शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

फेसबुक ट्विटर पर नशेडियों की नयी फौज

इधर कुछ महीनों से हमें भी ब्लागरर्स को पढने का और अपने कुछ अनुभवों को ब्लाग पर डालने का नया चस्का लगा है। कल सुबह की बात है जब मैं सुबह सुबह अपने लैपटाप पर ब्लागो की सैर करते हुये ब्लागरों की नयी नयी पोस्ट देख रहा था तो मेरी पत्नी दैनिक हिन्दुस्तान समाचारपत्र लेकर मेरे पास आयी और बोली:
‘‘देखो जो मैं कहती थी ना। आज अखबार में भी वही छपा है।’’
मैं अपने लैपटाप पर झुके झुके ही बोलाः ‘‘क्या हुआ जी...? क्या छपा है...?’





चित्र1 समाचार पत्र मे सोशियल नेट वर्किग साइट से जुडी खबर

तो झट से मेरी पत्नी ने साथ वाली खबर मेरे आगे कर दी । समाचार का शीर्षक देखकर उसे पढने की उत्सुकता हुयी तो उसमें लिखे तथ्यों को पढकर मैं भी सकपका गया। ‘न्यूयार्क पोस्ट’ ने लगभग 1000 फेसबुक और ट्विटर प्रयोक्ताओं के बीच किये गये सर्वे के आधार पर यह यह निष्कर्ष निकाला है की

इन सोशियल नेटवर्किग साइटों से दूर रखे जाने पर इनका प्रयोक्ता ड्रग एडिक्ट जैसा ब्यवहार करने लगता है और कई मामलों में वे डिप्रेशन का शिकार तक होते पाये गये हैं।
खबर की खास बात यह थी कि इसमें यह लिखा था कि सोशियल नेट वर्किग से दूरी बनाने पर यह उपयोगकर्ता खुद को समाज से कटा कटा महसूस करता है। मेरी पत्नी और मैं अपने अपने तरीके से इसके निहितार्थ निकालने में जुटे।
उसका तर्क था कि वह मुझे भी उस दिन चिडचिडा सा पाती है जब इन्टरनेट नेटवर्क कनेक्शन में कोई समस्या होती है। इसलिये मुझे अपने लैपटाप से दूरी बनाने हिदायत दी जा रही थी। मेरा मानना है कि जिस सुबह समाचार पत्र नहीं आता उस दिन हर बुद्धिजीवी कुछ अटपटा सा अनुभव करता है ऐसा लगता है जैसे कुछ अधूरापन है। यह भी तो एडिक्शन है । देश दुनिया के हाल जानने का एडिक्शन!
अब अपने ब्लागर भाइयों को ही देख लो जब तक सारें ब्लागों और नुक्कडों की सैर करके यह नहीं देख लेते कि आज की पोस्ट में किसने कोई नई बात कही है या किस ब्लागर ने किससे पंगा ले लिया है ,तब तक चैन ही नहीं मिलता। बहरहाल ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के हवाले से यह तथ्य निकलकर सामने आया है सोशियल नेटवर्किग साइट पर लगातार सक्रिय होने के कारण हम ब्लागर भी आज कल एडिक्ट यानी ‘नशेडियों’ की श्रेणी में आ गये हैं।
मुझे तो लगता है कुछ सार्थक विचारों को अपने जैसे किसी नशेडी ब्लागर के साथ बांटने का नशा उलजुलूल टीवी सीरियल में अपने मष्तिष्क को खपाने से कहीं अच्छा है। (जाहिर सी बात है कि हर घर में पंसंदीदा टीवी प्रोग्राम धर्मपत्नी के मेनूबार से ही निकलते हैं और किसी कारण यदि कभी देखने को न मिलें तो याद कीजिये उनकी बेचैनी....क्या उनकी इस बेचैनी को एडिक्शन नहीं कहा जायेगा?)
बहरहाल! न्यूयार्क टाइम्स के हवाले से छपी खबर को आपके साथ बाँटना जरूरी समझा सो बता दिया। हमारे देश में नशे पर तो पाबंदी है लेकिन सरकारी शराब की दुकानें और नारकोटिक्स विभाग सबसे अच्छे राजस्व अदाकर्ता स्त्रोत भी हैं, तभी तो इनसे लाइसेंस पाकर ही आप नशा करने और कराने के विधिक दावेदार हो जाते हैं ।
अब अगर किसी दिन सरकार ने इस नशे पर भी प्रतिबंध ही लगा दिया या उसे ठेठ सरकारी शराब की दुकानों की तरह इसमें भी राजस्व वसूली का अच्छा स्त्रोत नजर आया तो यह कहकर सरकार को न कोसियेगा कि हमने पहले से इसकी जानकारी देकर आपको सचेत नहीं किया था।
आप इस आलेख को नवभारत टाइम्स पर शुरू हुये रीडर्स ब्लाग
कोलाहल से दूर... पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं
लिंक है:-

4 टिप्‍पणियां:

  1. मैडम टी वी हथियाये रहे और आप पी सी -अपना अपना दायरा ! जब वे फेसबुक छोड़ने को कहें तो आप सौराल गेंदा फूल पर प्रतिबन्ध लगाएं -मामला सुलत जाएगा ! :) कृपया वर्ड वैरिफिकेशन हटायें!

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  2. वर्ड वैरिफिकेशन option yaad dilane ke liye thanks arvind mishra ji. वर्ड वैरिफिकेशन hata liya hai

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