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23 जुलाई का दिवस भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि इस दिन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े दो भिन्न विच...
कहते कहते वे बहुत कह गये
जवाब देंहटाएंमौन दुर्ग थे सिकंदर ढह गये |
बड़ी जुगत कर जिसने कागद पाया
पैसे लेकर मौज में खूब धूम मचाया|
गांव शहर ठाट देखकर जब मुरझाया
हल्ला बोल उसीपर कोरा कहर ढहाया |
बड़बोली सहकर भी बोली सह न पाया
देश क नाम गगन चढ़ा कमाने आया |
संगठन को कहता कान सभी भन्नाया
सम्प्रदाय का ढोंग रच विघटन कराया |
पत्ता साफ कभी हो जाता जांच गर आता
सद्भावना नाम पे 'मंगल' खूब रास रचाता||
साहित्यकार हिन्द का साथ निभाएँ
जवाब देंहटाएं'मंगल' मंगल भारत की भाषा गाएं|
जन्मदिन जन्म जन्म का सुख लाए
साहित्य सृजन में मंगल हाथ बटाये |
आप ने विचार दी ,मुझमे निखार दी |
जवाब देंहटाएं'मंगल' की कामना हमने धन्यवाद दी||
शुक्ल रामचन्द्र जी ,विशिष्ट कवि को
नागरीप्रचारणी सभा अपना प्यार दी ||
संकलन में काव्य गंगा भी दो भाग की
लगभग पांच सौ कवियों को निखार दी ||
"आदमी हो तो"
जवाब देंहटाएंलेखनी को धार दो
जीवन सुधार लो |
कलम गर उठाओ
समाज को सुधार दो |
हुनर है तो हॉक दो
गली मुहल्ला बाँक दो |
सत्य का साथ दो
हवा का रुख आंक लो |
गर आदमी हो तो
आदमी का साथ दो ||sukhmangal@hmail.com
खुल गया मिहिर द्वार सत्य का भाई
जवाब देंहटाएंतिमिर पार करनेकी जितनी हो लड़ाई|
लड़ना विरोध चाहे द्वन्द समर जितना
सत्य मार्ग पर स्थिर निर्भर रह उतना ||
जब तलक भूखा इंसान रहे
जवाब देंहटाएंधरा पर केवल भगवान रहे |
मानवता मानव की वह रहे
अब खुशियों का संसार रहे ||
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जवाब देंहटाएं"सरयू"
हटाएंराम नाम ही सत्य
बहती दूध की धार
ममता की गोद माँ
पापऔ छोभ मिटते।
विविध पुष्प है हार
शिव राम प्यार अगाध
धरा फैली हरियाली
सरयू सतरंगी धार।।
" लड़ना सीखो"
जवाब देंहटाएंकदम बढ़ाके लड़ना सीखो
सत्य शास्त्र हो पढ़ना सीखो |
गर् गहर उतरयो तैरना सीखो
उत्तम जन संग रहना सीखो |
सज्जन संग संग चलना सीखो
प्रकृति प्रेम को गहना सीखो |
छाड़ि आडम्बर बदलना सीखो
नीक -निम्न सम्हालना सीखो |
देव् सेव स्वयं साधना सीखो
सत्य प्रेम बंधन बंध सीखो |
खल जन हों गढ़ना सीखो
स्वारथ हरिपद चलना सीखो |
मिथ्या भाषियों को रदना सीखो
सुजन संत सा चलना सीखो ||
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जवाब देंहटाएंतुमने कैसी आग लगाई
जवाब देंहटाएंजिसको हमने सुलगाई ।
दिल में चुपके से कोई
एक दीपक नहीं जलाई ।
जलकर ख़ाक हो जाता
उसकी हमने आग बुझाई ।
जा !चली गयी दीवानी
पर देने आई नहीं विदाई ।।
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटिया बनाई है
जवाब देंहटाएंपास कोई न रहने वाला वीर -वंश अपनाई है ||
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटिया बनाई है
जवाब देंहटाएंपास कोई न रहने वाला वीर -वंश अपनाई है ||
शिक्षा में उन्नति दिखती तमाम
जवाब देंहटाएंसामाजिक जीवन होगा महान ।
अधिकारों के लिए कसी कमान
रूढ़ियों द्वारा होता दिखा अपमान ।
समाज बढ़ आगे किया सम्मान
'मंगल 'का देखो कैसा फरमान ।।
आज नहीं तो कल सही होगा नाम महान
जवाब देंहटाएं'मंगल' कहकर चला मस्त सकल जहांन |
राम भरत कुंड शुभ धाम
जवाब देंहटाएंजहां कीन्ह तपस्या राम ।
श्रीचरणों में करके ध्यान
राम सबको हैं सुखधाम ।
धाम यही सबको सुखरासी
जहां मेला लागे सदा पिचासी।
अवधपुरी के सुखी नर नारी
मंगल विदित सकल चहुंवारी ॥
“मंगल गीत सुनायेंगे ”
जवाब देंहटाएंहम वीर भगत की संताने ,
हो रहे सभी हैं दीवानें |
वह बात पुरानी छोडो ,
नव भारत से नाता जोड़ो |
बिकास मुख मुसुकान ,
भारत अपना महान |
अब्दुल हमीद से वीर यहा
भीम जैसे सूर वीर जहाँ |
भारत की गाथा गायेंगे
देश का परचम लहरायेंगे ||
"कमाल कर दिया "
जवाब देंहटाएंएक गुजराती आया
और कमाल कर दिया
नदी -नाले तालाब ने
धमाल कर दिया |
विश्वविद्यालय और सड़क
सबके दिन बहुरे
गंगा की सीढियां बनीं
वरुणा में जल ठहरे |
जैसे कि धोती फाड़ के
कमाल कर दिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया |
अपना अपना सबका सपना
सोया भाग जगा
होने लगे सच सब सपने
ऐसा सबको लगा
जन -जन का सुखी
होने लगा हिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया |
पाक के अंकी- मंकी- डंकी
नापाकी है सब आतंकी
उन्हें खोज सब सेना मारे
काम यही है ढंग की |
पाक चुभाये काँटा
भारत भाल कर दिया
एक गुजराती आया
और कमाल कर दिया ||
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जवाब देंहटाएं"परिवर्तन "
जवाब देंहटाएंऐसा हो लिहाफ की समाज बदल देंगे
कुढ़ रही जिन्दगी जनाब बदल देगे |
सारा जहाँ सदा परिवर्तन में रहा है
जनाब दिल- मागो लिवास बदल देंगे|
मैं नहीं जमाना हमसे है ज़माना
दुनिया को देख किताब बदल देंगे |
सभ्यता-संस्कृति में लाते परिवर्तन
नयी दुनिया का भी हो रहा वर्णन |
ऐसा हो लिहाफ की समाज बदल देंगे
कुढ़ रही जिन्दगी जनाब बदल देगे ||
"जिन्दगी झमेला "
जवाब देंहटाएंनाम से जिसके चलता रेला
करते हो तुम ठेलम ठेला |
बच्चे करते नहीं झमेला
लगता जहां -तहां था मेला |
मार समय की हमने झेला
दूजा का समझे यह खेला |
नाम से जिसके चलता रेला
करते हो तुम ठेलम ठेला ||
बाजारू बन रहा अकेला
अपने -पराये ठेलम ठेला |
ऊँच शिखर -खाई ढकेला
जा बैठा सिंहासन अकेला |
मार समाज की खूब झेला
उसका साथ नहीं अकेला |
नाम से जिसके चलता रेला
करते हो तुम ठेलम ठेला ||
"गाय"
जवाब देंहटाएंगाय हमारी माता है सोना जिनसे आता है
शरीर पुष्ट होता दूधसे मंगल भाग्य विधाताहै|
दूधोंसे सबल बनाती महल बनवाती सोने से
रोम में देवता बसते धन्य जीवन विधाता है |....
कफन ओढ़े चल रहा वह आदमी/ दिखता कुछ और कह रहा है आदमी|
जवाब देंहटाएंमजहवी लिवास ओढ़े चल रहा आदमी/ अपने घर से बेघर हो रहा आदमी ||
दशरथ दरबार में ,
जवाब देंहटाएंपहले तो जाइये|
राम नाम नाम से ,
नेह को लगाइये||
दशरथ दरबार में ,
जवाब देंहटाएंपहले तो जाइये|
राम नाम नाम से ,
नेह को लगाइये||
शार्दूलविक्रीडित छंद परआधारित प्रयोग - १९मात्राएँ)
जवाब देंहटाएंअपने जो देश के लिए जीता है,
देश क सच्चा मीत होता है|
जो देशके लिए कल्याण करताहै,
देश में उसी का नाम होता है|
उसी का देश में कल्याण होता है,
जिसने समाज का मान रखता है|
देश उसीका गुणगान करता है,
जिसने राष्ट्र का कल्याण किया है|
समाज को आगे बढ़ाना शान है,
राष्ट्र का जिससे बढ़ता मान है||
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जवाब देंहटाएं"काहन कंकड़ "
जवाब देंहटाएंऐसी काही बोली ,काहल काहन सडक प कंकड़ |
कालि बरसती गोली ,झोली निकले अदभुद पत्थर ||
छात्रावास समेटे , पेट्रोल बम बोतल व गट्ठर |
का चुनाव है भाई , चोरी लूट डकैती बत्तर||
"राष्ट्र धर्म "
जवाब देंहटाएंधर्म रक्षा करना मानव काम है |
धर्म सुरक्षा से होता जन का मान है ||
धर्म विहीन मनुष्य पशु सामान है|
जीवित रहकर भी वह वस्तु सामान है ||
राष्ट्र की रक्षा जीवन क शान है |
नहीं करे जो राष्ट्र रक्षा प्रतिमान है ||
गलत क करे विरोध धैर्यवान है|
गलती का करे समर्थन स्वार्थवान है ||
राष्ट्र- विरोधक निलज्जवान हैं |
जो करते राष्ट्र सेवा कीर्तिवान हैं||
देश में घृणा फैलाए स्वान है |
विरोधी बात मन में लाए हैवान है ||
राष्ट्र मर्यादा रखे धैर्यवान है |
सुदेश के खातिर मर मिटता महान है ||
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जवाब देंहटाएं"मैं हूँ पेपर ?"
जवाब देंहटाएंमैं हूँ पेपर सीधा सादा
सीधी -साधी अपनी भाषा
मेरे पृष्ठों पर छपती
हत्याओं की नित गाथा |
लूट डकैती औ बलात्कार
घोटाले की छपती भाषा
छापा अभी है पड़ने वाला
पेपर में पहले छप जाता ||
sukhmangal, your comment is live
जवाब देंहटाएंInbox
x
Patrika.Com
1:45 AM (0 minutes ago)
to me
ओबामा ने ओवल ऑफिस में पहली बार मनाई दिवाली
ओबामा ने ओवल ऑफिस में पहली बार मनाई दिवाली
patrika.com ·
\"ज्योति-पर्व \"
ज्योति -पर्व ,हमरौ संग
मनवा मितऊ!
एल० ओ० सी० पे
दियना जरावाs मितऊ!
मइया भारती क हिय s
हुलास लावा मितऊ!
मन में अँधेरे यदि
मिटावा मितऊ!
एक दीपक उजाले क s
जरावा s मितऊ!
ह्रदय लिए उमंग
ताम मिटावा मितऊ!
हियरा में दियना
जरावा s मितऊ!
जगत के अन्धेरा
भगावा मितऊ!
सभ्यता -संस्कृति s दीप
जरावा s मितऊ!
मार्ग प्रगति क s
दिखावा मितऊ!
धरा से अन्धेरा
मिटावा मितऊ!
सिमवा पे राउर
गोली बर्षावा मितऊ!
पावन -पर्व ,हमरौ संग
मनावा मितऊ||
"जन्म दिन हो खुद से सीखें "
जवाब देंहटाएंसूरज की किरणों से सीखें ,
जीवन सदा गुलजार दीखे |
प्रभु ने दिया वह कम दीखे !
जिन्दगी हो खुशी सरीखे ||
साहित्यकार कलम से जूझें ,
एकादशी दिवस से सीखें |
'मंगल 'घड़ी साहित्य लूटें,
मिठाई है मुख में ठूसें||
धन - खातिर बैंक पे टूटें,
जनम दिन है खुशियाँ लूटें |
आँख अपनी कभी न मीचें ,
राष्ट्र -धर्म क बिगुल फूंकें |
चकाचौंध हो! खुद से रीझें ,
एकादशी दिवस से सीखें ||
"अनमोल जीवन "
जवाब देंहटाएंप्रात: दोपहर कीजिये भरके पेट आहार
नियमित भोजन सदा! रोग न करे विहार |
रात सदा हल्का भोजन रोग न पकले द्वार
पैतालीस मिनट बाद जल कोलेस्टोल न प्रहार|
भोजन कर आप अब चलें पग हजार
ओझा वैद हाकिम का द्वारे नहीं बहार |
द्वारे नहीं बहार हो छुट जाए बाजार
औषधि लेना ही पड़े आयुर्वेद निहार |
भोजम क्र निहारिये घंटों करलें देर
औषधि खाने से बचें पानी पीजिये ढेर |
तिल नारियल घी अलसी सरसों तेल
शेष दूसरा खायेंगे होगा हार्ट का खेल |
अन्न मोटा खाइए तन की बढे शक्ति
संत समझ कीजिये मन में आये शक्ति|
आहार विहार करके न पीजिये ठंढा नीर
आँतों में भेदन करे विषधर बनके तीर |
खट्टा मीठा खाइके जिह्वा हो रणवीर
डाक्टर!इंजक्सन से छक्के छूटत धीर |
गेहूं भर चूना ग्लास में लें मिलाय नीर
पानी पीजिये घुट घुट सुस्ती अपच दूर |
भोजन करके पाइए खाड़ सौफ अजवान
पाथर पानी बन जाए मानत सकल जहां ||
"पाती तो याद आएगी "
जवाब देंहटाएंलिखता इसलिए सुपाती जो याद आएगी|
कुछ देश रहेंन रहें ;मंगल'गीत सुनाएगी |
त्राहि त्राहि करता जहां ममता को बतलाएगी
जीवन जीने की कला सबको मिल सिखलाएगी |
बुद्धि बल से बिल्सित हृदय ज्ञान दिखलाएगी |
डगर सुनहरा हो अब सबका ऐसा गुर बताएगी|
अमन चैन चतुरता से रहने वालों को हर्षायेगी|
भक्ति भाव को भरने की वह कोमलता लाएगी |
सीधा सादा भोला भाला सुपथी मानव लाएगी |
ग्यानी-विज्ञानी गुरु ग्यानी से धरा को सजाएगी ||
"चीख सुनना जरूरी है ,कहो?"
जवाब देंहटाएंआतंक फैलाना जरूरी है,कहो?
अपनों को मिटाना जरूरी है,कहो!
रक्त रंजित भावना जरूरी ,कहो !
उद्गम शहर जलाना जरूरी है,कहो !
नफरत फैलाना जरूरी है ,कहो ?
सजे मजहवी उत्सव जरूरी है,कहो!
ताउम्र तनावी सफर जरूरी,कहो !
क्या माँ को तडपाना जरूरी है,कहो !
पक्षियों की चीख सुनना जरूरी,कहो !
राम जानें - संग्राम जरूरी है,कहो ?||
"कविता कह जाती "
जवाब देंहटाएंमाँ सरयू की सलिल
शीतल -निर्मल धारा सी
व्योम गगन में मचलती
कविता आगे बढती |
पारिख पावदान में,
माथे चन्दन दिखती
छंदित-रंजित -वंदित
कलिकाएँ प्रतिबिम्बिब
कागज- अक्षर- खिलती|
विचारों के उधेड़ -बून में ,
लिखने चलती |
लघु -लम्बी होकर
भी कुछ वह
कह जाती ?
लिख जाती ,
निज थाती
मंगल वह कविता,
कहलाती||
"स्वच्छता जागरण "
जवाब देंहटाएंदेश को जगाय दिया ,
फावड़ा उठाय लिया |
एक गुजराती लाल ,
विश्व को उठाय लिया ||
योग भी अपने लिया ,
दुनियाभर दिखाय दिया |
भारत का - सपूत,
जहां को सीखाय दिया ||
शान्ति का सन्देश दिया ,
सभ्यता का मार्ग किया ,
संस्कृति दिल से लिया ,
संसार को सिखाय दिया||
करेंगे और करके दिखाएँगे-
का तंत्र-मन्त्र चुना |
देश को समझ लिया ,
विश्व में फैलाव किया ||
'राम को पुकार "
जवाब देंहटाएंराम को पुकार !
माया को मन त्याग ,
बिगड़ी बनायेंगे ,
जनत के पालनहार |
मन ना भरमायेंगे,
जनम सुफल बनायेंगे ,
मुक्ति मार्ग दिखाएँगे ,
रामजी पुकार !!
"एड्स का इंजक्सन ?"
जवाब देंहटाएंदरियादिली दिखी सरकार
दवाओं में आया सुधार |
दवा का पैसा बहे न बेकार ,
जीवन रक्षक दवा भरमार |
पर इंजक्सन एक बेकार,
एड्स भरा इंजक्सन हजार |
फिरी का खाना छोडो यार
वरना हो जाओगे सभी बेकार |
कवितावाजी में रखा है क्या ,
बडबोली वालों की भरमार |
पंडित -मुल्ला मिल खेल रचाए ,
गुंडे बस्ती में बम वर्शाये |
मुर्गा दारू अंडा औ भाजी,
चार पहिया गाडी ससहार ,
एड्स भरा इंजक्सन व्यापार |
'मंगल' कहता रहता ललकार ,
अपनाओ स्वदेशी करो ब्यापार ||
"पर्वत बोले ?"
जवाब देंहटाएंमंगल आयो आनंद भयो ,चहुओर बज्यो बधाई |
रघुबर वरसत ईटा पत्थर ,प्राण अनेको गवाई ||
तरु हिंदुन आनन्द हित ,लगते पौध मुरझाई |
गाल बजावत देश प्रीती ,तकि चूर भयो चतुराई ||
झगड़े झूठे मंच मुहल्ले, पेट की आग दिखाई |
चढ़ी परवान भयंकर लोभ ,कौआघर रोटी भाई ||
बीटेक एमटेक गैगमैन ,ट्रेनवे में आग लगाईं |
गली गलचौर हॉत सबै ,एमए.बीए झाडू चलाई |
अबकी बरसी रोजगार ,खेल अनेकों गौ समझाई ||
"ऊपर आकाश "
जवाब देंहटाएंदेश का होगा क्या कल्याण,
करता मोबाइल गुणगान !
फेसबुक फेक लोग दीवाना ,
शोसल मिडिया है खजाना ?
कुचकुच -कुचकुच सांझ विहान
मुख पर पोते चलत पिसान !
शिक्षक खुद से कहते महान ,
उठाये ऊपर आशमान |
"आदिकवि वाल्मीकि "
जवाब देंहटाएंमरा - मरा 'रट' राम कहाया ,
विपुल चेतना औ सच लाया |
अवशर सब सच दिखे सुहाना ,
वाल्मीकि - समझाने आया !
बना महान पिछ्ला धर्म- कर्म,
रामायण उन्हें गुणवान बताया |
दिशाओं में हिन्द -हवा लहराया ,
बुद्धि - बल ने रामायण रचवाया |
जिह्वा पर माँ सरस्वती आई ,
और सुलेखन कृत्य कराया |
पूर्व जन्म - कर्म - फल पाया ,
कवि सुखमंगल ने यह गाया ||
"व्यायाम "
जवाब देंहटाएंनार्वे से आया फरमान
बचालो पंचों अपनी जान !
याद करो वह अपना धाम
शारीरिक श्रम बनाये काम |
बचाता डिप्रेशन व्यायाम ,
शरीर क्षमता हो बलवान |
शोधकरता पहुचे मुकाम ,
मानसिक बीमारी सुरधाम !
वयस्कों पर आया अध्ययन,
डिप्रेशन से न हों अनजान |
उल्लेखनीय कमी का अनुमान ,
व्यायाम सुगम बनाया काम |
'मंगल' क कर करे प्रणाम,
दवा से मुक्ति दे व्यायाम ||
"करवा चौथ कुशल क्षेम की दुआ "
जवाब देंहटाएंभूखे रहकर निर्जला स्त्रियाँ रखतीं है ब्रत,
भारत को देख इसी लिये सब रहते हतप्रध |
वी. डी. ओ. कालिंग से तोड़ते अपना ब्रत,
प्रियतम को पाकर प्यारी भी हो गई हकवत |
निराजल ब्रत रहकर भूखे दिन बिताये शक्त,
कृपा प्रभु हो गोल्ड मेडल ले आये भक्त |
भारत यूं ही नहीं संस्कृति पर भरता है दंभ,
सभ्यता-संस्कृति- संस्कार उसका है अवलम्ब |
परम्परा और प्यार का प्रतीक करवा चौथ,
देश -परदेश मन बहलने लगा करवा चौथ |
गुनगुना रहा है गीत- संगीत रात का चाँद,
चुडिया- कंगना सजने लगी है करवा चौथ |
बीती रात को ही प्यार समझाने लगा चाँद,
सुहाग सुहावन सुखद दीप जलाने लगा चाँद |
चांदनी रात में प्रेमी-पिया मिलाने लगा चाँद,
भूखे -प्यासे को 'मंगल' प्यार लुटाने लगा चाँद ||
"रचना का प्रतिबिम्ब कहाँ ? "
जवाब देंहटाएंहंसी -ठिठोली करने वालों
मुझे बताओ
रचना का प्रतिबिम्ब कहाँ है
मुझे दिखाओ
ढोल -मजीरा लेकर
चौकठ-चौकठ ना खांचो
सहनशील यह धरा हमारी
इसे जमकर जांचो
जांचो फिर जांचो
फिर कुछ पाओ
रचना का प्रतिबिम्ब कहाँ
मुझे दिखाओ
आँगन में रौनकता ला दें
ख़ुशी-ख़ुशी हर दीप जला दें
अंधियारे को दूर भगाओ
रचना का प्रतिबिम्ब कहाँ है
मुझे दिखाओ ||
'मैं धरा हूँ "
जवाब देंहटाएंमैं धरा हूँ
खरा हूँ
अन्न जल से भरा हूँ
श्रद्धा -शीतलता लिए
पवन -गगन संग खडा हूँ
भीषण तूफानों में भी
बड़े चट्टान सा पडा हूँ
सप्तरंगी रंगों में मढा हूँ
शोभा -सादगी से जड़ा हूँ
अज्ञानियों के सर चढ़ा हूँ
ज्ञानियों में ज्ञान से भरा हूँ
मैं धरा हूँ |-२
"बंजर बचाए रखिये "
जवाब देंहटाएंगाँव की बंजर जमी प्रधानी ने महल बनाये
साठ साल भ्रष्टाचार कूप तालाब सब ढहाए |(मुक्तक )
बंजर जमीन परधान बचाए रखिये
पडेगा- पानी अकाल सजाये रखिये |
अन्न के पड़ेगे लाले बेर लगाए रखिये
एपल और नीबू को भी लगाये रखिये|
कंदमूल- संस्कृति अपनी बनाये रखिये |
बागीचा अमरुद का एक लगाये रखिये
खेतों में हिरमाना को लगाये रखिये |
नारियल की बागवानी सजाये रखिये
'मंगल' जमी परधानो से बचाए रखिये ||(रचना )
"जल की उपयोगिता "
जवाब देंहटाएंजल बिनु धरा क कैसे विस्तार
'मंगल' जब होगा लाचार |
जल जीवन का है आधार
जीवन में ही जल सुमार ||
पृथ्वी का एक हिस्सा सार
तीन बटे चार जल अपार |
द्वय हाइड्रोजन परमाणु व
एक आक्सीजन है औजार||
जल ते होती खेती - बारी
धंधा उद्द्योग चलता साड़ी |
जल बिना जहां की कल्पना
सारी जायेगी बेकार ||
मनोरंजन-उपयोग होता
जल जीवन से मोल न लेता|
पर्वत -खाड़ी नदी तालाब
वाटर का है श्रोत आधार||
वाटर पोर्टल का आधार
जल जीवन में है सुमार ||
वाराणसी/सुखमंगल जूंन ६,२०१८ ,पराड़कर भवन ,
जवाब देंहटाएंगुर्दे सभागार में अखिल भारतीय गौ भक्त कवि सम्मेलन एवं वौद्धिक विचार मंथन ! में सुखमंगल सिंह ने अध्यक्षीय सम्बोधन करते हुए कहा "धरा पर मनुष्य के अलावा गौ माँ ही ऐसी जीव रूप में पशु है जो बच्चा नौ माह नौ दिन में देती है दुसरे किसी जीव को नौ मांह में बच्चा पैदा करने का जिक्र नहीं मिलता | गाय को सम्भवत: इसी वजह से भी माँ का दर्जा मिला हुआ है | गाय के गुणों की बात करें तो उसकी सींग पिरामिड का कार्य करती है जिससे वह मालिक सहित आस-पास आने वाली परेशानियों से मानव जीव को सुरकहित करने का कार्य कर पाती है | ऋग्वेद ,यजुर्वेद और अथर्ववेद ने गाय की व्याख्या मानव रक्षार्थ कहा है | गरुण पुराण में मानव को शरीर त्यागने (मृत्यु ) के उपरान्त वैतरणी नदी से जीव को पार कराने का कार्य गाय माँ ही कराती है |
गाय के दूध -मूत्र आदि से निर्मित पंचगव्य भी रोग नाशक होता है | तुलसी जैसे आक्सीजन लेती -देती है वइसे गाय भी आक्सीजन लेती और आक्सीजन छोड़ती है | गाय के डिल सौर्य ऊर्जा को एकत्रित करती है और उसकी रीढ़ का सौर्यउर्जा को सोसित करने के कारण गाय का मूत्र ,गोबर आदि लाभ परैड है | गाय में एक विशेष प्रकार की गाय होती हैं जो गुजरात में पायी जाती है ,उसके मूत्र से सोना (कनक ) तैयार होता है | पेट और विविध रोगों से बचाता है ,गाय का दूध ,छाछ ,घी ,मक्खन सभी लाभकारी है |
नींद काम आने पर गाय के दूध से निर्मित दही और छाछ पीना चाहिए | लाभकारी है |
गौ का मट्ठा मानव में कैलोरी बढ़ाता है | साथ ही बढे हुए तोंद को भी काम करता है | इसके दूध,दही, मक्खन ,छाछ में लोहा,जस्ता ,फास्फोरस और पोटैसियम प्रचुर मात्रा में मिलता है |
गाय पर वैज्ञानिक शोध होते रहते हैं ,आगे भी होते रहने की संभावनाएं अधिक हैं | ज्ञात सूत्रों के अनुसार कुछ शोध सार्थक सिद्ध हुए है | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदि के प्रति आभार व्यक्त करते हुए गाय पर केंद्रित रचना भी सुनाकर वाहवाही लूटी |
अंत में अध्यक्ष ने कहा - गौ रक्षा सतयुग ,द्वापर,त्रेता,और कलियुग में भी हमारे ऋषियों -महात्माओं और आम प्रेमी जनों ने की है ,करते रहेंगे | आज भी इस दौर में बुद्धिमान विद्वान् जनजन गौ रक्षार्थ कार्य कर रहे हैं ,करना भी चाहिए | आगे कहा वैसे तो बहुत से उदाहरण शास्त्रों में वर्णित हैं परन्तु आप सभी विद्वानों को रामअवतार की तरफ ध्यान कराना चाहता हूँ | अयोध्या में भगवान् राम के वाली काल में भगवान शिव जी अयोध्या आये | उस काल में उनके आने में मदद वृषभ ने किया था और उस वृषभ की पैदाइस जो माता से ही होगी |
अतएव प्रत्येक काल में गौ की महत्ता रही है | धन्यवाद !--
"जीव-जीवकी गती और कर्म धरम"
जवाब देंहटाएंस्वार्थ में चारो ओर धाए;
गोविंद गुणगान कभी ना गए।
तेरा मेरा कहता चौरनगा!
साहिब को आए हलकारे।।
बधे काल ते चौखम्भा:
ना कोई नेता-बेटी नारी संगा।
सारी कर्म किया जो भारी;
अब वह संग चले तुम्हारे।।
आगे जम ठाढे मतिहिना ;
धर्मराज बूझ सब लीना।
जिस नियत 'मंगल पैदा कीनहा;
पा रूप नया मानव सब लीइन्हा।।
"नव वर्ष की शुभकामनाएं "
जवाब देंहटाएं------------------------------
नव वर्ष की शुभकामनाएं /
बच्चों में उत्साह जगाएं |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
प्रांगन मंदिर संस्कृति अपनाएँ /
भगवा ध्वज की पताकायें |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
तिलक चन्दन टीका लगाएं ?
नव वर्ष धूम से मनाएं |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
शंख ध्वनि सुमधुर बजाएं /
पुरुषोत्तम राम को याद दिलायें |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
विक्रमादित्य का विक्रमी मनाएं /
डा ० केशव राव जयंती मनाएं |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
झूले लाल को ना भुलाएँ /
नव वर्ष की शुभकामनाएं |
देवी को सुमधुर गीत सुनाएँ ||
- सुखमंगल सिंह
"खाईं बढ़ल"
जवाब देंहटाएंवर्षों बाहर अंजोर दिखल
भीतर अंधियार भयल।
कच्ची कली के मामले में
अँखियन से जहर ढहल।
नेहियाँ-नदिया मेड बधल
गंउवा में जहर ढलल।
शहर 'मंगल' गंउवा बढल
मनइन में खाई बढ़ल ||
-सुखमंगल सिंह
"निर्मल गंगा? "
जवाब देंहटाएं-----------------
गंगा मरुथल कभी ना बनने पाए /
'मंगल' पाताले गंगा चली न जाए |
शोर-शौर्य से गंगा साफ नहीं होती /
धर्म धैर्य धीरता कर्माने को धाए ?
गंगा की सफाई क वर्षों डंका पिटाए /
मौसम का मिजाज समझ न पाया |
जगह जगह घाट बने- काशी भाया /
मेला- मिलन- मनोहर भी रचाया |
देश और परदेश से कसमें खाया /
धरा रेगिस्थान बनेगी- समझाया |
गगनस्पर्शी शोर जोर दिखलाया /
फिर भी जल निर्मल नकर पाया ?||
- सुखमंगल सिंह
"लाहौर फतह "
जवाब देंहटाएंदन- दन -दन - दन
चलती तोपें |
सन - सन सन सन -
बन्दूक की गोली |
सीने पर माँ -आवरण
दुर्गा माता बोली ?|
बचपन में बच्चे को
बढ़िया प्यार नहीं दे पाया |
सीमा पर लड़ने दुश्मन से
वीर निकल आया |
दूध पीने को दो घू ट नहीं
भरपूर गोली वर्शाया|
दुश्मन के छक्के छूटे
लाहौर फतह कर आया ||
- सुखमंगल सिंह
"भोर "
जवाब देंहटाएं---------
जीवन का परम सत्य
सुबह हमें बताती |
गौरव गाथा हमें
पढने हेतु जगाती |
जीवन के अरमानों की
मर्यादा हमें सिखाती |
मनसा वाचा कर्मणा
वेद काल दोहराती |
उषा काल का महत्व
सुबह हमें जनाती||
-सुखमंगल सिंह
"मोदी को फिर लाना है "
जवाब देंहटाएं-------------------------
घर - घर जाके हमें -आपको
सबको यह समझाना है
मोदी को फिर से लाना है
भारत भूमि की माटी का
हमको कर्ज चुकाना है
मोदी को फिर से लाना है |
भारत अपना ,पांच साल मे
पाहुचा उच्च शिखर पर
चीन - पाक जैसे दुश्मन
दुबक गये दरबे मे डर कर
हमारे जवानों का दम- खम
पूरे विश्व ने जाना है
मोदी को फिर से लाना है |
चारो ओर रखवाली हो
घर-घर मे खुशहाली हो
बेरोजगारी दूर जा भागे
खेतों में हरियाली हो
वैज्ञानिकों ने भी अपना सीना ताना है
मोदी को फिर से लाना है |
चोर कौन है, भेद यह खोले
कवियों की अब कविता बोले
सच का पहले साथी होले
चोर के संग न डोले
सामी नहीं अब गवाना है
मोदी को फिर से लाना है ||
-सुखमंगल सिंह,वाराणसी
सीमा पर तैनात
जवाब देंहटाएंभारत के जावाज़ जवानों के नाम -
-------------------------------------------
सीमा पर तैनात जवानों
कर दो बंद दुश्मन की बोली
मिटा दो कुल आतंकी टोली
पाक से खेलो जमके होली
सौ पर भारी एक जवान हो
तलुए तले अब पाकिस्तान हो
तिरंगा इस्लामाबाद में लहरे
वहां तलक अब हिंदुस्तान हो
खाली न जाए एक भी गोली
पाक से खेलो जमके होली
धरती मां की शान तुम्हीं से
साधु संतों का ध्यान तुम्हीं से
भारत का मान - सम्मान तुम्हीं से
जनगण मण का गान तुम्हीं से
युद्ध नहीं अब हंसी ठिठोली
खेलो पाक से जमके होली।।
-सुखमंगल सिंह,वाराणसी
ऐसा जतन करें "
जवाब देंहटाएं------------------
चूल्हा - चौका रोटी पानी /
घर -घर यही कहानी/
भूखा पेट कोई मिल जाये /
आओ उसे भरें
हरी - भरी हो सबकी बगिया /
ऐसा जतन करें |
गाँव ,गली ,चौबारे गूंजे /
तुलसी औ कबीर की बानी /
चूल्हा चौका रोटी पानी। ........
हर चौखट दरवाजे गायें /
शुभ- शुभ मंगल गीत /
शत्रु अगर कोई दिख जाये /
वह भी बन जाये मन मीत |
बूढ़ा मन महसूस करे कि /
आई लौट के पुनः जवानी /
चूल्हा - चौका रोटी - पानी ||
-सुखमंगल सिंह
"दीवाली पर्व "
जवाब देंहटाएं---------------
झुर-झुर बहत पुरुवैया दीपावली सुखद सुहावन ,
दीप सबके सजे अगनईया औ मिठाई लुभावन |
झिलमिल -झिलमिल दीप टीमटिमात मनभावन ,
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा सजे आसमा सुहावन |
कुंजों में,उपवन में शांति भुवन सुखधाम दिखावन,
गुरुजन परिजन ध्येय धन्य दी गुणगान लुटावन |
अयोध्या- मथुरा -काशी- प्रयाग धाम मनभावन,
धनवंतरी पहले पहल आए गाँव - गाँव बतावन |
बाहर - भीतर सखी औ साजन शोभा बढ़त पावन ,
दीप प्रज्वलित घी तेल बाती से ठाँव -ठाँव दिखावन |
रीझ -खीज स्वार्थ सब भूली सुखदायक सुख आँगन ,
छबि निरखत 'मंगल' मोहन मन कुंज कुंज पावन |
छोरी - गोरी दीप जलावत गावत विनोद मनभावन,
झुर-झुर बहत पुरुवैया दीपावली सुखद सुहावन ||
- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी , यू पी. भारत
"बताना होगा "
जवाब देंहटाएं----------------
भारत सद्भाव भरा राष्ट्र जहां को बताना होगा |
अतिहन्त -अपाचे चारो दिशा में लगाना होगा ||
विश्व बंधुत्व बदहाल सभी को सिखाना होगा |
सदियों क सुन्दर सुखद रूप दिखाना होगा ||
सबके लहू का एक जैसा रंग उन्हें बताना होगा |
इक्कीसवीं का देश हमारा हमें समझाना होगा ||
अनुप्रमाणित धरा पर फिर से श्री राम को आना होगा |
घर -घर ,जन जन , मन में बसे रावण को भगाना होगा ||
सरयू की उलटी धारा दसरथ वंश में बही थी बताना होगा |
साहित्य - कथा की दिशा - दशा को संस्कार में ढालना होगा ||
कौशल = कोशलाधीश का लोगों को समझाना होगा |
नर्वदेश्वर की महिमा गरिमा सोमेश्वर की गाना होगा ||
बलिदानियों के बलिदान की गाथा को हमें नहीं भुलाना होगा |
गोकुल गोखुर गाँव का गाना पवित्र -पवित्रता से सुनाना होगा ||
- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी ,मई १८/१९
"साजन प्रदेश "
जवाब देंहटाएं----------
साजन बसे परदेश
सूनी - सूनी लगे
नाचे गायें घर चौबारे
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
जहर लागे हंसी ठिठोली
सून सून लागे होली !
चारो और रंग बरसे है
मेरा सूखा मन तरसे है
खाली अबीर गुलाल झोली
सूनी सूनी लागे होली |
आँखे सबकी ,खुशियां वांचे
पीली पीली सरसो नाचे
रंगीले परिधान में टोली
सूनी सूनी लागे होली |
होड़ मची कमचोर बली में
हुड़दंगी है गली गली में
अपनी तो है रवानी होली
सूनी सूनी लागे होली ||
- सुखमंगल सिंह,वाराणसी
जवाब देंहटाएंSukhmangal Singh
Jul 27, 2019, 10:00 PM (10 hours ago)
to me
"मंगल विचार "(ईमानदार राजा )
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ईमानदार शासक के हाथ में जब एक देश आता है तो विश्व के अनेक देशों को वह जो सन्देश देता है ,वही सर्वमान्य होता है | उस शासक से पहले वर्षों से शासन चलाये हुए लोगों को ईमानदार राजा खटकता है, जिसकी परवाह न करते हुए ईमानदार राजा अपने निश्चित लक्ष -पथ पर अग्रसर होता जाता है | यह मानकर कि -
आग को भड़का रही है जो
आज अंदर की हवायें हैं
कुछ पसीने से बनी होंगी
कुछ मुकद्दर की हवायेँ हैं (एक सूरज कल का भी -पृष्ठ ६२)
वह राजा जो परमात्मा का नाम लेते हुए आगे बढ़ता है ,अजेय होता है | प्रजाजनों के लिए सुखों का वर्धन होकर रहे | कष्टप्रद आचरण करने वालों , अहितकारी तत्तों को समूल नष्ट कर दे और परमात्मा का कृपा पात्र रहे | वही राजा प्रजा का सच्चा स्वामी होता है | (वेदामृत अथर्ववेद सुभाषितावली ,पृष्ठ ९७-१०० )
प्यासों को रस - कलश दो न दो
आगे खाली गिलास मत रखना (एक सूरज कल का भी -पृष्ठ १०)
जिंदगी है दस्तावेज जैसी
स्नेह के सम्बन्ध सारे आंकड़े है ( आदमी अरण्यों में -पृष्ठ -२० )
मैल को अंदर छिपाकर के कभी हम
आवरण ही आवरण ढोते नहीं हैं
अब फरिश्ते हैं शहर में
क्यों यहां अब आदमी होते नहीं हैं ( सारस्वत सलिल ,हाथी के दांत पृष्ठ ४९ )
लोकतंत्र में रीति - नीति - धर्म ,मन को भली प्रकार से न समझकर चलने पर ऐसों को देश की जनता सत्ता से बेदखल कर देती है | ऐसा शासक सत्ता से बेदखल होने के उपरांत भी यदि अपने आचरण -व्यवहार में बदलाव न करके ईमानदार राजा को बदनाम करने की साजिशें बनाने में ही मशगूल रहता है तो जनता उसे स्वीकार नहीं पाती | सत्ता विहीन राजा चाटुकार वाणी से अथवा क्रूर हरकत से सत्तायुक्त राजा को हटाने की युक्ति में यदि मशगूल रहता है तो तरह से हानि उसी की होती है | वशीकरण के मन्त्रों से क्या बाँध सकोगे
सिर्फ प्रेम के बंधन में बढ़ने वाले हम
मेल जॉल , भाई चारा , अपनापन भूला
आपस में कब थे यूं बटने वाले हम | ( आदमी अरण्यों में -पृष्ठ -३४ )
- सुखमंगल सिंह ,वाराणसी २२१००२
मूल्यांकन -काव्य साधना (प्रथम खण्ड ,ई.बुक )विकिपीडिया अवतरण (गूगल +कवितायें ) कवि - लेखक :सुखमंगल सिंह
जवाब देंहटाएंकाशी और पूर्वांचल को समूचे विश्व से जोड़े हुए हैं सुखमंगल सिंह - डॉ अजीत श्रीवास्तव
----------------------------------------------------------------------------------------------
मेरे समक्ष इस समय बहुचर्चित कवि - लेखक सुखमंगल सिंह की ' काव्य साधना ' है | पृष्ठ दर पृष्ठ ज्यों -ज्यों पलटता , देखता - पढ़ता आगे बढ़ रहा हूँ , बहुत कुछ नया मिल रहा है | कवि के मौलिक रचना संसार का व्यापक फलक , विश्व स्तर पर जुड़ाव , पारिवारिक ,सामाजिक , राष्ट्रीय - अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों पर पैनी नजर , क्या कुछ नहीं है ' काव्य साधना में |
पांच दशक से निरंतर सिर्फ ' साहित्य सफर ' में इन दिनों मुझसे प्रायः एक सवाल बराबर किया जाता है - अजीत जी ! आप वाट्स एप ,फेसबुक क्यों यूज नहीं करते ? अधिकतर लोगों के इस सवाल का मैं कोई जवाब नहीं देता |
दरअसल ये दोनों सुविधायें साहित्यिक क्षेत्र में टांग अड़ाने वाले बच्चों के लिए हैं | इन बच्चों को ( फेसबुकिया ) ऐसा प्रतीत होता है कि ये साहित्य में हाथी ठेल रहे हैं | मैं महसूस करता हूँ कि फेसबुक में स्वच्छता अभियान का चलाया जाना जरूरी है | अउराडबेरों की अउराडबेरी फेसबुक की मर्यादा मिट्टी में मिला रही है किन्तु सिर्फ दो प्रतिशत ही ऐसे हैं जो कि कुछ सार्थक लेकर आते हैं | ऐसे दो प्रतिशत लोगों में सुखमंगल सिंह अग्रणी भूमिका में हैं |
गूगल से नियमित नौ साल से जुड़े हैं | गूगल की वजह से सुखमंगल सिंह यत्र - तत्र - सर्वत्र हैं |
मेरी सोच जाति -धर्म - सम्प्रदायवादी ,बकवादी कभी नहीं रही है | मैं साफ तौर पर सुनने - बोलने - लिखने में विश्वास रखता हूँ | छोटी - मोटी उपलब्धियां लेने के लिए "रीढ़ की हड्डी भी चिटखने लगे" इतना झुकाने और लपर - चपर करने का आदी नहीं हूँ ! लोग बाग़ सीख देते हैं कि दौर लपर - चपर करने वालों का ही है |
मैनें कवि सुखमंगल सिंह को बराबर 'साहित्य और समाज के लिए सकारात्मक ' भूमिका में ही पाया है | मुझसे साहित्य से इतर ,व्यक्तिवादी चर्चा इन्होंने कभी नहीं की |
'वसुधैव कुटुम्बकम ' भारतीय दृष्टि है | सत्य,अहिंसा और प्रेम इस भारतीय दृष्टि की रक्षा और विकास के अस्त्र हैं ! आज सम्पूर्ण विश्व में भारत की दृष्टि और उसके अस्त्रों का लोहा मान लिया है | अब तो मार्क्सवादी - लेनिनवादी और माओवादी सभी अपने घुटने टेक चुके हैं ! पूरे विश्व में आज गांधी - गौतम सब पे भारी हैं | वह दिन दूर नहीं जब कि गांधी - गौतम के विचारों - सिद्धांतों को पूरा विश्व अपना लेगा | 'काव्य-साधना 'इन सभी बातों पर बल प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण प्रयास है |
दृष्टव्य हैं 'काव्य साधना ' की पूरे विश्व को ललकारती और दिशा प्रदान कराती ये काव्य पंक्तियाँ -
" हों सिले यदि होठ तो भी गुनगुनाना चाहिए
रोना - धोना छोड़ के बस मुस्कराना चाहिए
विद्रोह की ज्वाला आखिर भड़क उठी है क्यों
खुद समझना और सभी को समझाना चाहिए "
आज देश अमीर - गरीब , दो वर्गों में होता जा रहा है | मध्यमवर्गीय स्थिति अब समाप्तप्राय हो चली है | आज पेट और सोच दोनों पर भौतिकतावादिता बुरी तरह हावी है | संस्कृति और सभ्यता सांस्कृतिक प्रदूषण के गिरफ़्त में है |
शिक्षा और स्वास्थ्य पर वर्त्तमान सरकार को ३७० और ३५ ए जैसी दृष्टि अपनानी होगी , देश आज ऐसा महसूस करने लगा है | शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन समय की मांग है |
सुखमंगल सिंह अपनी काव्य साधना में कहते हैं -
मेरा जुनून मुझको ही कोसता रहा
हम तो उठाईगीरों के गुलाम हो चले
रचनाकारों ,साहित्यप्रेमियों यहाँ तक कि आम जनों के लिए भी काव्य साधना उपयोगी ,संग्रहणीय है | सुखमंगल जी सपरिवार स्वास्थ्य ,सानन्द और दीर्घजीवी हों ! उनकी रचनाशीलता निरंतर विकसित होती रहे ,यही कामना है |
दिनांक -10/08/2019 हस्ताक्षर - ड़ा अजीत श्रीवास्तव
शिवकृपा : सी -4/204-1 ,कालीमहल (सरायगोबर्धन) चेतगंज
वाराणसी (उ0 प्र 0 ) -221010
स्वर्ग विभा ई।- बुक ,समीक्षा ,
जवाब देंहटाएंस्वर्ग विभा (ई - बुक ) अवतरण
हिन्दी के वरिष्ठ कवि ,लेखक ,पत्रकार एवं समाजसेवी श्री सुखमंगल सिंह का 'स्वर्ग वभा ' नामक ई - बुक पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ | इसमें उनकी गद्य -पद्य की सैकड़ों सारगर्भित रचनाएं भारतीय जान जीवन ,संस्कृति, साहित्य , विचार,परंपरा और राष्ट्र- वादिता से ओत -प्रोत हैं | साथ ही देश के प्रतिष्ठित महापुरुषों ,साहित्यकारों एवं राष्ट्रीय चरित्रों के बारे में जानकारियां भी यथेष्ट रूप में उपलब्ध हैं |
प्राचीन काशी का इतिहास ,प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री पात्र ,आर्थिक उदारीकरण , आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि आलेखों से लेखक की विचार शीलता से परिचित होना भी सुखद अनुभव प्रदान करता है | डायरी ,वार्ता को भी इस संकलन में स्थान प्रदान करना लेखकी विविधता का परिचायक है |
इसमें प्रकाशित कवितायें प्रायः प्रकृति ,पर्यावरण ,जीवनादर्शों ,मानवीय मूल्यों को समर्पित हैं जिसमें कवि का वैचारिक सौंदर्य लोकमंगल की कामना को बल प्रदान करता है | साथ ही जीवन के कटु यथार्थ से कवि का सुपरिचित होना भी प्रासंगिक है |
अतः कवि सुखमंगल जी ने अत्यंत प्रखरता के साथ आम आदमी की पीड़ाओं ,समस्याओं आदि को भी इस संकलन मे सहेजने में सफलता प्राप्त की है , जो प्रशंसनीय है|
आशा है, अहिंसा, सत्य,करुणा के प्रचार- प्रसार में कवि की रचनाएँ समाज को बल प्रदान करेंगी और ई- बुक पाठकों के बीच इस संकलन का भरपूर स्वागत होगा | रचना- संचयन हेतु बहुत - बहुत बधाई |
दिनांक -22/08/2019 हस्ताक्षर- सुरेन्द्र वाजपेयी
द्वारा- हिनदी प्रचारक संस्थान
पिशाचमोचन, वाराणसी-10 (उ0 प्र0 )
"हूँ कवि मैं सरयू -तट का"
जवाब देंहटाएंपृथु बोले ! सुन स्तुति गान
जो कहता हूँ उसे लें मान
मैं अभी श्रेष्ठ कर्म -समर्थ नहीं
कि अभी सुनूं मैं कीर्तिगान
कर्म -सुकर्म -भगत -जगत का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
यह सुन सूत आदि सब गायक
हर्षित हो ,मन ही मन नायक
कहे,आप ही देवव्रत नारायण
आप हैं गुणगान के लायक
प्राकट्य कलावतार हरि -घट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
धर्ममार्ग में नित चलकर
निरपराधी को दंड न देंगे
सूर्य किरणें जहां तक होंगी
आपके यश -ध्वज फहरेंगे
विन्दु न कोई छल - कपट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
आपका भू -स्वर्ग -पाताल
दुष्टों को खा जाएगा काल
चमकेंगे जन -जन का भाल
सबके सब होंगे खुशहाल
भाग्य जागेगा, कूड़े करकट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
परब्रह्म का प्राप्ति मार्ग
सनत कुमार जी बताएँगे
सरस्वती -उद्गम स्थल पर
अश्वमेध यज्ञ कराएंगे
खेती सीचे पानी पुरवट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
शिव -अग्रज सनकादि मुनीश्वर
माथे चरणोद चढ़ाएंगे
स्वर्ण सिंहासन पर उन्हें आप
ससम्मान विठाएँगे
शब्द - अर्थ होगा ,उद्भट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
-- सुखमंगल सिंह
सरयू रामप्रिया कहलातीं
जवाब देंहटाएं—————————
पाप नाशिनी हैं मां सरयू
असंख्य कल्पनाये सजाये लहराती
मैदान में करनाली बन सरयू
सुन्दर-सरयू-सुगम-कहती
हिमालय से निकली गंगा संग सरयू
मां शारदा भी है नाम
उत्तराखण्ड नेपाल-सीमा में
मां काली नदी है नाम
जान्हवी, राप्ती, आमी का नीर
घाघरा, गोंगरा नाम बताये
उनके सभी पाप धूल जायें
डुबकी सरयू में जो लगाये
—————————————————————
कवि हूं मैं सरयू-तट का / सुखमंगल सिंह (३१)
—————————————————————
सरयू रास्ते संग-संग श्रीराम
ऋषि विश्वामित्र चले हैं
वाल्मीकी–वालकाण्ड बताये
शिक्षा देने को निकले हैं
ऋग्वेद ने भी किया गुणगान
मां सरयू वाकई महान
परंपरा में देविका कहाती
और रामप्रिया भी नाम
आओ! आज मां सरयू का
सब मिलकर गुणगान करें
श्री हनुमत से आज्ञा ले 'सुखमंगल'
शारदा-सरयू में स्नान करें
————————————————————
सरयू-तट का / सुखमंगल सिंह (३२) २
————————————————————
मत निराश हो
जवाब देंहटाएं------------------
न मांग किसी और से
ऊषा की राश्मियां
आप अपने आप में
खुद प्रकाश कर
जो हो न सका
उसके लिये मत निराश हो
जो हो सकेगा
उसके लिये कुछ प्रयास कर
कवि हूँ मैं सरयू- तट का/ सुखमंगल सिंह (2)
-------------------------------
हूँ मैं कवि सरजू – तट का
हूँ मैं कवि सरयू – तट का
समय चक्र के उलट – पलट का
मानव मर्यादा की खातिर
मेरी अयोध्या खड़ी हुई
कालचक्र के चक्कर से ही
विश्व की आँखें गड़ी हुई
हाल ये जाने है घट – घट का
हूँ कवि मैं सरयू – तट का
हुआ प्रादुर्भाव पृथु – अर्ति का
अंग – वंश के वेन भुजा मंथन से
विदुर – मैत्रेय का हुआ संवाद
गन्धर्वों ने सुमधुर गाँ किया मन से
मन भर गया हर – पनघट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह (3)
----------------------------------
पृथु – अभिषेक आयोजन हुआ
अभिनंदन ,वेदमयी ब्राह्मणों ने किया
पृथ्वी- नदी – समुद्र – पर्वत – स्वर्ग – गौ
सबने अर्पण उपहार किया
उपहार मिला सब टटका – टटका
हूँ कवि मैं सरयू – तट का
गंधर्वों ने मिल किया गुणगान
सिद्धों ने पुष्पवर्षा से बढ़ाया मान
समवेत स्तुति ब्राह्मणों ने करके
बांटा मुक्त मन से, समुचित ज्ञान
बटा ज्ञान सब टटका - टटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(4)
------------------------------
सूर्यवंश का उगा सितारा
कुबेर - सिंहासन ब्रह्मा ले आये
धरा- गगन औ रिधि - सिधि गाये
सभी देवता मिल देखन आये
मगन हुआ मन घट- पनघट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का
मनमोहक हरियाली छाई
सकल अवध खुशहाली आई
राजा पृथु का आना सुन
ऋषियों की वाणी हर्षायी
प्यासे को जैसे, मिला हो मटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(5)
----------------------------
दिया विश्वकर्मा ने सुंदर रथ
चंदा ने अश्व दिये अमृतमय
सुदृढ़ धनुष दिया अग्नि ने
सूर्य ने वाण दिये तेजोमय
शत्रु को करारा दे जो झटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
चक्र सुदर्शन दिया विष्णु ने
लक्ष्मी दी संपत्ति अपार
अम्बिका ने दीं चंद्राकार चिन्हों की ढाल
और रूद्र दिये चंद्राकार तलवार
काम करे सरपट का
हूँ कवि मैं सरयू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(6)
----------------------------
पृथ्वी ने दी योगमयी पादुकायें
आकाश नित्य पुष्पों - मालाएँ
सातो समुद्र ने दिये शंख
पर्वत–नदियों ने हटाईं पथ की बालायें
बना दिया पृथु को जीवट का
हूँ कवि मैं सरयू - तट का
जल - फुहिया जिससे प्रतिपल झरती
वरुण ने दिया छत्र ,श्वेत चंद्र- सम
धर्म ने माला ,वायु ने दो चंवर दिये
मनोहर मुकुट इन्द्र ने ब्रह्मा ने वेद- कवच का दम
सम्पूर्ण सृष्टि का माथा चटका
हूँ कवि मैं सरयू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(7)
-------------------------------
सुन्दर वस्त्रों से हुए सुसज्जित
जवाब देंहटाएंऔर अलंकारों से पृथु राज
स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान
आभा अग्नि की, दिखे महाराज
पहुंचे सभी न कोई अटका
हूँ कवि मैं सरयू - तट का
सूत - माधव वन्दीजन गाने लगे
सिद्ध गन्धर्वादि नाचने - बजाने लगे
पृथु को मिली अंतर्ध्यान - शक्ति
महाराज पृथु को सभी बहलाने लगे
दे - दे करके लटकी - लटका
हूँ कवि मैं सरयू -तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(8)
--------------------------------------
गुणों और कर्मों का ,वंदीजन ने गुणगान किया
पृथु महाराज ने सभी को,मुक्त भाव से दान दिया
मंत्री,पुरोहित,पुरवासी,सेवक का भी मान किया
चारो वर्णों का एकसाथ आज्ञानुर्वा - सम्मान किया
गुंजाइस नहीं नहीं,किसी से खटपट का
हूँ कवि मैं सरयू - तट का
पृथु बोले ! सुन स्तुति गान
जो कहता हूँ ,उसे लें मान
मैं अभी श्रेष्ठ कर्म- समर्थ नहीं
कि अभी सुनूं मैं कीर्तिगान
कर्म -सुकर्म -भगत -जगत का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(9)
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यह सुन सूत सब गायक
हर्षित हो ,मन ही मन नायक
कहे,आप ही देवव्रत नारायण
आप हैं गुणगान के लायक
प्राकट्य कलावतार हरि - घट का
कवि हूँ मैं सरयू - तट का
धर्ममार्ग में नित चलकर
निरपराधी को दंड न देंगे
सूर्य किरणें जहां तक होंगी
आपके यश - ध्वज फहरेंगे
विन्दु न कोई छल - कपट का
कवि हूँ मैं सरयू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(10)
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आपका भू - स्वर्ग - पाताल
दुष्टों को खा जाएगा काल
चमकेंगे जन - जन का भाल
सबके सब होंगे खुशहाल
भाग्य जागेगा, कूड़े करकट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
परब्रह्म का प्राप्ति मार्ग
सनत कुमार जी बताएँगे
सरस्वती -उद्गम स्थल पर
अश्वमेध यज्ञ कराएंगे
खेती सीचे पानी पुरवट का
कवि हूँ मैं सरयू -तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(11)
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शिव - अग्रज सनकादि मुनीश्वर
माथे चरणोद चढ़ाएंगे
स्वर्ण सिंहासन पर उन्हें आप
ससम्मान विठाएँगे
शब्द - अर्थ होगा, उद्भट का
कवि हूँ मैं सरयू - तट का
अन्न- औषधि छिपा के पृथ्वी
सृष्टि में, रूप बदल कर डोले
प्रजा भूख, से हो गई व्याकुल
श्री मैत्रेय , विदुर से बोले
जीवन सभी का अटका – अटका
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(12)
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प्रजा करुण – क्रंदन सुन पृथु ने
शस्त्र उठा लिया हाथ में
पृथ्वी गौ का रूप पकड़ कर
थर – थर – थर – थर लगी कांपने
सर पृथ्वी ने पाँव पर पटका
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
तब गौ रुपी पृथ्वी ने आकर
विनीत भाव से नमन किया
आप जगत उत्पत्ति – संहारक
विश्व - रचना का मन किया
मेरा हाल तो नटिनी - नट का
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(13)
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मेरी अन्न – औषधि सब
राक्षस मिलकर खा जाते थे
सही ढंग से जिन्हें था मिला
वे अन्न – औषधि नहीं पाते थे
यह सब देख के माथा चटका
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
जनमेजय – सगर और भगीरथ
आदि कई हुये थे समरथ
अयोध्या की आगे बढ़ी कहानी
आये चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ
राज्य हुआ शुरू दशरथ का
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(14)
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सरयू - गंगा दोनों बहनों का
हिमालय में उद्गम - स्थल है
काली नदी नाम धारण कर
बहुत दूर तक वही पहल है
घाघरा नाम कहावत का
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
राम- लक्ष्मण – भरत – शत्रुघ्न
चारो पुत्रों नें जन्म लिया
चाँदीपुर ,चंद्रिका धाम में जाकर
गुरुजनों से शिक्षा ग्रहण किया
ज्ञान मिला हमको घट –घट का
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(15)
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गंगा – सरयू मिलन जहां पर
सभी वहाँ खेलने जाते थे
और वहीं आखेट की विद्या
गुरु शृंगी से पाते थे
रहा नहीं कोई भी खटका
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
विश्वामित्र यज्ञ- रक्षा को
श्री राम – लक्ष्मण हुये रवाना
ताड़का और सुबाहु जब मरा
खुशियों का न रहा ठिकाना
ध्यान लगाये जनकपुर – गंगा तट का
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का / सुखमंगल सिंह (१६)
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धनुष – यज्ञ के बाद जुड़ गये
सीताराम – सीताराम
सीता – हरण साधु बन किया
रावण का हो गया काम तमाम
कथा बन गई ,राम – राम रट का
कवि हूँ मैं सरजू - तट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का /सुखमंगल सिंह(17)
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कवि हूँ मैं सरयू तट का-2
जवाब देंहटाएंकवि हूँ मैं सरयू तट का
समय चक्र के उलट पलट का
युगों - युगों से मेरी अयोध्या
जाने हाल हर घट - पनघट का
हुआ प्रादुर्भाव श्री विष्णु का
पृथु – समक्ष रखा प्रस्ताव
निन्यानबे यज्ञों के विध्वंस कर्ता
इन्द्र को क्षमा दो रख समभाव
चाहें क्षमा अब देवराज
अपराध क्षमा हो उस नटखट का
समय - चक्र के उलट- पलट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(23)
निरखे नयन हुये रसाल
दिव्य आनंद सोहत भाल
नारद ऋषि का करतल ताल
दमकी छवि माथे विशाल
वृक्ष मुदित हुआ हर वैट का
कवि हूँ मैं सरयू तट का
द्वापर में, दसरथ के लाल
औ त्रेता में नन्द गोपाल
बारह कला – मर्मज्ञ राम थे
सोलहों कला के नन्द गोपाल
रामायण – महाभारत लगे कि है टटका –टटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(24)
प्रभु की लीला सुख -‘मंगल अपार
बोले राजन, लो करो ध्यान !
साधु और चरित्रवान
मानव होता श्रेष्ठ - महान
उसे न लगता अटका – झटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
जो जीवों से द्रोह न करते
सब दुखियों के दु:ख जो हरते
प्यार उसी को हम करते
उसी की खातिर जीते – मरते
मेरा घ्यान उसी पर अटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(25)
ज्ञानवान की यही है पहचान
अविद्या-वासना – विरक्तवान
गौ की जो सेवा है करता
वही ज्ञानी होता धनवान
विवेकी पुरुष कहीं न भटका
कवि हूँ मैं सरयू तट का
श्रद्धावान आराधना रत
वर्णाश्रम में पल – बढ़ कर
चित्त शुद्ध उसका हो जाता
तत्व - ज्ञान वही पाता नर
इधर –उधर तनिक न भटका
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(26)
निर्गुण गुणों का पाकर आश्रय
आत्म शुद्ध नहीं रहता भय
उसी का जीवन होता रसमय
उसी के जीवन मेन होता लय
पकड़े पथ वही केवट का
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
शरीर ,ज्ञान ,क्रिया और मन का
जिस पुरुष को ज्ञान होता
आत्मा से निर्लिप्त रहता
वही मोक्ष पद योग्य है होता
होता न ज्ञान जिसे खटपट का
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(27)
आवागमन को जो भूत हैं कहते
वे आत्मा को नहीं समझते
यहाँ - वहाँ हैं वही भटकते
जी नहीं पाते हैं वे डट के
उनका जीना अरवट – करवट का
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
जिसके चित्त में समता रहती
मेरा वास वहीं पे रहता
मन और इंद्रिय जीतकर
लोक पर राज वही करता
माया मोह को उसी ने पटका
कवि हूँ मैं सरयू – तट का
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(28)
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समय चक्र के उलट पलट का
कवि हूँ मैं सरयू - तट का
समय –चक्र के उलट –पलट का
पला –बढ़ा श्रीराम-चरण में
प्रतिपल रहता, मैं भी रण में
भीतर –बाहर किसके क्या है
इसे जान लेता हूँ क्षण में
झटका खा लेता हूँ लेकिन
किसी को नहीं देता झटका
राम –लक्ष्मण –भरत- शत्रुघ्न
सदा से पूजित रहे हमारे
इन्हीं के दम पर चमक रहे हैं
ग्रह – नक्षत्र औ नभ के तारे
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(29)
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भ्रम और समर्पण में बस
स्मरण मैं करता केवट का
संत –ऋषियों की हत्या ने
अंत लिख दिया था रावण का
रुद्र – रूप में कुपित हुये शिव
जगा भाग्य विभीषण का
जीत उसी की सदा ही होती
होता जो धैर्यवान जीवट का
कवि हूँ मैं सरजू तट का
समय –चक्र के उलट –पलट का
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कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(30)
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सरयू रामप्रिया कहलातीं
जवाब देंहटाएं------------------
पाप नाशिनी हैं माँ सरयू
असंख्य कल्पनाये सजाये लहराती
मैदान में करनाली बन सरयू
सुन्दर -सरयू - सुगम -कहती
हिमालय से निकली गंगा संग सरयू
माँ शारदा भी है नाम
उत्तराखण्ड नेपाल -सीमा में
माँ काली नदी है नाम
जान्हवी, राप्ती ,आमी का नीर
घाघरा ,गोंगरा नाम बताये
उनके सभी पाप धूल जायेँ
डुबकी सरयू में जो लगाये
कवि हूँ मैं सरयू - तट का / सुखमंगल सिंह (31)
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सरयू रास्ते संग संग श्रीराम
ऋषि विश्वामित्र चले हैं
वाल्मीकी – वालकाण्ड बताये
शिक्षा देने को निकले हैं
ऋग्वेद ने भी किया गुणगान
माँ सरयू वाकई महान
परंपरा में देविका कहाती
और रामप्रिया भी नाम
आओ ! आज माँ सरयू का
सब मिलकर गुणगान करें
श्री हनुमत से आज्ञा ले’सुखमंगल ‘
शारदा -सरयू में स्नान करें
कवि हूँ मैं सरयू - तट का / सुखमंगल सिंह (32)
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हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
प्रिय अयोध्या श्रीराम का धाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
श्री हनुमत रक्षा करें सदा
करें वास श्री भगत -हिरदय में
श्री रघुनाथ - कृपा ऐसी कि
प्रतिपल रहूँ राम के लय में
राममय रहूँ मैं सुबहो -शाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
पुष्प संग पवन ,पवन संग चिड़िया
चह - चह - चह - चह -करें सदा
काम - क्रोध - लोभ से मुक्त हो
रिद्धि- सिद्धि घर में भरे सदा
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३३ )
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चाहे छाँह रहे या घाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
भोले बाबा अवघड़ दानी
सृष्टि में कोई नहीं है शानी
शिव -भक्तों से जो भी उलझे
हो जाती उसकी ख़तम कहानी
शिव - भक्ति मिले,विन मोल औ दाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
शिव संग शक्ति, शक्ति से किरपा
प्रतिपल हो , सुलभ आशीष
सभी का शुभ चाहता चले जो
रण में होता वही है बीस
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३4 )
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नाम न होवे कभी अनाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
धर्म -कर्म -सद्भाव है जहां
शम्भु औ रघुवर कहें रहते वहां
कपट -दम्भ सब दूर है जिसके
उसके घर में कमी कहाँ
चाहे दक्षिण हो या बाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
मां सरयू तात बहुत महान
यहां घूमते थके न राम
जिह्वा पर बस एक ही नाम
राम,राम,बस राम ही राम
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(35 )
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सीताराम ,सीताराम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
राम कथा सरयू के तीर
कहता -सुनाता होता वीर
सुखमय उसका जीवन होता
वह होता धीर - गंभीर
पी लेता वह राममय जाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
मां गंगा -सरयू और सरस्वती
कल-कल करती बहती रहती
पापी हो या हो पुण्यात्मा
दुःख - पाप सब हरती रहती
दुःख पाप हरना ही है दाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३6 )
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देवलोक जैसा मनमोहक
सरयू तीरे धरा है न्यारी
महिमा गान से किरपा पाकर
जान-जान हो जाय सुखारी
परिक्रमा लगे कि चारो धाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
सगुण प्रभु -लीला जो जान गाये
देह -गेह सब स्वच्छ हो जाये
सारे भरम ,मिट जाये पल में
सभी पाप -संताप मिटाये
राम- भक्ति है ललित ललाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(37 )
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जो रघुवर -प्रेम -भक्ति में लीन
नहीं रह जाता वह दीन
उसकी पूजी बढ़ती जाती
कोई नहीं पाता है छीन
सब कुछ मिल जाता विन दाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
कल -कल- कल -कल ध्वनि से
हरि हर का करती गुणगान
बहती जाती और बताती
भूत - भविष्य और वर्तमान
पाया तुम्हीं से मानव ज्ञान और विज्ञान
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३8)
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वाल्मीक ने बालकाण्ड में
खूब किया है तेरा बखान
कालिदास ने रघुवंशम में
तुलसी -मांस में गुणगान
तेरी महिमा है गुणों की खान
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
-सुखमंगल सिंह
"सरयू -संस्कृति संवारती "
जवाब देंहटाएंभोरवैं से मइया तिखारत बानी
तकती अँखियन से, मइया निहारत बानी
कतकी नहान आइल बा,दुलारत बानी
सरयू मइया तोहरा के पुकारत बानी |
कंजड़ मानसिकता पर विचारात बानी
शासन की सिथिलता पे धिक्कारत बानी
उठ भोरावैं मइया तिखारत बानी
घृणा और भय का पात्र पखारत बानी |
लोक संस्कृति- लोकभाषा में पुकारत बानी
आंचलिक ग्राम साहित्य सवांरत बानी
लोकरंग - लोक गंध ले पुकारत बानी
यथार्थ सृजन के लिये ललकारत बानी |
भूमण्डलीयकरण में माई निहारत बानी
हराम जीवन का गौरव निखारत बानी
अँधेरे में माई निरंतर -निसारत बानी
धरा पे धार से मइया धिक्कारत बानी |
गावों भी को उपेक्षा से माई उबारत बानी
धर्म पालन में लरिकन के निकारत बानी
माई रात - दिन लहरन से सँवारत बानी
वेद - शास्त्र पढ़े - बदे ललकारत बानी|
-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी
"चीन अमेरिका"
जवाब देंहटाएंविफल प्रयास चाहे जितना चीन करें,
सकता नहीं बच कदापि छिपकर संहार से।
भीतरी भाव भयभीत छुकता नहीं छुपाए,
ऊपर से दिखावा निष्ठुर स्वभाव से।
तनातनी भाव रुकती नहीं रोकने से,
पिटेगा अंत में अपने ही स्वभाव से।
अमेरिका का साथ में देने की धमकी चीन की,
मिलेगा भारत से करारा जवाब चीन को।
भारत और अमेरिका को चीन दे रहा ताव रे,
भ्रम भस्म करेगा हिंद का जवाब री।
ड्रैगन को अमेरिका साउथ चाइना से,
रोना वायरस का ले रहा जवाब रे।
कोरोनावायरस दुनिया का भारी हानि,
दावा देना पड़ेगा चीन को इतना लो मान।
फिलीपीन में चीन चल दिया जला दिया चाल,
ब्रह्मोस पहुंचेगा फिलीपींस इसे लो मान।
ब्रह्मोस की ताकत से करेगा कदम ताल,
फिलीपींस भी तोड़ेगा चीन का मायाजाल।
- सुखमंगल सिंह, अवध निवासी
"बाबा विश्वनाथ धाम के प्रथम चरण का लोकार्पण"
जवाब देंहटाएंभारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया कमाल,
दम दम दम दम डमरू से दुनिया वाले निहाल।
शिव आज्ञा का पालन करने संत ऋषि आए,
बाबा धाम की लोकार्पण में एक हाजिरी लगाई।
उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा,
महात्मा गांधी का स्वप्न मोदी जी ने पूरा किया।
गांधीने काशी की गंदी गलियां देख पीड़ा जताई,
राष्ट्र कल्यानार्थ मोदी जी ने गंगा में डुबकी लगाई।कड़ाके ठंड में गंगा का जल शिव को चढ़ाया।
उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने अलख जगाया,
कठिन परिस्थिति में भारत की ताकत दिखाया।
प्रमुख नदियों के जल से पुराघिपती अभिषेक की,
संतों की मौजूदगी में धाम भक्तों को समर्पित की।
भाषण में प्रधानमंत्री जी ने तीन संकल्प दिलाया,
स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर प्रयास सुनाया।
देश! सभी लोग जब अलग-अलग प्रयास करेंगे,
उनकी आत्म निर्भर कोशिश देश आगे बढ़ाएगा। भारत गुलामी की हीन भावना से बाहर निकल रहा,
देश आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का बीज बो रहा।
सभी को साथ लेकर चलने का आह्वान संकल्प ले रहा,
काशी का पुराना गौरव लौटाने का पूरा प्रयास कर रहा।
प्रधानमंत्री मोदी धाम निर्माण करता श्रमिकों साथ वक्त दिया,
श्रमिकों के सम्मान में मोदी ने श्रमिकों के ऊपर पुष्प वर्षाया।
शिव भक्तों के लिए गंगद्वार से गंगाधर तक मार्ग खुलवाया,
इस प्रकार प्रथम भक्त बन कर विश्वनाथ पर गंगाजल चढ़ाया।
रेवती नक्षत्र में 13 दिसंबर २०२१ को धाम का लोकार्पण किया,
डोर टू डोर सर्वे २४१ वर्षों का इंतजार अभिषेक परंपरा खिलाया।
काशी विश्वनाथ का लोकार्पण कर दुनिया को संदेश दिया,
विश्वनाथ जी सबके रक्षक अविस्मरणीय उन्होंने उद्घोष किया।
जितनी खुशी हिंदू भाइयों को है कारी डोर बनने से काशी में,
मुसलमानों को भी उतनी ही खुशी हो रही है यासीन ने बताया।
सैयद एम यासीन संयुक्त सचिव अंजुमन इंतजा मियां की,
योगी आदित्यनाथ जी ने इसे श्री राम मंदिर निर्माण की कड़ी बताया।
हजारों वर्षों से विपरीत परिस्थितियों काशी ने झेला है,
सन 1977 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने पुनर्निर्माण किया।
ग्वालियर नरेश रणजीत सिंह और महारानी ने योगदान किया,
आज बाबा की भव्य दरबार का स्वरूप संत समाज ने आंखों देखा।
14 दिसंबर को प्रधानमंत्री सर्वेद मंदिर में संतो को संबोधित करेंगे,
मार्कंडेय महादेव मंदिर से पहले उमराह में स्वर्वेद मंदिर में भाषण देंगे।
काशी में प्रधानमंत्री का एक 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अगवानी की,
प्रधानमंत्री का क्रूज संत रविदास घाट से दशा सुमेध घाट पहुंचा।
काल भैरव में जाकर पीएम ने अपनी काशी सांसद की हाजिरी दी,
मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ जी ने पीएम के साथ रहे।
प्रधानमंत्री के स्वागत में हर हर महादेव का जयघोष हुआ,
सायंकाल की गंगा आरती का उनको सौभाग्य मिला।
नियमित रूप से गंगा आरती में सात अर्चक भाग लिया करते हैं,
रिद्धि सिद्धि के लिए ९ अर्चक २१ देव कन्याओं ने गंगा आरती की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी गुरुजी से गंगा आरती में भाग लिया,
लोकार्पण के दिन शिव दीपोत्सव पूरी का काशी के किया।।
-sukhmangal singh
"स्वर्वेद मंदिर"
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक राजधानी वाराणसी में तैयार हो रहा,
साधना केंद्र स्वर्वेद मंदिर ढांचा निर्माण हो रहा।
आधुनिक तकनीक लैस इसको बनाया जा रहा,
काशी के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व बढ़ाएगा।
नशा मुक्ति के लिए विहंगम योग यह सिखाएगा,
14 दिसंबर को वार्षिकोत्सव मंदिर में मनाएगा।
100 फीट ऊंची यह सद्गुरु की प्रतिमा लगवाऐगा,
प्राचीन स्थापत्य कला के समन्वय से बनाया गया।
14 दिसंबर को यहां राज्यपाल मुख्यमंत्री आएंगे,
संतो को संबोधित करने प्रधानमंत्री जी भी आएंगे।
स्वर्वेद मंदिर आने का आमंत्रण पीएम को दिया,
सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव दिल्ली में मोदी से मिले।
14 दिसंबर को भक्त आसन प्राणायाम लगाएंगे,
अगले दिन विश्व शांति के लिए महायज्ञ कराएंगे।