रविवार, 2 अक्तूबर 2011

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को श्रंद्धांजलि

आज दो अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्मदिवस है जिसे हम राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाते हैं । महात्मा जी को याद करते हुये ‘हरिजन’ के अंक 30.05.1936 से एक संस्मरण साभार उद्धृत करते हुये उन्हे याद कर रहा हूँ।

वर्ष 1936 की एक अपराह्न को स्विटजरलैंड के प्रतिष्ठित जीव वैज्ञानिक प्रोफेसर राहम भारत पधारे थे। भारतीय वैज्ञानिक सर सी वी रमन उन्हें लेकर महाम्मा गाँधी के पास गऐ और उनका परिचय कराया:-

‘‘ महात्मा जी ! प्रोफेसर राहम ने एक ऐसे कीट की खोज की है जो बिना अन्न जल के बिना लगातार 12 वर्षो तक जीवित रह सकता हैं। अब इस दिशा में और अधिक जीव वैज्ञानिक अध्ययन हेतु आप भारत आयें हैं।’’

गांधी जी का जीवन उपवासों में बीतता था । अतः उन्होंने उक्त विचित्र कीट के अघ्ययन में रूचि प्रदर्शित करते हुये कहा -
‘‘जब आपको इसके वास्तविक रहस्य का ज्ञान हेा जाए तो कृपया मुझे सूचित करियेगा।’’

वास्तव में महात्मा जी उपवास को और अधिक सुगम बनाने वाले इस अध्ययन में इसी लिये रूचि प्रदर्शित कर रहे थे।

आजादी के तिरसठवें साल के बाद आज भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रासंगिकता यदि कम नहीं हुयी है तो इसका कारण मात्र उनके द्वारा रोपे गये विचारों के विशाल वटवृक्ष के कारण ही है। इन महान विभूतियों के इतने विराट व्यक्तित्व का निर्माण उनके बाल्यकाल में उनके आसपास रहने वाले वातावरण के चलते ही संभव हो सका है।




अपनी आखिरी सांस तक को देश की आन की रक्षा करने के लिये उपयोग में लाने वाले माँ भारत के सच्चे सपूतों को अर्पित की जाने वाली आज की श्रद्धांजलि एक पेंटिंग के रूप में है ।
आज बुलंद आकाश में हमारे देश का तिरंगा महात्मा गाँधी की जिस लाठी के सहारे फहरा रहा है उस लाठी की दुर्दशा को इस पेंटिंग के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अहिंसा के इस पुजारी को समुचित सम्मान और आदर देने के उद्देश्य से भारतीय करेंन्सी पर महात्मा गांधी जी का चित्र छापकर उन्हें आम जन तक तो अवश्य पहुँचाया है परन्तु उनकी शिक्षायें आम हिन्दुस्तानी तक नहीं पहुँच सकी हैं। महात्मा गांधी जी की दूरदर्शिता को आज न केवल अनदेखा ही किया जा रहा है अपितु उनके विचारधाराओं की क्रूरता के साथ बलि दी जा रही है।

उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी में प्रदर्शित श्रंद्धाँजलि पेंटिंग के साथ लेखक

महात्मा जी का टूटा चश्मा और चटकी लाठी इसी चिंता को व्यक्त कर रही है यही चिंता मेरी इस पेंटिंग का केन्द्रीय विषय भी है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी और लाल बहादुर शास्त्री जी को एक संजीदा इंन्सान की ओर से श्रद्धांजलि स्वरूप अर्पित इस पेंटिंग को कृपया आपके आर्शिवचनो की दरकार भी र
हेगी ।

जै जवान जै किसान ! और जै हिन्द !! के साथ अब हे राम !!! भी!!!

3 टिप्‍पणियां:

  1. रेखा जी अभी-अभी राजघाट/विजय घाट से आकर नेट पर बैठा हूँ, और यहाँ आपकी ये पोस्ट देखी।

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  2. रेखा जी की जगह अशोक कुमार शुक्ला माना जाये

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  3. अशोकजी !बहुत ही प्रेरक प्रसंग .महात्मा गाँधी के अन्दर जो सर्व -ग्राहिय्ता है वह अप्रतिम है .वह सार्वदेशिक हैं सार्कालिक हैं .आभार आपका इस संस्मरण के लिए .

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