शनिवार, 5 नवंबर 2011

इमरोज! यह तूने क्या किया?



अमृता जी का पुराना घर जिसकी नेम प्लेट उनकी कलात्कता को दर्शाती है
हरकीरत हीर जी के ब्लाग से पता चला कि अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। विस्तार से पढने पर जाना घर बिका ही नहीं घूल घूसरित भी हो चुका है। इमरोज जी ने इस बात की दिलासा दी है कि अमृता जी की यादों से जुडी तस्बीरें और अन्य सारी चीजें वे अपने साथ ले जाये है साथ ही मकान को बेचने का कारण बच्चों को पैसे की जरूरत बताया।
वाह रे इमरोज! पैसों की चाहे जैसी भी जरूरत क्यों न रही हो , अमृता जी से जुडी से जुडी इस विरासत को बेचने में तुम्हे कोई तकलीफ नहीं हुयी? फिर तुम कैसे दावा करते थे कि अमृता तो अब भी इसी घर में बसती है और वह तुम्हारे लिये मरी नहीं है।तुमने साबित कर दिया है कि तुमने हमेशा अमृताजी का उपयोग स्वार्थ के लिये ही किया। चाहे वे जीवित रही हों या अब उनके मरने के बाद ।


अमृताजी की तस्बीरो की नुमाइश लगा बैठे ये हैं इमरोज

अपनी जीवनी में अमृता जी के द्वारा लिखे हुये शब्द यह हकीकत खुद ही बयाँ कर रहे हैं
......
1964 में जब इमरोज ने हौज खास में रहने के लिये पटेलनगर का मकान छोडा था तब अपने नौकर की आधी तनख्वाह देकर उसके पास एक सौ और कुछ रूपये बचे थे । पर उन दिनो उसने एक एडवरजाइजिंग फर्म में नौकरी कर ली थी, बारह तेरह सौ वेतन था, इसलिये उसे कोई चिंता भी नहीं थी। पर एक दिन - दो तीन महीने बाद - उसने लाउड-थिंकिंग के तौर पर मुझसे कहा था -‘मेरा जी करता है, मेरे पास इस हजार रूपया हो, ताकि जब भी जी में आये नौकरी छोड सकूँ।’ मंहगाई बढ रही थी पर इसकी कही हुयी बात , मेरा जी करता था पूरी हो जाय।


तुम्हे याद होगा इमरोज कि तुम्हारी इस ख्वाइश को पूरा करने में तब भी अमृता जी ने तुम्हारी मदद की थी और ग्रीन पार्क में किराये का मकान लेकर बाटिक का तजुर्बा शुरू किया था और इसका हश्र पुनः यहाँ लिखने की जरूरत नहीं है।

आज अमृता जी को बिदा हुये छः बरस पूरे हो चुके है तो फिर बच्चों को पैसे की जरूरत के नाम पर हौज खास के मकान का सौदा करने में भी तुम्हे कोई हिचक नहीं हुयी?
तुम कैसे परजीवी हो इमरोज जो अमृता की मौत के बाद भी विरासत के रूप में छोडे गये उसके घर पैसे की जरूरत के नाम पर बेच सकते हो।

और यह रही धूल धूसरित मकान की आज की सूरत


वाह रे इमरोज! मेरे पास शब्द नहीं है पंजाब की संस्कृतिक विभाग और तुम्हें कोसने के लिये। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती।
आदरणीय इमरोज जी आप मुन्शी प्रेमचन्द्र का लमही हो या सुमित्रानंदन पंत का कौसानी कभी देखना जाकर इन जगहों को कैसे रहेजकर रखी गयी हैं इन साहित्यकारों से जुडी वस्तुये और उनके निवास स्थान को?

आदरणीय इमरोज जी आप अमृता जी के सच्चे दोस्त तो नहीं अमृता के नाम पर जीने वाले सच्चे परजीवी अवश्य साबित हुये हो सो आपसे क्या उम्मीद करूँ? मुझे तो लगता है कि आप कल अमृता जी से जुडी वस्तुओं की नीलामी करते हुये भी नजर आ सकते हैं। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति और पंजाब सरकार के संस्कृति सचिव को मै इस संदर्भ में एक पत्र अवश्य भेज रहा हुँ।

महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!


सेवा में

श्रीमान महामहिम भारत के राष्ट्रपति
भारतीय गणराज्य
राष्ट्रपति भवन
नई दिल्ली, भारत


द्वाराः- उचित माध्यम जिलाधिकारी लखनऊ (अग्रिम प्रति ई मेल द्वारा प्रेषित)

विषयः स्व0 अमृता प्रीतम के निवास स्थान को सांस्कृतिक स्मारक के रूप में संरक्षित करने विषयक।

आदरणीय महोदय,

अति विनम्रतापूर्वक अबगत कराना है कि विभिन्न ब्लागों पर प्रकाशित आलेखों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के माध्यम से अभी हाल ही में यह ज्ञात हुआ है कि हिंदी एवं पंजाबी भाषा की महान लेखिका स्व0 अमृता प्रीतम जी का नई दिल्ली हौज खास स्थित वह भवन जिसमें वे अपनी मृत्यु पर्यन्त निवास करती रही थी वर्तमान के किसी भवन निर्माता द्वारा बहुमंजिली इमारत बनाने के उद्देश्य से तोड दिया गया है।

उत्तर प्रदेश में स्व0 मुशी प्रेमचन्द जी का जन्म स्थान लमही हो अथवा उत्तराखंड के स्व0 सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म स्थान कौसानी , इसे संबंधित सरकारों ने न केवल राष्ट्रीय विरासत के रूप में संजोया है अपितु समय समय पर इन सांस्कृतिक विरासतो के प्रति यथानुसार शासकीय सम्मान भी प्रदर्शित किया जाता है।

पंजाबी भाषा तथा हिंदी में रचित स्व0 अमृता प्रीतम जी के साहित्य में ‘दिल्ली की गलियां’(उपन्यास), ‘एक थी अनीता’(उपन्यास), काले अक्षर, कर्मों वाली, केले का छिलका, दो औरतें (सभी कहानियां 1970 के आस-पास) ‘यह हमारा जीवन’(उपन्यास 1969 ), ‘आक के पत्ते’ (पंजाबी में बक्क दा बूटा ),‘चक नम्बर छत्तीस’( ), ‘यात्री’ (उपन्यास1968,), ‘एक सवाल (उपन्यास ),‘पिधलती चट्टान(कहानी 1974), धूप का टुकडा(कविता संग्रह), ‘गर्भवती’(कविता संग्रह), आदि प्रमुख हैं जिन्हे पंजाब राज्य सरकार तथा भारत सरकार के संस्किृति विभाग द्वारा समय समय पर विभिन्न सम्मानों से भी अलंकृत किया गया है।

स्व0 अमृता प्रीतम जी की रचनाओं के संबंध में हमारे पडोसी देश नेपाल के उपन्यासकार धूंसवां सायमी ने 1972 में लिखा था किः-‘‘ मैं जब अम्रता प्रीतम की कोई रचना पढता हूं, तब मेरी भारत विरोधी भावनाऐं खत्म हो जाती हैं।’’

हिन्दुस्तान की साहित्यिक बिरादरी की ओर से मैं महोदय को इस अपेक्षा से अवगत कराना चाहता हूँ कि ऐसी महान साहित्यकार के निवास स्थान को उनकी मृत्यु के उपरांत साहित्यिक धरोहर के रूप में संजोना चाहिये था परन्तु यह सुनाई पडा है कि स्व0 अमृता जी के इस भवन को बच्चों की जरूरत के नाम पर किसी भवन निर्माता को बेच दिया गया है।
कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती अतः इस संबंध में महोदय से विनम्र प्रार्थना है कि इस प्रकरण में महामहिम को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है तथा उसे अपने स्तर से दिल्ली राज्य की सरकार को निम्न प्रकार के निर्देश देने चाहिये:-



1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।



2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।


हिन्दुस्तान की उस साहित्यिक बिरादरी की ओर से प्रार्थी सदैव आभारी रहेगा जिसके पास अपनी बात रखने के लिये बडे बडे फोरम या बैनर नहीं है।

महामहिम महोदय द्वारा हिन्दुस्तानी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये किये गये इस कार्य के लिये सदैव कृतज्ञ रहेगा।
प्रार्थी /भवदीय

(अशोक कुमार शुक्ला)
‘तपस्या’ 2/614 सेक्टर एच’
जानकीपुरम्, लखनऊ
(उत्तर प्रदेश)
ईमेल: mailto:%20aahokshuklaa@gmail.com

यह रही राष्ट्रपति भवन की शिकायत प्राप्ति रसीद


महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    देवोत्थान पर्व की शुभकामनाएँ!

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  2. अशोक जी आप अगर ख़त लिखें तो पता मुझे भी दें .....
    अपनी तरफ से कोशिश तो करनी चाहिए की उस जगह अमृता का नाम बचा रहे .....

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  3. प्रिय अशोक जी अगर आप ने महामहिम को मेल भेजा है तो बहुत अच्छा है अवश्य है अन्य सभी साहित्यप्रेमी इस पक्ष में लिखेंगे ..अमृता प्रीतम जी की वस्तुएं इमरोज जी के पास हैं विश्वास किया जा सकता है लेकिन आप का मेल जो राष्ट्रपति को गया वह चिठ्ठी क्या सार्वजानिक नहीं है क्या ?
    भ्रमर ५

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  4. प्रेम की उपासक अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

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  5. अशोक जी आपकी पहल का हम सभी ब्लोगार्थी स्वागत ओर समर्थन करतें हैं .राष्ट्रपति इस धरोहर को यादगार बनाएं उम्मीद करतें हैं .

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  6. अशोक जी आपकी पहल का हम सभी ब्लोगार्थी स्वागत ओर समर्थन करतें हैं .राष्ट्रपति इस धरोहर को यादगार बनाएं उम्मीद करतें हैं .

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  7. अशोकजी आप ये बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं/अमृताजी की इस धरोहर को उनकी याद में सांस्कृत धरोहर बनाने के लिए राष्ट्रपतिजी को जरुर मान जाना चाहिए /हम सब आपके साथ हैं /और आपको धन्यवाद देते हैं कि आपने हमको भी इस नेक कार्य करने में शामिल किया /आभार/

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