथ में नहीं आते । अपने मन से जो चाहे करते रहते हैं । और मैं एक मां की तरह उन के पीछे-पीछे लगा रहता हूं। उन को सजाता, संवारता और दुलराता हुआ।..''
.....सचमुच
आज श्री दयानन्द पाण्डेय जी की लिखी एक सच्ची कहानी मन्ना जल्दी आना का यह अंश साझा कर रहा हूं जिसे पढकर आप भी इस पूरी कथा को अवश्य पढना चाहेंगे :-
वह परिवार व्यवसाई था और शफी ने अपने रसूख के दम पर उन के बिजनेस को ख़ूब प्रमोट करवाया। कोई दिक्कत नहीं थी। अब तक उस महिला से शफी के सरोकार काफी ‘प्रगाढ़’ हो चले थे। हालां कि शफी शादीशुदा थे पर उन की अनपढ़ जाहिल पत्नी तराई के उन के गांव में रहती थी। शफी पहले तो उस के लिए भागे-भागे गांव पहुंचते थे, लेकिन तब लड़कपन था। पर अब तो वह उस की चर्चा तो दूर अपने को कुंवारा ही फरमाते। बाद में जब उन का इस शहर में भी वापस आना हुआ तो भी उन्होंने उस परिवार
से नाता नहीं तोड़ा। प्रगाढ़ ही रखा। बल्कि उस परिवार का आना जाना बाद में इस शहर में भी हो गया। बाई प्लेन। सारे खर्चे-बर्चे शफी उठाते। इस आने जाने के बीच उस हिंदू परिवार की मालकिन की दो बेटियां भी बड़ी होने लगीं। एक बेटी अंजू तो बला की ख़ूबसूरत थी। वह बोलती थी तो लगता जैसे मिसरी फूट रही हो। उस की कानवेंटी हिंदी अजीब-सा कंट्रास्ट घोलती। चलती तो लगता जैसे किसी फूल की कली फूट रही हो। उस के होंठ भी बड़े नशीले थे। और आंखें तो ऐसी गोया ख़य्याम की रुबाई हों। उस की शोख हंसी से लोगों के दिलों में मछलियां दौड़-दौड़ जातीं। तो ऐसे में शफी कौन से ब्रह्मचारी थे ? वह कैसे न फि होते इस अंजू नाम की लड़की पर। क्यों न मर मिटते उस पर ! भले वह उन की माशूका की बेटी थी। तो क्या, शफी ने भी रूसी उपन्यास ‘लोलिता’ पढ़ रखा था। फिर पड़ गए वह भी इस अंजू रूपी लोलिता के कपोलों के किलोल में। उस के कपोलों पर लटकती जुल्फों के असीर हो गए। बतर्ज मीर ’हम हुए तुम हुए कि मीर हुए, सब इसी जुल्फ के असीर हुए।’
उनके लिखे से प्रभावित हुये बगैर रहा ही नहीं जा सकता।
अंजू भी सोलह-सत्तरह के चौखटे में थी। सेक्स के पाठ में जल्दी ही प्रवीण हो गई शफी के साथ। शफी के हाथ क्या पड़े उस पर कि उस की रंगत ही बदल गई। देह उस की गदराने लगी। अंजू की मां को कुछ-कुछ भरम-सा हुआ, शक-शफी पर भी गया पर जब तक शक पक्का होता हवाता बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी। अंजू शफी के बच्चे की मां बनने वाली थी। अब क्या करे अंजू ? क्या करे अंजू की मां ? बात अंजू के पिता तक पहुंची। उन्हों ने माथा पीट लिया। बोले, ‘मुह काला करने के लिए इसे मुसलमान ही मिला था ?’ अब उन्हें कौन समझाता भला कि यह मुसलमान उन के घर में बरसों से सेंध लगाए पड़ा है। कौन बताता उन्हें कि बेटी तक तो वह बाद में आया, पहला पड़ाव तो मां बनी जो आप की बीवी है। आप की बीवी ही पुल बनी आप की बेटी तक शफी को पहुंचाने में। लेकिन बिजनेस प्रमोट करवाने के चक्कर में आप की आंख बंद रही तो कोई क्या करे भला ?
ख़ैर अंजू के मां बनने की ख़बर से पूरा घर तबाह था। अगर कोई निश्चिंत था तो वह खुद अंजू थी। शफी ने सपनों के ऐसे शहद चखा रखे थे अंजू को, प्यार के ऐसे पाठ पढ़ा रखे थे अंजू को, कि उसे कोई फिक्र होती भी तो कैसे ? जिंदगी के थपेड़ों की उसे थाह भी नहीं थी। वह तो अपनी ख़ूबसूरती की चाश्नी में मकलाती फुदकती रहती।
अंततः मां ने पहल की पूछा, अंजू से, ‘तू क्या चाहती है ?’
‘किस बारे में ?’ अंजू चहकती हुई प्रति-प्रश्न पर आ गई।
‘इस बच्चे के बारे में।’ मां ने साफ किया, ‘तेरे होने वाले बच्चे के बारे में?’
‘जैसा शफी साहब कहेंगे !’ वह फिर चहकती हुई बोली।
‘तुम ने कोई बात की है इस बारे में शफी से ?’
‘नहीं, बिलकुल नहीं।’
‘करेगी भी ?’
‘जरूरत क्या है ?’
‘जरूरत है।’ मां बोली, ‘मैं ट्रंकाल बुक करती हूं। बात तू कर !’
‘जल्दी क्या है अभी ?’ अंजू बोली, ‘अगले हफ्ते तो वह आने वाले हैं?’
‘कौन आने वाले हैं ?’
‘शफी साहब !’ अंजू यह कहती हुए लिरिकल हो गई।
‘अगले हफ्ते तक नहीं रुक सकती मैं।’ मां बोली, ‘तू आज ही बात कर!’
‘तो तुम ट्रंकाल बुक करो मम्मी !’
फोन पर बात के बाद मां ने अंजू से पूछा, ‘तो फिर ?’
‘ओह मम्मी !’ अंजू मां के गले में बाहें डालती हुई बोली, ‘डोंट वरी, वह शादी के लिए तैयार हैं !’
‘कौन शादी के लिए तैयार हैं ?’ मां ने चकराते हुए पूछा।
‘शफी साहब !’ अंजू इतराती हुई बोली, ‘और कौन शादी के लिए तैयार होगा?’ वह अपने पेट पर हाथ रखती हुई बोली, ‘जिस का बच्चा है वही तो तैयार होगा !’
‘ओफ्फ !’ कह कर मां ने माथे पर हाथ रख लिया। बोली, ‘तुझे पता है कि शफी तुझसे दोगुनी उमर से भी ज्यादा का है ?’
‘पता है मम्मी।’ वह बोली, ‘दिस इज नाट माई प्राब्लम !’ उस ने जोड़ा, ‘माई प्राब्लम इज दैट आई लव हिम !’ मां का मन हुआ कि अंजू को बताए कि तुझे पता है, तेरा शफी मुझ से भी लव करता रहा है ? पर यह सवाल वह पी गई। बतातीं भी तो कैसे बतातीं, बेटी से भला यह और ऐसी बात !
शफी ने सचमुच अंजू से शादी कर ली। शहर में यह बात तेजी से फैली कि शफी ने एक नाबालिग हिंदू लड़की को भगा फुसला कर शादी कर ली ! इस शादी की हवा इतनी तेज बही शहर में कि एक बार तो हिंदू-मुस्लिम फसाद की नौबत आ गई।
कहानी का लिंक टिप्पणी में दे रहा हूं। अवश्य पढियेगा इसे...!

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-05-2018) को "जिन्ना का जिन्न" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. Betway Casino & Hotel - Mapyro
    Find the best slot machines in Las Vegas and 창원 출장샵 explore 양산 출장마사지 Betway Casino & 김제 출장샵 Hotel map. Book 경상북도 출장안마 a table today for your next move. Or book today at the best Vegas 안양 출장안마

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

लोकप्रिय पोस्ट