शनिवार, 31 दिसंबर 2011

सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी के ब्लाग पर मेरे कुछ ‘हाइगा’ और नव वर्ष की शुभकामनाये


हाइगा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हाइ और गा । हाइ शब्द का अर्थ है हाइकू जो जापनी कविता की एक समर्थवान विधा है और गा का तात्पर्य है चित्र । इस प्रकार हाइगा का अर्थ है चित्रों के समायोजन से वर्णित किया गया हाइकू। वास्तव में हाइगा’ जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ । हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला) हाइगा की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था
देश की वर्तमान हालात को बयां करते मेरे कुछ ‘हाइगा’ हिन्दी हाइगा को समर्पित सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी के ब्लाग पर हाल ही में प्रकाशित हुये है। जिन्हें पढने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें !
देश की वर्तमान हालात को बयां करते ‘हाइगा...

हिन्दी विकी पीडिया पर हिन्दी में हाइगा... के नाम से सामग्री डाली गयी है जिसे आप और अधिक विस्तार दे सकते हैं

आप को कोलाहल से दूर परिवार की ओर से नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।
  
                     

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

एक और रवि (वार) की दुखद हत्या ....


हिन्दी साहित्य में गुलेरी जी की लोकप्रिय कहानी ‘उसने कहा था’ आज हमें एक दूसरे संदर्भ में याद आयी। हुआ यूं कि जब से लखनऊ कलक्ट्रेट में तैनाती पायी है अवकाश दिवस अर्थहीन हो गये हैं। तकरीबन पिछले दो माह से लगातार अवकाश के दिवस में शहर में कोई न कोई महत्वपूर्ण आयोजन होता है (यथा मोहर्रम के चलते अथवा निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता जागरूकता के लिेये अवकाश के दिन प्रायोजित कार्यक्रम आदि आदि ) इसके लिये निश्चित किये गये दायित्यों के कारण उसमें भौतिक उपस्थिति के चलते विगत किसी भी अवकाश दिवस मे मैं अपने पारिवारिक दायित्व नहीं निभा पाया हूँ।

अभी कल जो रविवार बीता है उसमें भी राजधानी में शासक दल द्वारा मुस्लिम क्षत्रिय वैश्य भाईचारा रैली का आयोजन किया गया था जिसमें शान्ति व्यवस्था व अन्य व्यवस्थाओं (?)के मध्येनजर समूचे प्रदेश से छोटे बडे लगभग 500 अधिकारी विभिन्न उत्तरदायित्यों के निर्वहन के लिये राजधानी में उपस्थित थे।


प्रदेश की लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी (?) द्वारा मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराया गया।
संभवतः बहुजन समाज पार्टी के इतिहास में यह पहला अवसर रहा होगा जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हिन्दुस्तान के मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराया गया। यह संयोग ही था कि आज ठीक उस समय जब लखनऊ में सार्वजनिक मंच से बसपा प्रमुख जहां हिन्दुस्तान में मुसलमानों को सच्चर कमेटी के अनुरूप सहूलियें मुहैया कराने का संकल्प कर रही थी ठीक उसी समय भारतीय ब्लाग और ब्लागरों के समाचारों का दर्पण कहा जाने वाले 'भारतीय ब्लॉग समाचार' पाकिस्तानी हिन्दुओं की हिन्दुस्थान में दुर्दशा ...की सूचना सार्वजनिक करते हुये यह बता रहा था कि पाकिस्तान से तीर्थयात्रा पर भारत आया 150 हिन्दुओं का दल किस प्रकार हिन्दू होने का अपराध ....की सजा भुगतते हुये वापिस अपने देश पाकिस्तान नहीं जाना चाहता।

मै इस अवसर पर हिन्दुस्तान में राजनैतिक तुष्टिकरण के विस्तार में न जाते हुये नवभारत टाइम्स में रीडर्स ब्लाग . पर ब्लागर केशव द्वारा प्रकाशित निम्न आंकडों को आपको पुनः याद दिलाना चाहता हूं।



यह प्रकरण आपके सम्मुख सादर विचारार्थ प्रस्तुत है।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी के निधन पर विनम्र श्रद्वांजलि

बीते नवम्बर की आठ तारीख को तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ... की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रही । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग ..
पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।

वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर अचानक ब्लाग जगम में लगातार अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत अचानक अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर‘फिर मिलेंगे’... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।



सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से बीमार चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर 2011 को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था।

आज उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी कविता तय तो यह था...

तय तो यह था...




तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल

तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद

तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल

अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था

तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...

हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं

लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!

ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!


नवभारत टाइम्स दैनिक ई पत्र पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
तय तो यह था....विनम्र श्रद्वांजलि

और यह रही डा0 सन्ध्या जी की उनके ब्लाग पर दिनांक 18 सितम्बर 2008 को प्रकाशित पहली पोस्ट


बृहस्पतिवार, १८ सितम्बर २००८

कोई नहीं था.....

कोई नहीं था कभी यहां
इस सृष्टि में
सिर्फ
मैं...
तुम....और
कविता थी!
प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न
भारतीय नारी ब्लाग पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
सचमुच
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल परन्तु ...तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....

ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती !

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही समस्त विधायी निर्णय लेने के लिये सक्षम हैं । आम जनता द्वारा निर्वाचन के माध्यम से इन जनप्रतिनिधियों का चयन किया जाता है परन्तु केन्द्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर राज्य सभा तथा विधान परिषद के रूप में स्थायी उच्च सदन की व्यवस्था है। राज्य स्तर के उच्च सदन में स्थानीय निकायों तथा शिक्षकों के लिय निर्वाचन के माध्यम से पृथक-पृथक स्थान निर्धारित होते हैं। इस प्रकार प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षकों के लिये राज्य के उच्च सदन में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजने की स्पष्ट व्यवस्था होने से वह राजनैतिक रूप से अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र होता है तथा यथा समय अपनी स्वतंत्र राय के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनने हुये उसे विधान परिषद हेतु भेजता भी हैं परन्तु अन्य राज्य कर्मचारियों के पास निर्वाचन से संबंधित अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने का इस प्रकार का कोई प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं है।

उल्टे किसी भी राज्य कर्मचारी को राजनैतिक गतिविधि में संलिप्त होने पर राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के अनुरूप उसे दोषी करार दिया जाता है। प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षक जो राजकोश से वेतन/भत्ते प्राप्त करते हैं और अन्य राजकीय कर्मचारियों की प्रास्थिति में यह भेद राज्य में उनकी लोकतांत्रिक स्थिति को प्रभावित करता है।


लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की विभिन्न धारायें निर्वाचन से संबंधित अपराधों का वर्णन करती हैं । इसकी धारा 134 निर्वाचन से संबंधित पदीय कर्तव्य के निर्वहन से संबंधित है जिसकी धारा 134-(1) के अनुसार जो कर्मचारी निर्वाचन में संसक्त पदीय कर्तव्य के भंग में किसी कार्य का लोप या युक्तियुक्त हेतुक के बिना दोषी होगा तो वह जुर्माने से जो पांच सौ रूपये तक हो सकेगा, दण्डनीय होगा यह भी कि धारा 134-(1) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा। इसी धारा में
134(क) जोडकर राजकीय सेवकों के लिये निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने को अपराध की श्रेणी में रखते हुये इसके लिये शास्ति का प्राविधान किया गया है।

मूल धारा तथा शास्ति इस प्रकार है

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा (134क) निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने वाले राजकीय सेवकों के लिये शास्तिः-यदि सरका की सेवा में या कोई व्यक्ति किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचन अभिकर्ता या मतदान अभिकर्ता या गणन अभिकर्ता के रूप में कार्य करेगा , तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से , या दोनो से दण्डनीय होगा।

इस प्रकार अन्य राजकीय कर्मचारियों को जहां राजनैतिक कार्यो में सक्रिय भागीदारी के लिये दण्डित किये जाने की व्यवस्था है वही राजकीय शिक्षकों को अपना शिक्षक प्रतिनिधि चुनकर उच्च सदन में भेजे जाने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया निर्धारित है और मेरे विचार में इसके चलते उनकी प्रास्थिति राज्य सरकार के सम्मुख उच्च विचारण की होती है।

कदाचित इसीलिये राजकीय अध्यापक के सम्मुख आयी परेशानियों का संज्ञान लेकर राज्य सरकार उसे अनेक ऐसे अधिकार देने पर राजी हो जाती है जो अन्य राज्य कर्मचारियों को राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के चलते प्राप्त नहीं हो सकते। एक ऐसे ही अधिकार की चर्चा करते हुये उत्तर प्रदेश राज्य के हालिया शासनादेश की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जिसके अनुसार जनपद स्तरीय कैडर का होने के बावजूद अध्यापको को अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गयी है और इस व्यवस्था को पारदर्शी तथा शिक्षकों के लिये उत्पीडन रहित बनाने के लिये आन लाइन आवेदन करने की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की गयी हैं। ...

राज्य सरकार के अन्य कर्मचारी और अधिकारीगण जो प्रदेश स्तरीय सेवा के सदस्य होते हैं उन्हें भी अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता क्यों नहीं देनी चाहिये जबकि लोकतंत्र का चौथा खम्भा लगातार राजकीय कर्मचारियों के स्थानान्तरण को एक उद्योग की श्रेणी में वर्गीकृत करते हुये उसे कर्मचारियों के उत्पीडन का औजार घोषित करने पर उतारू है ??
यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती।
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